Kanker News: आजादी के 77 साल बाद भी सड़क से महरूम गांव! कीचड़ में 4 किमी पैदल चली गर्भवती महिला, नहीं पहुंच सकी एंबुलेंस
Kichad Me Paidal Chali Garbhvati Mahila: कांकेर: आजादी के 77 साल बाद भी छत्तीसगढ़ के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखंड अंतर्गत आने वाले पंडरीपानी गांव की एक गर्भवती महिला को चार किलोमीटर तक कीचड़ भरी टूटी सड़क पर पैदल चलना पड़ा, क्योंकि एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी। यह वाकया न केवल ग्रामिण जीवन की कठिनाईयों को उजागर करता है, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता पर भी सवाल उठाता है।
Kichad Me Paidal Chali Garbhvati Mahila: कांकेर: आजादी के 77 साल बाद भी छत्तीसगढ़ के कई गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखंड अंतर्गत आने वाले पंडरीपानी गांव की एक गर्भवती महिला को चार किलोमीटर तक कीचड़ भरी टूटी सड़क पर पैदल चलना पड़ा, क्योंकि एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी। यह वाकया न केवल ग्रामिण जीवन की कठिनाईयों को उजागर करता है, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता पर भी सवाल उठाता है।
गांव से 4 किलोमीटर पहले रुकी एंबुलेंस
नौ माह की गर्भवती सुनीता कोमरा को मंगलवार को अचानक प्रसव पीड़ा शुरु हुई। परिवार ने 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल किया, लेकिन बदहाल और दलदली सड़क की वजह से एंबुलेंस गांव से चार किलोमीटर पहले ही रूक गई। ऐसे में महिला को पति और चार अन्य महिलाओं के साथ कीचड़ में लथपथ रास्ते पर पैदल चलना पड़ा। किसी तरह वे लोग परतापुर पहुंचे, जहां से एंबुलेंस ने उन्हें पखांजूर सिविल अस्पताल पहुंचाया।
"सड़क नहीं, इलाज नहीं, बस समस्याएं हैं": ग्रामीणों का फूटा आक्रोश
ग्रामीण देवनिधि नरवास ने बताया कि गांव की हालत कई वर्षों से ऐसी ही है। सरपंच और सचिव को बार-बार आवेदन दिए गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों ने पंचायत निधियों के उपयोग की जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सड़क बनी होती तो महिला की हालत और बिगड़ सकती थी।
अधिकारियों का बचाव, जनसंख्या का बहाना
इस गंभीर मामले पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भानुप्रतापपुर डिवीजन के प्रभारी जागेश्वर ध्रुव ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि '500 से अधिक वाले गांवों को प्राथमिकता दी गई है । अब 100 से अधिक आबादी वाले गांवों को भी सड़क से जोड़ा जा रहा है। पंडरीपानी गांव की आबादी 100 से कम है इसलिए वहां फिलहाल सड़क नहीं बन पाई।' हालांकि ग्रामिणों का कहना है कि ये सिर्फ बहाना है। सरकार की कई अन्य योजनाएं ऐसे गांवों में लागू हो चुकी है, जहां आबादी इससे भी कम है।