Chhattisgarh: हरे बस्तर में नीली क्रांति

सिर्फ कांकेर के पखांजूर इलाके में ही मछली पालन से 500 करोड़ का टर्न ओवर

Update: 2023-03-03 10:22 GMT

Chhattisgarh रायपुर 25 फरवरी 2023। हरे-भरे क्षेत्र के रूप में पहचान रखने वाले बस्तर, देश में नीली क्रांति के क्षेत्र में पहचान बनाई है। कोयलीबेड़ा विकासखण्ड के पंखाजुर मत्स्य उत्पादन के नाम से जाना पहचाना नाम बन गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार के नेतृत्व में यहां के किसानों ने क्लस्टर एप्रोच पर मछली पालन कर रहे हैं। बीज और मछली उत्पादन में कांकेर जिले ने पूरे देश और छत्तीसगढ़ की एक नई पहचान बनाई है। पखांजूर इलाके में मछली पालन से लगभग पांच हजार से अधिक मत्स्य पालक किसान जुड़े हैं। यहां मछली पालन किस वृहद तौर पर किया जा रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन किसानों के द्वारा मछली बीज, मछलियों के उत्पादन और परिवहन आदि में औसत वार्षिक टर्न ओवर 500 करोड़ रूपए से अधिक का है। इस क्षेत्र में लगभग 19,700 तालाबों, इनमें लगभग 99 प्रतिशत तालाबों में मछली पालन किया जा रहा है। इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी मेहनत और हुनर तथा शासन की योजनाओं के फलस्वरूप इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। इन परिवारों ने स्थानीय कृषकों की मदद से मछली पालन के काम को आगे बढ़ाया। अब यह कार्य पखांजूर विकासखण्ड के आसपास के गांवों में फैल चुका है। यहां मछली उत्पादन के साथ-साथ मत्स्य बीज का भी उत्पादन हो रहा है। यहां से महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में मछली बीज की सप्लाई की जाती है। अकेले मछली बीज से ही किसानों को करीब 125 करोड़ रुपए की आय होती है।


1700 तालाब बनाए गए

पखांजूर के बड़ेकापसी गांव की कहानी और भी उत्साहवर्धक है, आसपास के 5 गांवों में किसान मछली की सामूहिक खेती कर रहे हैं। इन गांवों में मछली पालन के लिए 1700 तालाब बनाए गए हैं। जिनमें 30 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है। गांव के लोग बताते हैं कि अब वे परंपरागत खेती-किसानी का काम छोड़कर लोग अब मछली पालन व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं, क्योकि कम लागत में अधिक मुनाफे का धंधा है। गांवों के उनके कई खेत अब मछली की खेती के लिए तालाब में बदल गए हैं। पखांजूर क्षेत्र में क्लस्टर एप्रोच में मछली पालन की यह तकनीक किसानों में लगातार लोकप्रिय होते जा रही है। इन गांवों में लगभग 12 हजार 500 हेक्टेयर का जल क्षेत्र मछली पालन के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा यहां 27 हेचरी, 45 प्राक्षेत्र, 1623 पोखर, 1132 हेचरी संवर्धन पोखर उपलब्ध हैं। यहां 72 करोड़ मछली बीज का उत्पादन हो रहा है। इनमें से 64 करोड़ मछली बीज देश के विभिन्न राज्यों को भेजा जाता है।


51000 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन

पखांजूर क्षेत्र में आधुनिक तकनीक से मछली पालन करने से यहां लगभग 51000 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हो रहा है। यहां प्रति हेक्टेयर जल क्षेत्र मत्स्य उत्पादन 8000 में 12000 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन लिया जा रहा है। इसके अलावा यहां 8 करोड़ पगेसियस मत्स्य बीज का उत्पादन भी हो रहा है। पगेसियस मत्स्य बीज केज कल्चर के जरिए मत्स्य पालन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है। सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और नीली क्रांति, मत्स्य पालन प्रसार योजना से किसानों को बड़ी मदद मिली और मार्गदर्शन भी मिला, जिससे पखांजूर क्षेत्र में मत्स्य पालन के व्यवसाय को रफ्तार मिली। इस कार्य अभी 5 हजार से अधिक मत्स्य कृषक सीधे जुड़े है। किसान बताते है कि नीली क्रांति योजना से मछुवारों को बहुत लाभ हुआ। तकनीकी सहायता के साथ उन्नत तकनीक से मछली पालन के लिए ऋण अनुदान मिलने से मछली पालन का व्यवसाय अब यहां वृहद् आकार ले चुका है।


