Land Guidelines New Rules: छत्तीसगढ़ में जमीनों के गाइडलाइन नियमों में ऐतिहासिक सुधार, जमीनों को इधर-उधर, सिंचित-असिंचित दिखा नहीं होगा अब खेला, भारतमाला समेत सरकारी अधिग्रहणों में अरबों की लगी चपत...
Land Guidelines New Rules: पंजीयन विभाग ने जमीनों के गाइडलाइन नियमों में ऐतिहासिक सुधार करते हुए 24 साल पुराने 70 नियमों को हटाकर अब सिर्फ 17 कर दिया है। नियमों के सरलीकरण से जमीनों की रजिस्ट्री में भ्रष्टाचार पर बड़ी मार पड़ेगी। अब सड़क की जमीन को दूर, सिंचित-असिंचित, एक फसली-दो फसली दिखा रजिस्ट्री में अब खेला नहीं हो पाएगा। भारतमाला समेत कई प्लांटों के लिए जमीन अधिग्रहण में बड़ा खेला किया गया। जिस जमीन में कुछ भी नहीं था, उसमें सागौन के पेड़ और मार्बल लगे मकान दिखाकर करोड़ों रुपए का मुआवजा प्राप्त कर लिया गया। राजस्व और पंजीयन विभाग के अधिकारी इसी के जरिये बड़ा खेला करते थे, जो अब बंद हो जाएगा। खबर के सबसे देखिए पंजीयन विभाग का आदेश
Land Guidelines New Rules: रायपुर। पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी का अब तक का यह सबसे बड़ा रिफार्म होगा। 2001 में गाइडलाइन नियम बनाए गए थे, उनमें इतनी जटिलाएं थी कि रजिस्ट्री में न केवल आम आदमी को परेशान होना पड़ता था बल्कि बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता था। बड़े रसूखदार लोग इन्हीं नियमों की आड़ में रजिस्ट्री अधिकारियों पर प्रेशर डाल गाइडलाइन रेट कम करा लेते थे। मसलन, किसी की जमीन कॉलोनी के भीतर है, कई मामलों में उसे भी कृषि भूमि की दर पर रजिस्ट्री कर दी जाती थी। मगर अब ऐसा नहीं हो सकेगा। भारतमाला परियोजना में बनी सड़कों या रायगढ़ के बजरमुंडा में सरकारी बिजली कंपनी के लिए ली गई जमीनों में इसी तरह करोड़ों, अरबों रुपए का खेल किया गया।
यहां देखिए आदेश
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बता दें, गाइडलाइन दर निर्धारण इस तरह किया जाता है, जैसे संपत्ति पर वर्गमीटर दर तथा हेक्टेयर दर कब लगेगा...जमीन पर भवन होने पर उसका मूल्यांकन कैसे किया जाएगा...वृक्ष, पेड़, पौधे होने पर उसका मूल्यांकन कैसे किया जाएगा...भूमि पर अलग-अलग प्रकार की खेती किए जाने पर उसका मूल्यांकन कैसे होगा आदि।
पंजीयन विभाग के महानिरीक्षक की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय समिति की बैठक 7 अक्टूबर 2025 को हुई थी। इसमें गाइडलाइन नियमों का पुनरीक्षण किया गया हैं। बैठक में इस स्वीकार किया गया कि अधिक संख्या में नियमों के होने के कारण दस्तावेज लेखकों एवं पंजीयन अधिकारियों को एक ही स्थान पर गाइडलाइन दर निर्धारण करने के लिए कई विकल्प मिलते थे। इसमें सहमति बनी कि 70 उपनियमों को कम करके 17 कर दिया जाए।
अब पहले के नियमों से अनावश्यक प्रावधान हटा दिए गए हैं। जैसे नलकूप होने पर, सिंचित होने पर तथा दो फसली होने पर प्रत्येक स्थिति में अलग-अलग बाजार मूल्य में बढ़ोत्तरी होती थी, जबकि व्यवहार में अगर किसी भूमि में नलकूप होगा तो स्वाभाविक रूप से वह सिंचित एवं दो फसली भी होगा। सिंचित भूमि को असिंचित या दो फसली भूमि का एक फसली भूमि पर मूल्यांकन करने की घटनाएं भी प्रकाश में आती रहती थी।
पहले के नियमों के प्रावधान इतने जटिल थे कि दूसरे विभाग के अधिकारियों को भी समझ में नहीं आते थे। उदाहरण के तौर पर वर्गमीटर दर की गणना का प्रावधान। पूर्व उपबंध में नगर निगम क्षेत्र में 0.202 हे., नगर पालिका में 0.150 हे. एवं नगर-पंचायत में 0.100 हे. तक कृषि भूमि का वर्गमीटर दर पर गणना का प्रावधान था। नवीन उपबंध में नगर-निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत में 0.14 हे. तक कृषि भूमि का एक समान रीति से मूल्यांकन का प्रावधान किया गया है।
नए नियमों से ये फायदे
