NEET UG Scam: फर्जी EWS सर्टिफिकेट से मेडिकल सीटें कब्जाने का खेल, तहसील कार्यालय शक के घेरे में, गिरोह सक्रिय होने की आशंका
NEET UG Scam: फर्जी EWS प्रमाण पत्र के जरिए मेडिकल कालेज में एडमिशन का मामला अब गरमाने लगा है। मेडिकल कालेज में एडमिशन लेने वाली स्टूडेंट्स ने तहसीलदार कार्यालय से ही सर्टिफिकेट बनवाने का खुलासा किया है। स्टूडेंंट्स के खुलासे के बाद शक की सुई तहसीलदार कार्यालय की ओर घुमने लगी है। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के अलावा तहसीलदार कार्यालय के सरकारी कर्मचारियों की भूमिका पर अब सवाल उठने लगा है। बता दें कि इस फर्जीवाड़े से NPG.NEWS ने सबसे पहले पर्दा उठाया था। NPG.NEWS की खबर के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया और जांच शुरू की।
NEET UG Scam
NEET UG Scam: बिलासपुर। मेडिकल कालेज में एडमिशन के लिए जारी फर्जी EWS प्रमाणपत्र हासिल करने किए गए फर्जीवाड़ा ने सोमवार को नया मोड़ ले लिया। तहसीलदार के समक्ष पेश होकर तीनों आवेदकों और उनके परिजनों ने बयान दर्ज कराए। उनका कहना है कि प्रमाणपत्र उन्होंने नियमित प्रक्रिया के तहत हासिल किया था। ऑनलाइन आवेदन करने के बाद प्रमाणपत्र तहसील कार्यालय से ही जारी हुआ था। उन्होंने साफ कहा कि सील और हस्ताक्षर की विसंगति से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
तहसीलदार ने आवेदकों से सभी मूल दस्तावेज मांगे और बारीकी से जांच की। इस दौरान परिजनों ने स्पष्ट किया कि यदि सील या हस्ताक्षर में कोई गड़बड़ी है तो वह कार्यालय के भीतर की हेराफेरी है, जिसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। दूसरी ओर प्रशासनिक स्तर पर यह बड़ा सवाल उभर रहा है कि जब आवेदन ऑनलाइन दर्ज था तो उसकी फाइल तहसील रिकॉर्ड में क्यों नहीं मिली। फिलहाल जांच समिति ऑनलाइन डाटा और तहसील फाइलों का मिलान कर रही है।
तहसील में गिरोह सक्रिय होने की आशंका-
जांच की शुरुआती रिपोर्ट में संकेत मिले हैं कि तहसील कार्यालय के भीतर संगठित गिरोह काम कर रहा है। प्रमाणपत्र पर अलग-अलग सील और हस्ताक्षर की मौजूदगी यह साबित करता है कि तहसील कार्यालय में फर्जीवाड़े की जड़ें काफी गहरी है। अब प्रशासन यह पता लगाने में जुटा है कि किन कर्मचारियों की मिलीभगत से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया। चर्चा तो इस बात की भी हो रही है कि जांच की आंच बड़े अफसरों तक भी पहुंच सकती है।
रीडर पर गहराया संदेह-
पूरे मामले में तहसील कार्यालय के रीडर की भूमिका सबसे संदिग्ध मानी जा रही है। जांच समिति ने उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आशंका है कि आवेदन और दस्तावेजों की हेराफेरी इसी स्तर पर हुई। उसकी गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखी जा रही है और उसके बयान भी जल्द दर्ज किए जाएंगे।
रिकॉर्ड सिस्टम पर उठे गंभीर सवाल-
ऑनलाइन आवेदन दर्ज होने के बावजूद तहसील कार्यालय में फाइलें न मिलना, रिकॉर्ड प्रबंधन की खामियों को उजागर करता है। यदि आवेदन वैध तरीके से जमा हुआ था तो उसका रिकॉर्ड गायब कैसे हुआ? इससे यह संदेह और गहरा हो गया है कि डिजिटल और कागजी रिकार्ड में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई। अब जब मामला सार्वजनिक हो गया है तो रिकॉर्ड को “सही” करने की कोशिशें तेज हो गई हैं।
पूरा घटनाक्रम-
शैक्षणिक सत्र 2025-26 में मेडिकल कालेज में एडमिशन के लिए तीन छात्रों ने ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र जमा किया था। चिकित्सा शिक्षा आयुक्त कार्यालय, रायपुर ने सात विद्यार्थियों के दस्तावेजों को सत्यापन के लिए भेजा। जांच में तीन छात्राओं के आवेदन तहसील रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं थे। इसके बाद विवाद गहराया और कलेक्टर के निर्देश पर आवेदकों के बयान दर्ज किए गए।