Former IPS Sanjiv Bhatta: पूर्व IPS को 20 साल की सजा, 28 साल पुराने इस मामले में कोर्ट का फैसला, जानिए पूरी कहानी...

Former IPS Sanjiv Bhatta: पालनपुर कोर्ट ने एनडीपीएस मामले में बुधवार को दोषी करार दिया था। उन्हें गुरुवार को सजा सुनाए जाने के लिए पालनपुर सेशन कोर्ट में पेश किया गया था। इस दौरान संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट भी वहां मौजूद थीं।

Update: 2024-03-28 15:50 GMT

अहमदाबाद। गुजरात के चर्चित व 1988 कैडर के पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को कोर्ट ने 20 साल की सजा और 2 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। ये सजा 1996 के एनडीपीएस मामले में पालनपुर द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने सुनाई है। पूर्व अधिकारी को अलग-अलग 11 धाराओं के तहत 20 साल की कैद और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। वहीं, जुर्माना न देने पर एक वर्ष अतिरिक्त साधारण कारावास का प्रावधान किया गया है। इससे पहले बुधवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को एनडीपीएस मामले में दोषी करार दिया था।

संजीव भट्ट के खिलाफ चल रहा ड्रग्स से जुड़ा ये मामला 28 साल पुराना है। ये मामला तब सामने आया जब सुमेर सिंह राजपुरोहित को गिरफ्तार किया गया। ये मामला सुमेर सिंह राजपुरोहित की गिरफ्तारी के बाद सामने आया था। राजस्थान के वकील सुमेरसिंह राजपुरोहित को साल 1996 में एनडीपीएस अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।

जानिए पूरा मामला

1996 में पुलिस ने पालनपुर के एक होटल के कमरे से ड्रग्स की बरामदगी की थी। पुलिस के अनुसार, आरोपित वकील भी उसी कमरे में रह रहा था। उस समय भट्ट बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत थे। उनके अधीन जिला पुलिस ने राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को इस मामले में एनडीपीएस एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था। उस समय भट्ट ने यह दावा किया था कि पालनपुर के जिस होटल के कमरे से ड्रग्स को जब्त किया गया, वकील उसी में रह रहा था।

बाद में राजस्थान पुलिस ने कहा कि राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस ने राजस्थान के पाली में स्थित एक विवादित संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया था। इसी वजह से पुरोहित को झूठा फंसाया गया। मामले में पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर आइबी व्यास ने गहन जांच की मांग करते हुए1999 में गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था। भट्ट को राज्य के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने सितंबर 2018 में एनडीपीएस अधिनियम के तहत मादक पदार्थ मामले में गिरफ्तार किया था और तब से वह पालनपुर उप-जेल में हैं। पिछले साल, पूर्व आईपीएस अधिकारी ने 28 साल पुराने मादक पदार्थ मामले में पक्षपात का आरोप लगाते हुए मुकदमे को किसी अन्य सत्र अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने निचली अदालत की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के लिए निर्देश भी मांगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि भट्ट की याचिका खारिज कर दी थी।

संजीव भट्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर विरोधी

संजीव भट्‌ट ने अपनी पुलिस सेवा करियर की शुरुआत 1990 में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में जामनगर जिले से की थी। इस दौरान गुजरात में हुए दंगे को नियंत्रित करने के लिए 150 लोगों को हिरासत में लिया। हिरासत में लिए गए लोगों में से एक प्रभुदास वैश्नानी की अस्पताल में भर्ती होने के कुछ दिनों बाद किडनी फेल होने से मृत्यु हो गई। उनके भाई ने भट्ट और छह अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्हें पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया गया। एक अन्य व्यक्ति विजयसिंह भट्टी ने आरोप लगाया कि भट्ट ने उसकी पिटाई की थी।। इस मामले में भट्‌ट को उमकैद की सजा हुई है। जिसके चलते वह जेल में हैं।

गुजरात दंगों की जांचों में के दौरान संजीव भट्‌ट ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनायी गई एसआईटी पर पक्षपात के आरोप लगाए। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जून, 2011 में ड्यूटी से गैरहाजिर रहने पर गुजरात सरकार ने संजीव भट्‌ट को सस्पेंड कर दिया। आगे चलकर करीब पांच साल बाद सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। गुजरात दंगों में पीएम मोदी के जब क्लीन चिट मिली तो अहमदबाद पुलिस ने एक मामला दर्ज किया है। इसमें राज्य के पूर्व डीजीपी आर बी श्रीकुमार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के साथ संजीव भट्‌ट के खिलाफ फर्जी साक्ष्य तैयार करके सीएम को फंसाने की साजिश रचने का केस दर्ज दर्ज हुआ। यह केस भी संजीव भट्‌ट के खिलाफ चल रहा है। गुजरात दंगों में तमाम और कारणों के चलते भी संजीव भट्‌ट का नाम कई मामलों में आया।

गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर की एक सत्र अदालत ने बृहस्पतिवार को फैसले में स्पष्ट किया कि भट्ट को लगातार 20 साल की सजा काटनी होगी। जिसका सीधा मतलब है कि यह सजा जामनगर हिरासत में मौत मामले में आजीवन कारावास की सजा समाप्त होने के बाद शुरू होगी। भट्ट को 2015 में बर्खास्त कर दिया गया था और 2018 से वह जेल में बंद हैं।

साबरमती जेल

2003 में, भट्ट को साबरमती केंद्रीय जेल के अधीक्षक के रूप में तैनात किया गया था। वहां वह बंदियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए। उन्होंने जेल के मेन्यू में गजर का हलवा जैसी मिठाइयां पेश की। उन्होंने गोधरा ट्रेन जलाने मामले में विचाराधीन कैदियों को जेल समिति में भी तैनात किया। उनकी नियुक्ति के दो महीने बाद, उन्हें कैदियों के साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार करने और उन पर एहसान करने के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था। 18 नवंबर 2003 को, 4000 कैदियों में से लगभग आधे ने अपने स्थानांतरण का विरोध करने के लिए भूख हड़ताल पर चले गए। विरोध में छह दोषियों ने अपनी कलाई काट ली। 2007 तक, 1988 बैच के भट्ट के सहयोगियों को पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) के पद पर पदोन्नत किया गया था। हालांकि, उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों और विभागीय जांच के कारण भट्ट बिना किसी पदोन्नति के एक दशक तक एसपी स्तर पर रहे।


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