भारत के मुसलमान और आधुनिक आतंकवाद की नई चुनौती
Indian Muslims and New Challenge of Modern Terrorism | 10 नवंबर 2025 को दिल्ली के लाल किले के पास हुआ कार बम विस्फोट केवल एक आतंकी घटना नहीं थी—यह उस अदृश्य संकट का दर्पण है, जो चुपचाप हमारे समाज की जड़ों में घर कर रहा है।
लेखक: मतीन सिद्दीकी, अधिवक्ता, हाईकोर्ट ऑफ छत्तीसगढ़, बिलासपुर
Indian Muslims and New Challenge of Modern Terrorism | 10 नवंबर 2025 को दिल्ली के लाल किले के पास हुआ कार बम विस्फोट केवल एक आतंकी घटना नहीं थी—यह उस अदृश्य संकट का दर्पण है, जो चुपचाप हमारे समाज की जड़ों में घर कर रहा है। भारत की राजधानी के हृदय में हुई इस हिंसा ने न केवल पंद्रह मासूमों की जान ली, बल्कि हमारे विश्वास, हमारी साझा पहचान और सदियों से पल्लवित होते आए सामाजिक ताने-बाने को भी गहरी चोट पहुँचाई है। यह आतंक अब सरहदों या जंगलों में छिपे चेहरों तक सीमित नहीं रहा; यह हमारे नगरों, विश्वविद्यालयों, अस्पतालों और आधुनिक सुविधाओं के बीच पल रहे शिक्षित युवाओं के मन में घर बना रहा है। यही वह भयावह परिवर्तन है, जिसकी आहट को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे समय में संदेह की उँगली अक्सर उन लोगों की ओर उठती है, जिन्होंने इस देश की आज़ादी, उसकी प्रगति और उसकी रक्षा में अपने खून और पसीने का योगदान दिया है भारत के मुसलमान। इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि मुसलमानों ने भारत को केवल अपना वतन कहा ही नहीं, बल्कि इसके लिए लड़ाई लड़ी, यहाँ के सामाजिक और वैज्ञानिक उत्थान में अपनी प्रतिभा समर्पित की, और हर संकट में राष्ट्र के साथ खड़े रहे। स्वतंत्रता संग्राम में अशफ़ाक उल्ला ख़ान ने हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को गले लगाया—क्योंकि भारत उनकी अंतिम पहचान था। आधुनिक भारत के आकाश में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक ऐसे सितारे बने, जिन्होंने मिसाइल विज्ञान से लेकर राष्ट्रपति पद तक, देश की गरिमा को दुनिया में ऊँचा उठाया। फिल्म, साहित्य, न्यायपालिका, खेल हर क्षेत्र में भारतीय मुसलमानों की चमक दिखती है, और वह इस बात का प्रमाण है कि यह समुदाय राष्ट्र निर्माण का अभिन्न स्तंभ है।
केवल प्रगति ही नहीं, बलिदान में भी यह समुदाय अग्रणी रहा है। 1965 के युद्ध में कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी वीरता से दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त कर परमवीर चक्र अर्जित किया उनकी शहादत आज भी सेना की प्रेरणा है। भारत की पुलिस-व्यवस्था में हजारों मुस्लिम अधिकारी आतंकवाद और अपराध के खिलाफ अग्रिम पंक्ति में अपनी जान जोखिम में डालते हैं। जम्मू-कश्मीर में डीएसपी मोहम्मद अय्यूब पंडित ने भीड़ के बीच अपनी शहादत दी; महाराष्ट्र ATS के कांस्टेबल सलमान खान ने ड्यूटी के दौरान विस्फोट-रोधी अभियान में प्राण न्योछावर किए। ये उदाहरण हज़ारों में से केवल कुछ हैं उन लाखों चेहरों के, जो वर्दी में अपने धर्म से पहले अपने देश की प्रतिष्ठा का रक्षा-सूत्र बाँधते हैं।
