Bilaspur Highcourt News: राजधानी के मेकाहारा अस्पताल में एक बेड पर दो प्रसूताएं, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

Bilaspur Highcourt News: राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा में एक ही बेड पर दो– दो प्रसूताओं और उनके नवजात को रखने की बरती जा रही लापरवाही को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने स्वतः संज्ञान लिया है। जनहित याचिका के रूप में सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव से मामले में शपथ पत्र में जवाब मंगाया गया है।

Update: 2025-10-31 05:40 GMT

CG Highcourt News

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। राजधानी रायपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल (मेकाहारा) के प्रसूति वार्ड की बदहाल स्थिति और एक ही बेड में दो प्रसूताओं को उनके शिशुओं के साथ रखने को लेकर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “प्रसूताओं की गोपनीयता, स्वच्छता और गरिमा की रक्षा अनिवार्य है, यह राज्य का संवैधानिक दायित्व है।

अदालत ने इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को शपथपत्र सहित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। वहीं, अस्पतालों में किट और रीएजेंट की कमी पर छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन CGMSC के प्रबंध संचालक से भी जवाब मांगा गया है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 नवंबर को निर्धारित की है।

राजधानी के सबसे बड़े सरकारी मेकाहारा अस्पताल में अव्यवस्थाओं को लेकर प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट को हाई कोर्ट ने जनहित याचिका मान स्वतः संज्ञान लिया है।मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में मेकाहारा अस्पताल के गायनेकोलॉजी वार्ड की दयनीय स्थिति उजागर की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, 150 बेड वाला गायनोलॉजी वार्ड पूरी तरह से भरा था। वार्ड नंबर 5 और 6 एक भी बेड खाली नहीं था और बेड की कमी के चलते एक ही बेड पर दो-दो प्रसूताएं अपने नवजात बच्चों के साथ लेटी मिलीं।

अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक, यहां औसतन हर घंटे एक डिलीवरी होती है , यानी करीब 24 डिलीवरी (सिजेरियन और नॉर्मल मिलाकर) रोजाना हो थे है। भीड़ और अव्यवस्था की इस स्थिति के चलते न केवल स्वच्छता बल्कि मातृ स्वास्थ्य सुरक्षा में भी खतरा उत्पन हो सकता है।

परिजनों में नाराजगी और गुस्सा, साथ में मजबूरी भी

बेड की कमी से परेशान मरीजों के परिजनों में नाराजगी और आक्रोश देखने को मिला। जिन्हें अस्पताल प्रबंधन ने शांत करवाया। वही इससे पहले भी अस्पताल में अव्यवस्था और सर्जरी में देरी की घटनाएं सामने आई है। अस्पताल परिसर और पार्किंग में दिन रात मरीजों के परिजनों के गुजारने के मामले भी आए है। मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में अस्पताल के अधीक्षक हवाले से बताया गया था कि राज्य के अलग-अलग जिलों से रेफर होकर आने वाली गर्भवती महिलाओं की भी भर्ती कर डिलीवरी करवाई जाती है। जिसके चलते मरीजों की संख्या अधिक होने से बेड की कमी हो जाती है। अस्पताल अधीक्षक की तरफ से मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इसके बावजूद प्रसूताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है।

अस्पताल अधीक्षक के दावे के अनुसार नया मातृत्व एवं बाल अस्पताल निर्माणाधीन है, जिससे भविष्य में बेड की कमी और भीड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो जाएगी। अदालत के मामले की अगली सुनवाई 6 नवंबर को होगी।

अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि “स्वास्थ्य का अधिकार केवल नीति दस्तावेजों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रसूताओं को स्वच्छ, सम्मानजनक और सुरक्षित वातावरण में चिकित्सा सुविधा मिलना चाहिए।” बेंच ने यह भी कहा कि अस्पतालों में महिला मरीजों की गोपनीयता और गरिमा से समझौता अस्वीकार्य है।

Tags:    

Similar News