Nargis ki yadon ka jharokha : नरगिस को पाने का सपना टूटने पर खुद को सिगरेट से दागते थे राज कपूर, सुनील दत्त के सितारे थे उनसे ज्यादा बुलंद...
- जां निसार अख़्तर साहब का एक शेर है -
- "अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
- कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं"
Nargis ki yadon ka jharokha : मुंबई I राजकपूर के लिए नरगिस क्या थीं और बिना नरगिस के राजकपूर कैसे रह गए थे... ये सच्चा किस्सा बड़ा दुखदायी है।और ये दर्द ही था शायद, जो दोनों के चेहरे पर ठिठक कर ठहर गया था। राज कपूर फिल्म्स के प्रतीक चिन्ह के रूप में अमर हो चुका दोनों का प्रेम परवान तो नहीं चढ़ा लेकिन दास्तान ज़रूर बन गया... ज़िन्दगी न रुकती है, न रुकी। नरगिस सुनील दत्त की हो गईं। लेकिन दर्दों ने आगे भी उनसे नाता नहीं तोड़ा और वे दिलेरी से उनसे जूझती हुई इस दुनिया से विदा हो गईं। आज बीते जमाने की अभिनेत्री नरगिस के जीवन को और करीब से जानते हैं।
० फिल्में और नरगिस
नरगिस दत्त का असली नाम था फातिमा राशिद। 1 जून 1929 के दिन वे मशहूर नृत्यांगना और गायिका जद्दनबाई की बेटी के रूप ये जन्मी थीं। इसलिए महज 6 बरस की उम्र में 'बेबी नरगिस' के नाम से उनकी फिल्मों में सरल एंट्री हो गई। और इसी फिल्म 'तलाश-ए-हक' की क्रेडिट लाइन में मिला यह नाम ' नरगिस' ज़िन्दगी भर उनकी पहचान बना रहा। नरगिस को उनकी पहली प्रमुख भूमिका तकदीर (1943) फिल्म में मिली। वहीं बड़ी सफलता उन्हें अंदाज़, बरसात, आग और आवारा से मिली। अंदाज़ फिल्म में उस समय के सबसे मशहूर एक्टर्स राज कपूर और दिलीप कुमार,स्क्रीन पर उनके साथ नजर आए थे।
1951 में रिलीज हुई फिल्म 'आवारा' को बहुत पसंद किया गया। राज कपूर के साथ भूमिका वाली इस फिल्म ने बहुत अच्छी कमाई भी की। इस फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में एंट्री मिली थी, जहां इसे 'ग्रैंड प्राइज ऑफ द फेस्टिवल' के लिए नॉमिनेट किया गया था।
आवारा के बाद 1955 में वे एक बार फिर राज कपूर के साथ 'श्री-420' में नजर आई। इस रोमांटिक कॉमेडी फिल्म में दोनों की केमिस्ट्री देखने लायक थी। चोरी चोरी (1956) राज कपूर और नरगिस की साथ में आखिरी फिल्म थी। दोनों ने साथ में 15 से अधिक फिल्में कीं।
'रात और दिन' के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस के तौर पर नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इस फिल्म में उनके अलावा प्रदीप कुमार और फिरोज खान ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह नरगिस की आखिरी फिल्म भी थी।
० प्यार हुआ, इकरार हुआ... पर मिलन नहीं हो सका
नरगिस-राजकपूर...अभिनय की दुनिया के ये दो यादगार सितारे एक- दूसरे के इतने करीब आ गए थे कि आसमान ही रौशन हो चला था। लगता ही नहीं था कि वे एक 'जोड़ी' नहीं हैं। बैक टू बैक क्लासिक रोमांटिक फिल्में साथ देकर नजदीकियां पनपना स्वाभाविक था। राजकपूर उनसे बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे। यहां तक कि राज कपूर फिल्म्स के प्रतीक चिह्न में भी यही जोड़ी नज़र आती है। दरअसल यह राज कपूर और नरगिस की फिल्म 'बरसात' का एक दृश्य है, जहां राज कपूर एक हाथ से नरगिस को थामे हैं और दूसरे में वायलिन पकड़े हुए दिखाई देते हैं। इसी दृश्य को आरके बैनर का प्रतीक बनाया गया था।