मछली-बीज उत्पादन में पांचवें स्थान पर है छत्तीसगढ़

मछली उत्पादन में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। मछली बीज उत्पादन में पांचवें और मछली उत्पादन में छत्तीसगढ़ का स्थान देश में छठवां है। पिछले चार वर्षों में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के माध्यम से 9 चाइनीज हेचरी तथा 364.92 हेक्टेयर में संवर्धन क्षेत्र निर्मित किया गया है। मत्स्य बीज उत्पादन में 20 प्रतिशत बढ़कर 302 करोड़ स्टेर्ण्डड फ्राई इसी प्रकार मत्स्य उत्पादन 29 प्रतिशत बढ़कर 5.91 लाख टन हो गया है। मछली पालन के लिए 4200 केज जलाशयों में स्थापित किए गए है और मत्स्य कृषकों की भूमि पर 2410 हेक्टेयर में तालाब विकसित किए गए। इसके अलावा 6 फीड मील स्थापित किए गए हैं।

मछली पालन को कृषि का दर्जा

छत्तीसगढ़ शासन के मछली पालन विभाग द्वारा मत्स्य पालक किसानों को केजकल्चर बायोफ्लोक जैसा अत्याधुनिक तकनीक के जरिए मछली पालन के लिए ऋण अनुदान उपलब्ध कराने के साथ ही तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है। मत्स्य पालन को राज्य में खेती का दर्जा भी दिया गया है। इससे किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण, कृषि के समान ही रियायती दर पर विद्युत एवं अन्य सुविधाएं मिल रही हैं। कृषि का दर्जा मिलने से किसानों में उत्साह है।


मछुआ समूह को मिलेगी आर्थिक सहायता

रायगढ़ में कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने कृषि आधारित विभागों की बैठक लेकर कहा कि जिले में मछली उपभोग की तुलना में उत्पादन कम है, इस गैप को कवर करने पर कार्य करें। उन्होंने सहायक संचालक मत्स्य पालन को मछुआ समूहों का केसीसी बनाने एवं मछली पालको को नवीन तकनीकों की जानकारी तथा प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने पंजीकृत मछुआ समिति एवं स्व-सहायता समूह का पट्टा के आधार पर केसीसी बनाने अपेक्स बैंक को निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि केसीसी बनने से मछुआ समिति एवं स्व-सहायता समूहों को आर्थिक मदद मिलने से वे बेहतर कार्य करेंगे एवं मत्स्य उत्पादन में वृद्धि कर पाएंगे। कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने कहा कि केसीसी से किसानों एवं मछुआ समूह को आर्थिक सहायता प्रदान करने का कार्य करेगा, जिसके लिए सभी विभाग एवं बैंक प्राथमिकता से कार्य करें। उन्होंने मत्स्य विभाग को मत्स्य पालकों को प्रोत्साहित करने नए प्रयोग एवं बायोफ्लॉक का निर्माण करने के निर्देश दिए। जिससे किसान नवीन तकनीकों की जानकारी प्राप्त करने के साथ कम स्थान में भी मत्स्य पालन के लिए प्रेरित हो सके।

इसलिए बढ़ रहा मछली पालन

0 तालाबों में संतुलित पौष्टिक परिपूरक आहार का उपयोग

0 फर्टिलाइजर्स एवं सघन मत्स्य बीज संचयन

0 जलाशय एवं तालाबों में बड़े आकार के फिंगरलिंग मत्स्य बीज का संचयन

0 जलाशयों एवं तालाबों में कार्यरत मछुओं को कौशल उन्नयन प्रशिक्षण

0 मत्स्य पालकों को नाव-जाल देकर क्षमता बढ़ाई गई

0 मौसमी तालाबों में मत्स्य बीज संवर्धन

0 प्रदर्शन इकाईयों की स्थापना

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