Raipur Sky Walk: 15 साल में देश में कहीं स्काई वॉक नहीं बना, फिर रायपुर में इसके जरिये फ्लाई ओवर की संभावनाओं को गला क्यों घोंटा जा रहा...
Raipur Sky Walk: एक पूर्व मंत्री के जिद की वजह से नियम-कायदे और उपयोगिता को ताक पर रखते हुए स्काई वॉक का आधे-अधूरे ढांचा यमराज की तरह खड़ा कर दिया गया। इस पर अभी तक 50 करोड़ फूंका जा चुका है, सरकार ने अब इसे कंप्लीट करने के लिए 37 करोड़ की स्वीकृति और दे दी है। जाहिर है, इस पैसे में प्रायवेट स्कूल के लेवल के रायपुर में 10 सरकारी स्कूल बन सकते थे। मगर इस 37 करोड़ को ऐसे मद में व्यय किया जा रहा, जिसकी रायपुर शहर का एक व्यक्ति उपयोगी नहीं समझ रहा।
Raipur Sky Walk
Raipur Sky Walk: रायपुर। ये जानकार आपको हैरानी होगी कि देश में पिछले 15 साल में एक भी स्काई वॉक नहीं बना है। 20 साल पहले बंगलोर में आखिरी स्काई वॉक बना था। मुंबई और दिल्ली में उससे पहले बने हैं, तो इसलिए कि वहां सिक्स लेन, एट लेन बेहद व्यस्त सड़कें हैं। वहां ग्रीन सिग्नल होने पर गाड़ियां इतनी तेज चलती हैं कि सड़क पार करना जानलेवा रहता है। मगर रायपुर के आंबेडकर अस्पताल, शास्त्री चौक, जयस्तंभ चौक के पास कौन ऐसा आदमी होगा, जो 20 फुट सीढ़ी चढ़कर स्काई वॉक पर पहुंचेगा, ये सवाल उनलोगों से पूछना चाहिए, जो स्काई वॉक को अपने प्रतिष्ठा का सवाल बना चुके हैं।
एक्सेलेटर की सुविधा
पीडब्लूडी के अधिकारियों का कहना है कि स्काई वॉक पर चढ़ने के लिए एक्सेलेटर लगाए जाएंगे। मगर वास्तविकता यह है कि रेलवे का एक्सेलेटर कितना दिन चलता है। आए दिन खराब मिलता है। एक्सेलेटर मॉल वगैरह में ही चलता है, जहां मेंटेनेंस ठीकठाक है। फिर पैदल चलने वाले रायपुर के बाहर के अधिकांश गांव वाले या साधन विहीन लोग होते हैं। ये वर्ग एक्सेलेटर पर चढ़ने वाला नहीं होता। वो उसे दूर से देखकर भाग जाएगा, मगर एसी में रहने और लग्जरी गाड़ियों में चलने वालों को ये सामान्य बात कैसे समझाई जाए।
फ्लाई ओवर की संभावनाओं की मौत
सत्ता के मद में आकर कई बार लोग खुदा समझ लेते हैं। स्काई वॉक भी उसी का नमूना है। न रायपुर नगर निगम इसे रोक पाया और न और सिस्टम में बैठे बड़े लोग। जांच इस बात की होनी चाहिए कि फ्लाई ओवर की संभावनाओं को समाप्त करने स्कॉई वॉक बनाने की साजिश तो नहीं की गई। जाहिर है, तेलीबांधा से टाटीबंध तक फ्लाईओवर का निर्माण प्रस्तावित था। इससे जीई रोड के व्यापारी असहज थे। इसका विरोध भी किया गया था कि फ्लाई ओवर बनने से उस इलाके का बिजनेस डाउन हो जाएगा। स्काई वॉक बनने से इस रोड पर अब फ्लाईओवर कभी नहीं बन पाएगा। जबकि, रायपुर में इस समय सबसे अधिक कनेक्टिविटी की जरूरत है। खासकर, मोवा, शंकर नगर, अवंती विहार, देवेंद्र नगर, सिविल लाईन, तेलीबांधा के लोगों को अगर टाटीबंध या कबीर नगर जाना हो तो रिंग रोड या फिर स्टेशन चौक, गुढ़ियारी का व्यस्त इलाका होकर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। तेलीबांधा से टाटीबंध तक अगर फ्लाई ओवर बन गया तो पांच-से-सात मिनट में एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचा जा सकता है। अभी स्थिति यह है कि इन इलाकों का ट्रैफिक देखकर लोग सिहर जाते है।
रायपुर की जलवायु ऐसी नहीं है कि कोई व्यक्ति तेज धूप या बारिश में ऊँचाई तक सीढ़ियां चढ़कर स्काई वॉक पर चलना पसंद करे। गर्मी के महीनों में जब सड़कों पर चलना तक मुश्किल होता है, तब लोग स्वेच्छा से ऊँचाई चढ़ने का विकल्प क्यों चुनेंगे? वहीं दूसरी ओर, मॉल और एयरपोर्ट जैसे स्थानों पर जहाँ एस्केलेटर और एयर कंडीशनिंग की सुविधा होती है, वहाँ लोग ऊपर नीचे आते-जाते हैं।
तकनीकी रूप से देखा जाए तो दिल्ली के कश्मीरी गेट, मुंबई के घाटकोपर, या बैंगलोर के मेट्रो स्टेशन से जुड़े स्काई वॉक्स अपनी लोकेशन, ट्रैफिक वॉल्यूम और सार्वजनिक परिवहन से कनेक्टिविटी की वजह से सफल हैं। वहाँ स्काई वॉक न सिर्फ भीड़ को नियंत्रित करने का काम करते हैं, बल्कि रोजाना हजारों यात्रियों की जीवनरेखा भी हैं। इसके विपरीत रायपुर में स्काई वॉक की जगह, कनेक्टिविटी और उपयोगिता पर स्पष्टता का अभाव रहा है।
इसकी एक और आलोचना इसकी पारदर्शिता और जनभागीदारी की कमी को लेकर भी होती रही है। शहर की जनता को यह बताए बिना कि वास्तव में इसका उपयोग कौन करेगा, इसकी मंजूरी दे दी गई। अब जब इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं, तब प्रशासन इसे किसी तरह पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है लेकिन मूल प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि क्या यह निवेश सही दिशा में किया गया है?