रियल लाइफ में भी राज कपूर इस जोड़ी को प्यार का प्रतीक बनाना चाहते थे। लेकिन वे शादीशुदा थे। कहा जाता है कि वे नरगिस से कहा करते थे कि वे अपनी पत्नी से अलग होकर उनके साथ अपनी प्यार की दुनिया बसाएंगे। लेकिन कपूर खानदान के दबाव में शायद ऐसा करना उनके लिए मुमकिन नहीं हुआ। करीब नौ साल के साथ के बाद दोनों की राहें ज़ुदा हो गईं। खुद उनकी पत्नी कृष्णा कपूर में एक इंटरव्यू में बताया था कि नरगिस से अलग होने के बाद राज कपूर देर रात नशे में चूर होकर घर लौटते थे और आते साथ ही बाथ टब में गले तक डूब कर घंटों रोया करते थे।
जानने वाले ये भी बताते हैं कि जब नरगिस
और सुनील दत्त की शादी की खबर मिली तो ये बात सच है या रात का बुरा ख़्वाब... जानने के लिए राजकपूर खुद को सिगरेट से दागते बैठे थे.... और जब सालों बाद नरगिस की मौत की खबर सुनी तब तो... ये आखिर में बताते हैं। फिलहाल नरगिस की ज़िन्दगी पर वापस लौटते हैं।
० मदर इंडिया बन अमर हो गईं
नरगिस ने मेहबूब खान की फिल्म 'मदर इंडिया (1957)' में अभिनय किया और ऐसा यादगार अभिनय किया कि जो मिसाल बन गया। आज भी दो बेटों को अकेले पालने वाली, अभावग्रस्त लेकिन संघर्षरत माँ 'राधा' के उस रोल में किसी और की कल्पना करना अपराध करने जैसा लगता है। इस फिल्म को ऐसा 'काव्यात्मक ड्रामा' माना गया जिसका सृजन भारतीय फिल्म उद्योग को एक अलग ही लेवल पर ले गया। यह एक ऑस्कर-नामांकित मूवी थी।
साथ ही उस समय भारत में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म भी थी। इसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार तो जीता ही, आगे चलकर सुनील दत्त के रूप में एक बेहतरीन जीवनसाथी भी मिला। आपको याद ही होगा कि इस फिल्म में सुनील दत्त ने उनके बेटे का किरदार निभाया था। जबकि उस दौरान खुद नरगिस महज़ 28 साल की थीं। फिर भी उन्होंने फिल्म में सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार की माँ बनना स्वीकार किया था और अपने किरदार में जान फूंक दी थी।
० यूं बनीं नरगिस दत्त...
मदर इंडिया से पहले सुनील दत्त रेडियो पर प्रसारित होने वाला एक इंटरव्यू लेने के दौरान नरगिस से मिले। मदर इंडिया के वक्त नरगिस एक सुपर सितारा थीं जबकि सुनील दत्त फिल्मों में काम ढूंढ रहे थे। नरगिस के अभिनय के वे मुरीद थे और उनके साथ काम पाकर गौरवांवित महसूस कर रहे थे। एक दिन फिल्म के सेट पर एक दुर्घटना घटी और भयानक आग लग गई। नरगिस आग में घिर चुकी थीं। सुनील दत्त ने खुद को खतरे में डाला और आग लगे पुआल के बीच से नरगिस को बचाकर ले आए। हालांकि इस कोशिश में वे खुद बुरी तरह झुलस गए। नरगिस निश्चय ही उनकी शुक्रगुज़ार थीं।उन्होंने अस्पताल में बिल्कुल परिजन खी तरह सुनील की देखभाल की। जल्द ही नरगिस और सुनील दत्त एक दूसरे के काफी करीब आ गए और 11 मार्च 1958 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए।
० बीती बातें कभी नहीं छेड़ीं, सुनील बने केयरिंग हस्बैंड
