Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : कपिल शर्मा की किस-किस को प्यार करूं 2 पर पैसे खर्च करने से पहले जान लें रिव्यू
Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : छोटे पर्दे के बेताज बादशाह और कॉमेडी किंग कपिल शर्मा ने अपनी बहुप्रतीक्षित फिल्म किस किसको प्यार करूं 2 के साथ सिनेमाई दुनिया में एक बार फिर कदम रखा है, जो उनकी पिछली हिट फिल्म का सीक्वल है।
Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : कपिल शर्मा की किस-किस को प्यार करूं 2 पर पैसे खर्च करने से पहले जान लें रिव्यू
Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : मुंबई। छोटे पर्दे के बेताज बादशाह और कॉमेडी किंग कपिल शर्मा ने अपनी बहुप्रतीक्षित फिल्म किस किसको प्यार करूं 2 के साथ सिनेमाई दुनिया में एक बार फिर कदम रखा है, जो उनकी पिछली हिट फिल्म का सीक्वल है। कपिल शर्मा का नाम सुनते ही करोड़ों दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, और उनका ज़ीरो से हीरो बनने तक का सफर वाकई प्रेरणादायक रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या उनकी यह नई रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतर पाती है, या यह सिर्फ उनकी अपार फैन फॉलोइंग के भरोसे पर रिलीज़ की गई है? इस विस्तृत समीक्षा में, हम फिल्म के हर पहलू पर गहराई से विचार करेंगे।
Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : कहानी 90 के दशक का बोझ
फिल्म की कहानी भोपाल के एक हिंदू रेस्टोरेंट मालिक मोहन शर्मा से शुरू होती है। मोहन सीधा-सादा है लेकिन प्यार की भूख उसे एक मुस्लिम लड़की सान्या की ओर खींच ले जाती है। सामाजिक विरोध के चलते, मोहन प्यार की खातिर 'मेहमुद' बनकर इस्लाम कबूल कर लेता है, ताकि सान्या से निकाह कर सके। यहाँ से कहानी एक जटिल मोड़ लेती है। दर्शकों को यह जानने के लिए थिएटर जाना पड़ता है कि मेहमुद सान्या की जगह रूही से क्यों शादी करता है, फिर रूही के बाद मीरा से क्यों सात फेरे लेता है, और अंत में वह 'माइकल' कैसे बन जाता है।
Kis Kis ko Pyaar Karoon 2 : फिल्म का केंद्रीय मल्टीपल शादियों और पहचान बदलने के पुराने फॉर्मूले पर टिका है। समस्या यह है कि 2025 में भी धर्म-परिवर्तन और 90 के दशक की ग़लतफ़हमी कॉमेडी पर आधारित ऐसे प्लॉट दर्शकों को खीझ पैदा करते हैं। कहानी एक मजेदार रोम-कॉम बनाने के इरादे से शुरू होती है, लेकिन इतनी उलझ जाती है कि यह मनोरंजन कम और सिरदर्द ज़्यादा लगती है। आज जब दर्शक जटिल और मौलिक कहानियाँ देख रहे हैं, तब इस फिल्म की कहानी उन्हें एक टाइम मशीन में बैठाकर अतीत में ले जाती है, जहाँ कहानी में नयापन तलाशना बेकार है।
निर्देशन और लेखन की कमियाँ
फिल्म का निर्देशन अनुकल्प गोस्वामी ने किया है, लेकिन उनका विजन और पूरी फिल्म की बनावट पुराने दौर में अटकी हुई महसूस होती है। आज की ऑडियंस, जो वैश्विक स्तर की वेब सीरीज़ और फिल्में देखती है, के लिए इस तरह की दकियानूसी कहानी और प्रस्तुति को पचाना मुश्किल है। पूरी फिल्म में 'लाउड' एक्टिंग और 'मेलोड्रामैटिक' एक्सप्रेशंस का अत्यधिक उपयोग किया गया है, जिससे कई सीन बनावटी लगते हैं। फिल्म के क्लाइमेक्स में जो 'ज्ञान' दिया गया है, वह भी नकली और थोपा हुआ लगता है।
