Chhattisgarh Atmanand English School: CG आत्मानंद अंग्रेज़ी स्कूल: एक अच्छी योजना कैसे बदइन्तज़ामियों से दम तोड़ दी, जानिए इसकी वजह और क्या कहते हैं शिक्षक नेता

Chhattisgarh Atmanand English School: आत्मानंद स्कूल छत्तीसगढ़ के बच्चों को अंग्रेज़ी नहीं पढ़ा पाया अलबत्ता सिस्टम के लोगों के लिए चारागाह बन गया। कलेक्टरों ने डीएमएफ़ के पैसे का बंदरबाँट किया। बहती गंगा में हाथ धोते हुए नोडल अफ़सरों ने डेढ़ से दो लाख लेकर जिन शिक्षकों को ठीक से हिन्दी नहीं आती उन्हें अंग्रेज़ी स्कूल में पोस्टिंग कर दी।

Update: 2024-02-08 14:46 GMT

Atmanand School Project Closed: रायपुर। पिछली सरकार की महत्वकांक्षी योजना आत्मानंद की संचालन समितियां को आज विधानसभा में शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भंग करने की घोषणा कर दी है। अगले शैक्षणिक सत्र से यह समितियां भंग हो जाएगी और कलेक्टर की निगरानी में चल रहे सारे आत्मानंद स्कूलों को शिक्षा विभाग के अंतर्गत सम्मिलित कर लिया जाएगा। शिक्षा मंत्री की घोषणा का सारे शिक्षक नेताओं ने तहे दिल से स्वागत किया है।

आत्मानंद स्कूल प्रोजेक्ट की शुरुआत भूपेश बघेल सरकार ने की थी। इसकी शुरुआत वर्ष 2020 में प्रायोगिक तौर पर की गई फिर पूरे प्रदेश में आत्मानंद स्कूल खोले गए। यह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था। पूर्व मुख्यमंत्री की सोच के अनुसार कोरोना काल में जब सब जगह लॉकडाउन था तब भूपेश बघेल ने आत्मानंद प्रोजेक्ट का विचार किया। उनकी सोच थी कि छत्तीसगढ़ में एक ऐसा स्कूल प्रोजेक्ट बने जिसमे अधिकारियों से लेकर ग्रामीणों के बच्चे अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ सके। इस परिकल्पना को लेकर आत्मानंद स्कूल की शुरुआत हुई।

सबसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 52 स्कूल खोले गए। फिर 172 उसके बाद पूरे प्रदेश में इसे जगह जगह लागू किया गया। पहले चरण में अंग्रेजी माध्यम आत्मानंद स्कूल खोले गए। दूसरे चरण में हिंदी माध्यम उत्कृष्ठ आत्मानंद विद्यालय खोले गए। इन स्कूलों का मकसद आम और गरीब बच्चो को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना था। 2021–2022 आते आते आत्मानंद स्कूल जगह जगह खुल गए।

आत्मानंद स्कूलों के फेल होने की वजह

समय के साथ आत्मानंद स्कूलों के रिजल्ट में गिरावट आने लगी और यहां पदस्थ शिक्षकों कर्मचारियों के वेतन में भी देर होने लगी। इसका कारण वेतन अलॉटमेंट सिस्टम बना। स्कूलों के संचालन के लिए हर स्कूल में प्राचार्य की अध्यक्षता में एक समिति बनी और गांव के ग्रामीण इसके सदस्य बने। पूरे जिले के स्कूल यानी आत्मानंद प्रोजेक्ट के तहत जो संचालित होते है वो कलेक्टर के अंतर्गत कर दिए गए। और शिक्षकों के वेतन की व्यवस्था कलेक्टर को डीएमएफ मद से करने के निर्देश दिए गए।

अलग से इंस्फ्रास्टकचर नहीं पुराने स्कूलों का उन्नयन

पूरे राज्य में 734 आत्मानंद स्कूल खोले गए थे। इसके लिए कोई अलग से स्कूल नहीं खोले गए थे। बल्कि जो पुराने स्कूल चल रहे है उन्हें ही उन्नयन कर के आत्मानंद स्कूल का दर्जा दे दिया गया। इसमें सबसे दिक्कत यह हुई कि जिन हिंदी माध्यम स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में एकदम से उन्नयन कर दिया गया तब या तो स्कूली बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने में ही बाध्य किया गया उन स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था नहीं की गई। जो बच्चे इंग्लिश पढ़ने में सहज नहीं थे उन बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। हिंदी मीडियम स्कूलों को एक झटके में बंद कर इंग्लिश मीडियम बनाने के फैसले का कई जगह विरोध भी हुआ। भैरमगढ़, रायगढ़, अभनपुर, कवर्धा जैसे जगहों में बच्चों ने हिंदी माध्यम बंद कर अंग्रेजी माध्यम बनाने का रैली निकाल कर विरोध भी किया।

