Bilaspur Highcourt News: हाई कोर्ट ने BSP प्रबंधन को जारी किए निर्देश, कहा: सात साल से अधिक समय तक नहीं दिखता व्यक्ति, तो माना जाता है मृत

Bilaspur Highcourt News: जस्टिस संजय के अग्रवाल व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इंडियन एविडेंस एक्ट में दिए गए प्रावधानों का हवाला देते हुए महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि एक्ट में दी गई व्यवस्था के तहत अगर कोई व्यक्ति सात साल से अधिक समय तक नहीं देखा जाता है तो उसे मृत मान लिया जाता है।

Update: 2025-09-27 07:25 GMT

High Court News

Bilaspur Highcourt News: बिलासपुर। भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत कर्मचारी बीते 15 साल से लापता है। बीएसपी प्रबंधन मृत्यु प्रमाण पत्र पेश करने दबाव बना रहा है। बीएसपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कर्मचारी की पत्नी की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को यह जानकारी दी। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने बीएसपी प्रबंधन की याचिका को खारिज करते हुए 15 साल से लापता सीनियर टैक्निशियन की पत्नी को सैलेरी सहित पेंशन व ग्रेज्युटी का भुगतान करने का निर्देश बीएसपी प्रबंधन को दिया है।डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में इंडियन एविडेंस एक्ट में दिए गए प्रावधानों का हवाला भी दिया है।

बीएसपी प्रबंधन ने जब याचिकाकर्ता को पेंशन सहित अन्य सुविधाएं देने से इंकार किया तब प्रबंधन के फैसले के खिलाफ उसने कैट में मामला दायर किया था। कैट ने बीएसपी प्रबंधन को लापता कर्मचारी की पत्नी को सभी सुविधाएं देने का निर्देश दिया था। कैट के फैसले को प्रबंधन ने चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने 15 साल पहले लापता हुए सीनियर टेक्नीशियन की पत्नी को बड़ी राहत दी है। सेल व बीएसपी लापता कर्मचारी की सेवा समाप्ति के आदेश को निरस्त करने के केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी सात साल से अधिक समय से लापता है और उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो उसे कानूनी रूप से मृत माना जाएगा। कोर्ट ने प्रबंधन को आदेश दिया कि वह लापता कर्मचारी की पत्नी को तीन महीने के भीतर बकाया वेतन, फैमिली पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट का भुगतान करे।

0 ये है मामला

भिलाई स्टील प्लांट के राजहरा माइंस में सीनियर टेक्नीशियन (इलेक्ट्रिकल) के पद पर कार्यरत विकास कोठे 14 जनवरी 2010 को मानसिक रूप से बीमार होने के बाद लापता हो गए थे। उनकी पत्नी चंदा कोठे ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। बीएसपी ने कर्मचारी के लापता होने की जानकारी होने के बावजूद चार्जशीट जारी कर दी और एकतरफा विभागीय जांच कर 17 सितंबर 2011 को उन्हें सेवा से हटा दिया। कर्मचारी की पत्नी ने इस आदेश के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण यानी कैट में याचिका लगाई। कैट ने कर्मचारी के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर पत्नी को सभी लाभ देने के निर्देश दिए। मामले की सुनवाई के दौरान बीएसपी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि कर्मचारी की पत्नी को सिविल कोर्ट से पति को मृत घोषित कराने का सर्टिफिकेट लाना होगा। पत्नी को याचिका प्रस्तुत नहीं करने का कोई अधिकार है। डिवीजन बेंच ने बीएसपी के इन तर्कों को खारिज कर दिया। इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 की धारा 108 में दिए गए प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा, यदि कोई व्यक्ति सात साल से अधिक समय तक नहीं देखा जाता है, तो उसे मृत मान लिया जाता है। इसके लिए सिविल कोर्ट के अलग से डिक्री की आवश्यकता नहीं है, खासकर तब जब लापता होने का तथ्य विवादित न हो। मामले की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने माना, परिवार के भरण पोषण के लिए पत्नी अपने पति पर निर्भर थी। चूंकि बर्खास्तगी का असर सीधे उनकी आजीविका पर पड़ा है, इसलिए उन्हें अपने पति की सेवा समाप्ति को चुनौती देने का पूरा अधिकार है।

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