पहले के नियमों में सात प्रकार के निर्मित संरचनाओं के अलग अलग दर निर्धारित थे, जिसके कारण लोगों में भ्रम पैदा होता था। नवीन उपबंध में केवल दो प्रकार के निर्मित संरचनाओं के दर रखे गये है। पूर्व उपबंध में नगर-निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत तथा ग्राम पंचायत में सभी के लिए निर्मित संरचनाओं के दर अलग-अलग होते थे। इस अंतर को समाप्त किया गया है।
नए नियमों के प्रावधान इस प्रकार से हैं कि उन्हें बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के सॉफ्टवेयर के माध्यम से लागू कराया जा सके, ताकि निष्पक्षतावाद को बढ़ावा मिले। पूर्व उपबंध में सिंचित और असिंचित भूमि के बीच कोई अनुपात नहीं था, तथा दरें अतार्किक रूप से निर्धारित होती थी। नए नियमों में प्रावधान किया गया है कि असिंचित भूमि का सिंचित भूमि के बाजार मूल्य से 20 प्रतिशत् कमी कर मूल्यांकन किया जाएगा।
अव्यवहारिक नियम
पूर्व उपबंध के प्रावधान इस प्रकार थे कि छोटी जमीन का बाजार मूल्य, बड़ी जमीन के बाजार मूल्य से कई गुना अधिक होता था, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। जैसे- नगर-निगम क्षेत्र में अगर जमीन 50 डिसमिल हैं तो उसका बाजार मूल्य 20 लाख तथा 51 डिसमिल जमीन का बाजार मूल्य 3 लाख रूपये आता था। वास्तविक जीवन में ऐसा होना कदापि संभव नहीं है। नवीन उपबंध में इंकिमेंटल आधार पर गणना का प्रावधान किया गया है, जैसे-नगर-निगम क्षेत्र में अगर जमीन 50 डिसमिल हैं तो उसका बाजार मूल्य 20 लाख तथा 51 डिसमिल जमीन का बाजार मूल्य 3 लाख रूपये आता था। वास्तविक जीवन में ऐसा होना कदापि संभव नहीं है। नवीन उपबंध में इंकिमेंटल आधार पर गणना का प्रावधान किया गया है जैसे 35 डिसमिल तक वर्गमीटर दर और उससे बड़ी भूमि हो तो 35 डिसमिल से बाद जैसे 35 डिसमिल तक वर्गमीटर दर और उससे बड़ी भूमि हो तो 35 डिसमिल से बाद वाले शेष रकबे पर हेक्टेयर दर। इस स्थिति में पूर्व उदाहरण के दर पर 35 डिसमिल जमीन का मूल्यांकन 14 लाख तथा 36 डिसमिल का मूल्यांकन 14,05,882/रू. होगा। इस प्रकार बड़ी जमीन का मूल्यांकन हमेशा छोटी जमीन से अधिक होगा।
नियम ढंग से परिभाषित नहीं
2001 के नियमों में तकनीकी शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया था, जैसे “मुख्य मार्ग“ शब्द की उपबंध में कोई परिभाषा नहीं थी। इसके कारण मुख्य मार्ग का अर्थ अलग-अलग निकाला जाता था। नये उपबंध में 18 मीटर या इससे चौड़ी सड़क को मुख्य मार्ग के रूप में परिभाषित किया गया है। पूर्व उपबंध में वाणिज्यिक इकाई द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर सम्पूर्ण राज्य में असिंचित के लिए 6 लाख, सिंचित के लिए 8 लाख एवं दो फसली के लिए 10 लाख रूपय का प्रावधान था, जो अव्यवहारिक था, क्योंकि किसी केता विशेष के लिए संपूर्ण राज्य में एक समान दर नहीं हो सकती, इसलिए इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। वाले शेष रकबे पर हेक्टेयर दर। इस स्थिति में पूर्व उदाहरण के दर पर 35 डिसमिल जमीन का मूल्यांकन 14 लाख तथा 36 डिसमिल का मूल्यांकन 14,05,882/- रू. होगा। इस प्रकार बड़ी जमीन का मूल्यांकन हमेशा छोटी जमीन से अधिक होगा।
पूर्व उपबंध में प्रयुक्त होने वाले तकनीकी शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया था, जैसे “मुख्य मार्ग“ शब्द की उपबंध में कोई परिभाषा नहीं थी। इसके कारण मुख्य मार्ग का अर्थ अलग-अलग निकाला जाता था। नये उपबंध में 18 मीटर या इससे चौड़ी सड़क को मुख्य मार्ग के रूप में परिभाषित किया गया है। पूर्व उपबंध में वाणिज्यिक इकाई द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर सम्पूर्ण राज्य में असिंचित के लिए 6 लाख, सिंचित के लिए 8 लाख एवं दो फसली के लिए 10 लाख रूपय का प्रावधान था, जो अव्यवहारिक था, क्योंकि किसी केता विशेष के लिए संपूर्ण राज्य में एक समान दर नहीं हो सकती, इसलिए इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।