नरगिस और राजकपूर के प्रेम के किस्से हर ज़ुबां पर थे। सुनील दत्त भी इस अधूरी प्रेम कहानी से अच्छी तरह वाकिफ़ थे। वह दौर आज की तरह नहीं था, जहां सब चलता हो। पर सुनील दत्त ने कभी यह ज़िक्र नहीं छेड़ा।
वे नरगिस पर जान छिड़कते थे। हर वक्त उनकी खुशी का ख्याल रखते थे। दोनों के बीच बहुत अच्छी अंडरस्टेंडिंग थी। दोनों ने एक- दूसरे के अधूरे ख्वाबों को पूरा किया।नरगिस डाॅक्टर बनना चाहती थीं पर अभिनेत्री बन गईं। कालांतर में वे स्पास्टिक सोसाइटी ऑफ इंडिया की संस्थापक बनीं और पीड़ित बच्चों के लिए काम किया। उन्होंने अपने पति के साथ 'अजंता आर्ट्स कल्चरल ट्रूप' का भी गठन किया। अभिनेताओं और गायकों का यह ट्रुप सीमा पर भारतीय सैनिकों के मनोरंजन के लिए दूरस्थ सीमाओं पर प्रदर्शन करता था।
० नरगिस के शौक भी उनकी तरह अनोखे थे
नरगिस हमेशा अपनी तरह से जीना पसंद करती थी। वे छोटे खुले बाल रखना पसंद करती थीं। सफेद रंग की साड़ियां पहनना बहुत पसंद करती थीं। गाड़ी से उतरकर सड़क पर बिना किसी संकोच गोलगप्पे खाती थीं। बहुत अच्छी तैराक थीं और जम के क्रिकेट खेलती थीं। फोन पर लंबी बातें करने का भी उन्हें बहुत शौक था।
० शादी के बाद शौक से बनी होममेकर
शादी के बाद नरगिस चाहतीं तो अपना करियर जारी रख सकती थीं, पर उन्होंने अपनी मर्जी से खुद के लिए होममेकर होना चुना। वे तीन प्यारे बच्चों प्रिया, नम्रता, और संजय दत्त की माँ बनीं।
० शानदार एक्टिंग करियर ने राज्य सभा पहुंचाया, लेकिन जिंदगी ने ले ली दर्दनाक करवट
नरगिस ने अपनी अभिनय क्षमता के दम पर शानदार मुकाम हासिल किया था। वे राज्य सभा की सदस्य मनोनीत की गईं। राज्य सभा सेशन के दौरान ही एक दिन उनकी तबीयत बहुत बुरी तरह बिगड़ी। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में तमाम जांचों के बाद पता चला कि उन्हें पैंक्रियाटिक कैंसर है। तत्काल उन्हें बेहतर इलाज के लिए न्यूयॉर्क ले जाया गया। लंबे इलाज के बाद वे वापस
लौटीं लेकिन बताया जाता है कि वे इंफेक्शन की ज़द में आ गईं। उन्हें तत्काल ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन 2 मई 1981 के दिन नरगिस कोमा में चली गईं। फिर उनकी वापसी नहीं हो पाई और अगले ही दिन 3 मई 1981 को महज 51 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
... पहले एक बात अधूरी छोड़ी थी, उसे अब पूरा करते हैं। कहते हैं कि जब राजकपूर को नरगिस की मौत हो जाने की जानकारी मिली तो वे पहले धीमे से हंसे। फिर उनके हंसने की गति बढ़ती गई और अचानक वे बेतरह रोने लगे। कुछ दर्द ज़िंदगी से बड़े हो जाते हैं। कुछ दर्द कलेजे से लगाकर सहेजे जाते हैं.... ।
० चार दिन बाद रिलीज़ हुई बेटे की पहली फिल्म
नरगिस की मृत्यु के महज़ चार दिन बाद संजय दत्त की पहली फिल्म रॉकी रिलीज हुई थी। राॅकी के प्रीमियर के दौरान नरगिस के लिए एक सीट खाली रखी गई थी। काश कि वे इस मुबारक दिन को देखने के लिए दुनिया में होतीं।
नरगिस के निधन के कुछ समय बाद उनके पति सुनील दत्त ने उनकी याद में नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन की स्थापना की। ये नरगिस के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि थी।