फिल्म में कॉमेडी की कमी नहीं है; कुछ जोक्स विशेष रूप से नवजोत सिंह सिद्धू और सावधान इंडिया' से जुड़े डायलॉग्स पर हँसी आती है। लेकिन ये जोक्स सहज नहीं हैं, बल्कि जबरदस्ती स्क्रिप्ट में घुसाए हुए महसूस होते हैं। फिल्म की सबसे बड़ी कमी उसका स्वरूप है— यह एक फीचर फिल्म कम और द कपिल शर्मा शो का ढाई घंटे लंबा एपिसोड ज़्यादा लगती है।
इसके अलावा, कपिल के शो की तरह, फिल्म में भी बॉडी-शेमिंग का इस्तेमाल किया गया है। आज के प्रगतिशील दौर में, जब दर्शक इन रूढ़िवादी चीज़ों से ऊपर उठकर कॉमेडी को पसंद कर रहे हैं, तब ऐसे जोक्स न सिर्फ आउटडेटेड बल्कि असहज भी महसूस होते हैं। यह गलती और भी खटकती है क्योंकि फिल्म अंत में सही-गलत का ज्ञान बाँटती है।
कलाकारों का प्रदर्शन
कपिल शर्मा इस फिल्म के सबसे बड़े आकर्षण और इसकी जान हैं। मोहन शर्मा के किरदार में उन्होंने वही सब किया है जो उनके करोड़ों फैंस उनसे उम्मीद करते हैं। भले ही कहानी और निर्देशन कमजोर हो, कपिल की अचूक कॉमिक टाइमिंग और उनकी एनर्जी कई बार डूबती हुई नैया को पार लगाने की कोशिश करती है। वह पूरी फिल्म का भार अपने कंधों पर उठाते हैं।
फिल्म में सभी अभिनेत्रियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। आयशा खान और त्रिधा चौधरी ने अपनी भूमिकाओं को बखूबी निभाया है। पारुल गुलाटी और हीरा वरीना स्क्रीन पर 'ग्लैमर कोशेंट' जोड़ती हैं। हीरा वरीना बेशक खूबसूरत दिखती हैं, लेकिन 'सान्या' के उनके किरदार को और मज़बूती की ज़रूरत थी, ताकि वह दर्शक के दिल तक पहुँच पाता।
फिल्म में कपिल और मनजोत सिंह को लंबे संवाद बोलने का मौका मिला है। हालांकि, इन मोनोलॉग्स में वैसी गहराई और भावनाएँ पूरी तरह से गायब थीं, जैसी कि एक सफल कॉमेडी या इमोशनल सीन के लिए ज़रूरी होती हैं।
अंतिम निर्णय : देखें या छोड़ दें?
यदि आप कपिल शर्मा के कट्टर प्रशंसक हैं, उनकी हरकतों और जोक्स के दीवाने हैं, तो यह फिल्म आपके लिए एक बार देखी जा सकती है। यह आपको उनकी स्टाइल की कॉमेडी का फुल डोज़ देगी।
लेकिन, यदि आप उन दर्शकों में से हैं जो कॉमेडी में भी लॉजिक, नयापन और एक जोरदार स्क्रिप्ट खोजते हैं, और जिन्होंने हाल ही में लापता लेडीज' या मडगांव एक्सप्रेस जैसे मज़ेदार, लेकिन मौलिक कॉमेडी एक्सपेरिमेंट देखे हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। ऐसे दर्शकों को यह सलाह दी जाती है कि वे इस फिल्म को देखने के बजाय घर बैठकर अपने फ़ोन पर द कपिल शर्मा शो के पुराने, बेहतर एपिसोड्स देख लें।
आज के दौर में सिनेमा और दर्शकों की पसंद दोनों विकसित हो चुकी हैं। यह फिल्म और इसके मेकर्स अभी भी 90 के दशक की सीमित सोच में अटके हुए हैं। कपिल शर्मा की स्टार पावर दमदार है, लेकिन बिना एक बेहतर, आज के दौर की स्क्रिप्ट के उनकी यह ऊर्जा व्यर्थ चली गई है।
पहले पार्ट के सामने फीका
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किस किसको प्यार करूं 2 अपनी पिछली हिट किस किसको प्यार करूं' (2015) की सफलता को दोहरा नहीं पाई। 2015 की वह फिल्म एक नई हवा लेकर आई थी और दर्शकों ने खूब पसंद किया था, जबकि यह सीक्वल आज के दौर की विकसित कॉमेडी को समझने में नाकाम रहा है। कपिल शर्मा की स्टार पावर दमदार है, लेकिन एक बेहतर, मौलिक स्क्रिप्ट के बिना यह व्यर्थ चली गई है।