Vinod Kumar Shukla: ईश्वर अब अधिक है...एम्स में भर्ती विनोद कुमार शुक्ल की यह रचना आपको झंकझोर देगी, पढिये उन्होंने अपनी भावनाओं को किस रुप में व्यक्त किया
Vinod Kumar Shukla: सादगी से भरा जीवन और उतनी ही सादगी से लेखन। ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त विख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल जीवन का आखिरी पड़ाव भी सादगी से गुजार रहे थे। इस समय वे गंभीर रूप से बीमार हैं। एम्स में उन्हें भर्ती कराया गया है।
Vinod Kumar Shukla: रायपुर। राजनांदगांव से जीवन और साहित्यिक यात्रा शुरू करने वाले विनोद कुमार शुक्ल का पहला उपन्यास नौकर की कमीज, इतनी ज्यादा चर्चा में आयी कि लोग कभी भूल नहीं पाएंगे। 1979 में प्रकाशित इस उपन्यास का फ्रेंच सहित कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद तक हो चुका है। इस उपन्यास के आधार पर विख्यात फिल्मकार मणिकौल द्वार फिल्म का निर्माण किया गया था, वर्ष 1999 में यही फिल्म केरल अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कृत हो चुकी है।
उपन्यास नौकर की कमीज के बिना विनोद शुक्ल की चर्चा व्यर्थ है। एम्स में जीवन से संघर्ष कर रहे विनोद जी के जल्द स्वस्थ होकर सकुशल घर लौटने के लिए दुआएं की जा रही हैं।
विनोद शुक्ल ने ही लिखा है...
ईश्वर अब अधिक है
सर्वत्र अधिक है
निराकार साकार अधिक
हरेक आदमी के पास बहुत अधिक है।
बहुत बंटने के बाद
बचा हुआ बहुत है।
अलग-अलग लोगों के पास
अलग-अलग अधिक बाक़ी है।
इस अधिकता में
मैं अपने ख़ाली झोले को
और ख़ाली करने के लिए
भय से झटकारता हूँ
जैसे कुछ निराकार झर जाता है।
इस कविता को जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार एक नया अर्थ समझ में आएगा, एक नया भाव दिखेगा। कुछ इसी तरह के व्यक्तित्व के हैं विनोद कुमार शुक्ल। जितनी बार उनसे मुलाकात करेंगे, बात करेंगे, हर बार वे नए लगेंगे, जीवन के प्रति हर बार नया दृष्टिकोण देंगे। उनके साहित्य ही नहीं, उनकी बातों में भी विशिष्टता झलकती है। उनका जादुई अंदाज और बात कहने का तरीका, सब-कुछ एक धरोहर ही तो है।
विनोद कुमार शुक्ल की गिनती देश के विख्यात साहित्यकारों से अलग, विशिष्ट रूप में होती है, जिन्होंने अपने हिंदी साहित्य में अनूठे शब्दों, वाक्यों का उपयोग किया। उपन्यास और कविता की विधाओं में उनका स्वाभाविक लेखन विशिष्ट शब्दों से लबरेज रहा है। शुक्ल का पहला कविता संग्रह 1971 में लगभग जय हिन्द था और इसके बाद 1979 में नौकर की कमीज़ चर्चित उपन्यास आया। इनके एक उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
राजनांदगांव से शुरू हुआ सृजन
एक जनवरी 1937 को वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में शुक्ल का जन्म हुआ था और अध्यापन को रोजगार के रूप में उन्होंने चुना था। इसके बाद भी उनका पूरा फोकस साहित्य सृजन में रहा, जो जीवनभर अनवरत चलता रहा है। लेखन के दौरान उन्होंने विशिष्ट शब्दों, वाक्य विन्यास बनाए। इतनी ही गहराई लिए उनकी संवेदना भी झलकती रही। यही विशेषता साहित्य प्रेमियों को आकर्षित करती रही है। एक जादुई यथार्थ ने उनकी लेखन शैली को संवारा और यही पढ़ कर महसूस किया जा सकता है। कवि के साथ सफल कथाकार विनोद शुक्ल के उपन्यास में आधुनिक युग के मानव और लोक गाथाओं का मिश्रण दिखता रहा है, जो अद्भुत कौशल का प्रमाण है। मध्यम वर्ग जीवन को उन्होंने लेखन में विलक्षण चरित्र से संवारा है, भारतीय वैश्विक साहित्य को अलग ही पहचान दी, समृद्ध किया है।
रचनाएं ऐसी कि चर्चा बंद नहीं होती
शुक्ल ने जीवनभर ऐसी साहित्यिक रचनाएं की, जिनकी चर्चा कभी थमी नहीं। नौकर की कमीज के बाद कहानियां आदमी की औरत और पेड़ पर कमरा...पर आधारित एक फिल्म का निर्माण राष्ट्रीय फिल्म इंस्टीट्यूट, पुणे द्वारा अमित दत्ता के निर्देशन में किया गया था। इस फिल्म को वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह 2009 में स्पेशल मेनशन अवार्ड से सम्मानित किया गया। उपन्यास - दीवार में एक खिड़की रहती थी, इतना ज्यादा उत्सुकता से भरा है कि इस पर नाट्य निर्देशक मोहन महर्षि ने नाट्य मंचन कराया।
विनोद शुक्ल द्वारा रचित पंक्तियां नीचे पढ़ें और समझें इस सादगी भरे साहित्यकार के गूढ़ अर्थ को-
विनोद शुक्ल लिखते हैं-
स्पर्श का सारा गुण अनुमान में भी होना चाहिए। जिसका अनुमान लगा रहे हैं उसे सचमुच स्पर्श कर रहे हैं। सच का अनुमान लगा रहे हैं और सच को स्पर्श कर रहे हैं। झूठ का अनुमान लगाते हैं और झूठ का स्पर्श करते हैं।
’जितनी बुराइयाँ हैं वे केवल इसलिए कि कुछ बातें छुपाई नहीं जाती और अच्छाइयाँ इसलिए हैं कि कुछ बातें छुपा ली जाती हैं।’
फिर विनोद जी एक जगह लिखते हैं-
अदब और कायदे आदमी को बहुत जल्दी कायर बना देते हैं। ऐसा आदमी झगड़ा नहीं करता।