भर्ती में भ्रष्टाचार, अंग्रेजी माध्यम में हिंदी के शिक्षक

स्कूलों के लिए प्रतिनियुक्ति में शिक्षक बुलाए गए या संविदा में भर्ती किए गए। कहने को तो यह ऑनलाइन और निष्पक्ष हुए पर इसमें जमकर भाई भतीजावाद चला।

पूरा सेटअप संविदा या प्रतिनियुक्ति:–

जब स्कूलों का उन्नयन आत्मानंद स्कूलों में किया गया तब यहां या तो प्रतिनियुक्ति से मंगवाए गए या फिर संविदा नियुक्ति की गई। कहने को तो पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई पर भर्तियों में भाई भतीजावाद चला। जम कर भ्रष्टाचार चला और अयोग्य लोगों को नियुक्त किया गया। अंग्रेजी माध्यम में हिंदी माध्यम के शिक्षकों की भर्तियां भी की गई। जिसके चलते अध्यपान की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। जो शिक्षक दूर दराज से प्रतिनियुक्ति पर आए थे वे शहर के पास के स्कूलों के चक्कर में आए थे उन्हें अध्यापन में रुचि नहीं थी।

सारे स्कूल के स्टाफ में जो पहले से वहां पदस्थ थे उन्हें विकल्प दिया गया कि या तो वह इस स्कूल में प्रतिनियुक्ति में रहें या अन्य स्कूल में ट्रांसफर हो जाए। जिन शिक्षकों ने प्रतिनियुक्ति में रहने की इच्छा नही जताई उन्हें दूसरे स्कूल तबादले के लिए अच्छे स्कूल नहीं दिए गए और दूर के स्कूल दे दिए गए। जिन शिक्षकों ने सहमति जताई वे प्रतिनियुक्ति पर आकर स्कूल शिक्षा की जगह आत्मानंद के कर्मचारी बन गए और उनकी वेतन व्यवस्था कलेक्टर के द्वारा डीएमएफ मद से की जाने लगी। जिसके चलते संविदा के साथ ही प्रतिनियुक्ति पर काम करने वाले शिक्षकों कर्मचारियों के वेतन भुगतान में विलंब होने लगा।

खरीदी में भी भ्रष्टाचार

स्कूलों के संचालन के लिए प्राचार्य की अध्यक्षता में गांव वालों की समिति बनाई गई। डीएमएफ मद से प्राप्त रकम से मार्केट रेट से ज्यादा में खरीदी को गई। आत्मानंद स्कूल से बड़ा नुकसान उन शासकीय कर्मचारियों को हुआ जो कलेक्टर के अंतर्गत अशासकीय समिति में आ गए। जिन स्कूलों का नाम महापुरुषों के नाम से था उनके नाम हटा दिए गए और आत्मानंद नाम दे दिया गया था। कई गांव के जमीदारों व दानवीरों ने स्कूलों के लिए जमीन दान की थी उनके नाम पर स्कूल बनाए गए थे वे नाम भी हटा दिए गए।

शिक्षक नेताओं ने किया स्वागत

आत्मानंद स्कूल की समितियां भंग करने के निर्णय का शिक्षक नेताओं ने स्वागत किया है। शालेय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे, शिक्षक नेता विवेक दुबे और टीचर्स एसोशिएशन के अध्यक्ष संजय शर्मा ने सरकार के निर्णय को सराहनीय बताया है। सभी ने कहा कि डीएमएफ फंड के नाम पर स्कूलों के संचालन को कलेक्टर को सौंपने के चलते मनचाहा निर्णय लेने की परंपरा शुरू हो गई थी। आबंटन व्यवस्था के चलते दो दो माह से वेतन नहीं मिल रहा था। अब ट्रेजरी से भुगतान होगा जो शिक्षकों के हित में है।

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