सवाल यह है कि ऐसे समर्पित इतिहास के बाद भी, हमारे ही समाज के कुछ शिक्षित युवक कब और कैसे हिंसा के रास्ते पर उतरने लगे? यह विरोधाभास तब और तीखा हो जाता है, जब हम याद करते हैं कि इस समुदाय के भीतर सुधार और आधुनिक शिक्षा का मशाल थामने वाले सर सय्यद अहमद ख़ान जैसे महान चिंतक हुए हैं। उन्होंने मुसलमानों को स्पष्ट चेतावनी दी थी कि यदि वे आधुनिक ज्ञान, विज्ञान और तर्कशीलता को अपनाए बिना अपने भीतर पिछड़ेपन और कट्टरता को बसाते रहेंगे, तो समुदाय के भविष्य की बुनियाद कमजोर पड़ जाएगी। सर सय्यद का मानना था कि शिक्षा खासकर वैज्ञानिक और आलोचनात्मक शिक्षा मानव को अज्ञान से, और अज्ञान को कट्टरता से बचाती है। वे यही संदेश देते रहे कि इस्लाम का सार मानवता, शांति और प्रगति में है हिंसा में नहीं।
आज जब हम देखते हैं कि कुछ युवा डॉक्टर, इंजीनियर या तकनीकी पृष्ठभूमि से होते हुए भी आतंकवाद के जाल में फँस रहे हैं तो यह उस संघर्ष की असफलता का संकेत नहीं, बल्कि उसे और अधिक दृढ़ता से अपनाने की आवश्यकता का प्रमाण है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षा केवल डिग्री या पदवी का नाम नहीं यह मूल्यों की यात्रा है, सोच की स्वतंत्रता है, और सबसे बढ़कर इंसानियत की रक्षा है।
इस हमले ने हमें एक बार फिर यह याद दिलाया है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है उस भाईचारे में, जो धर्म और भाषा के भेद से ऊपर उठकर एक-दूसरे के दुख-दर्द में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता है। जब आतंकवाद का लक्ष्य समाज में दरार पैदा करना हो तो हमारी एकता ही उसका सबसे सशक्त प्रतिरोध बनती है।
इसी संदर्भ में, एक वकील होने के नाते मैं यह महसूस करता हूँ कि लाल क़िले की घटना ने कानूनी और सामाजिक दोनों मोर्चों पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। मेरे कई अधिवक्ता मित्रों ने भी इस घटना के बाद गहरी चिंता व्यक्त की। उनका कहना है कि पहले आतंकवाद से जुड़े चेहरे अक्सर सीमा पार से आने वाले या फिर शिक्षा से दूर रह गए गुमराह व्यक्तियों के होते थे। लेकिन अब जब उच्च शिक्षित युवा डॉक्टर, इंजीनियर, तकनीकी विशेषज्ञ इस अंधेरी राह पर छलांग लगा रहे हैं, तो यह केवल सुरक्षा का नहीं, बल्कि हमारे देश की सामाजिक संरचना और सामूहिक अस्मिता का भी संकट है।
ऐसे समय में आवश्यक है कि भारत का मुस्लिम समुदाय जिसकी देशभक्ति का इतिहास स्वर्णाक्षरों में दर्ज है आगे आकर एक बार फिर यह प्रमाणित करे कि उनका प्रेम केवल जुबानी इज़हार नहीं, बल्कि राष्ट्र रक्षा और राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी में सक्रिय सहभागिता है। उन्हें यह दिखाना होगा कि भारतमाता के सम्मान की रक्षा में वे भी उतने ही दृढ़ हैं, जितने अन्य धर्मों के नागरिक; और इस महान राष्ट्र के भविष्य को संवारने में कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने को तत्पर हैं। यह कदम केवल राष्ट्र के प्रति निष्ठा का संदेश नहीं, बल्कि उन लोगों के खिलाफ सबसे बड़ा प्रतिरोध होगा जो धार्मिक आधार पर समाज की एकता को तोड़कर युवाओं को भटकाने की साज़िश करते हैं।