Chhattisgarh Tarkash 2024: डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल
Chhattisgarh Tarkash 2024: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का 16 बरसों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
तरकश, 5 जनवरी 2024
संजय के. दीक्षित
डिप्टी सीएम, सड़क और बवाल
छत्तीसगढ़ के विधानसभा में कुछ दिन पहले ही दंतेवाड़ा में आरईएस द्वारा बिना सड़क बनाए पैसे भुगतान पर बवाल मचा था। इस पर पंचायत मिनिस्टर विजय शर्मा ने चार अफसरों को सस्पेंड करने का ऐलान किया। इधर, पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में पीडब्लूडी के अफसर निशाने पर हैं। 56 करोड़ की सड़क का 112 करोड़ पेमेंट कर दिया गया।
जब तक ऐसे ठेकेदार और अफसर रहेंगे, अमित शाह लाख कोशिश कर लें, बस्तर नक्सलियों से मुक्त नहीं हो सकता। आखिर, यह शाश्वत सत्य है कि नक्सलियों को टैक्स देने के बाद ही ठेकेदारों को काम करने की हरी झंडी मिलती है। नेताओं से लेकर अफसरों और नक्सलियों को मालूम होता है कि काम कागजों पर होना है।
तभी एक दशक पहले तक एसपीओ की मामूली नौकरी करने वाला सुरेश चंद्राकार 500 करोड़ का ठेकेदार बन जाता है। बहरहाल, संयोग यह है कि दोनो विभाग डिप्टी सीएम का है। अरुण साव के पास पीडब्लूडी है और विजय शर्मा के पास पंचायत और ग्रामीण विकास।
दोनों उप मुख्यमंत्रियों को अपने अधिकारियों को टाईट करना चाहिए। क्योंकि, बिना इसके अमित शाह का ड्रीम प्रोजेक्ट कामयाब नहीं हो सकता। फिर महत्वपूर्ण यह भी है कि दोनों सरकार के वरिष्ठतम मंत्री हैं...वे एक्शन मोड में आएंगे तो देखादेखी नए मंत्री भी उनका अनुसरण करेंगे। सिर्फ ये बोलकर वे जिम्मेदारी से मुक्त नहीं काट सकते कि हमारी चल नहीं रही है।
मोदी बड़े या राहुल?
पुलिस में किराये की गाड़ियों में हो रहे खेला पर डीजीपी अशोक जुनेजा ने सवाल-जवाब किया तो एक दिलचस्प खुलासा हुआ। डीजीपी की मीटिंग से लौटने के बाद एक जिले के पुलिस अधीक्षक ने किराये की गाड़ियों की जांच कराई तो पता चला कि विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने 85 इनोवा और स्कार्पियो किराये पर लिया था और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए 140। याने पीएम मोदी से अधिक राहुल की सुरक्षा?
200 करोड़ का खेला
सालां से चला आ रहा पुलिस विभाग का किराये की गाड़ियों का खेला पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाता अगर डीजीपी अशोक जुनेजा ने भृकुटी टेढ़ी नहीं की होती। पिछले महीने एसपी की मीटिंग में उन्होंने सबको खरी-खरी सुनाई। दरअसल, छत्तीसगढ़ पुलिस जितना पैसा हर साल किराये की गाड़ी में फूंक रही है, उतने में हर साल एक हजार इनोवा गाड़ी खरीदी जा सकती है।
मोटे आंकलन के तौर पर हर जिले में साल में सात-से-दस करोड़ रुपए किराये गाड़ियों पर खर्च किए जाते हैं। इस हिसाब से 33 जिलों में हर साल करीब 250 करोड़ रुपए गाड़ियों के किराये के नाम पर बहाया जा रहा। इस 250 करोड़ में से मुश्किल से पूरे प्रदेश में 50 करोड़ वास्तविक खर्च होता होगा। बाकी 200 करोड़ रुपए आरआई से लेकर पुलिस अफसरों की जेब में।
सबसे अधिक बुरी स्थिति है राजनांदगांव और रायपुर रेंज की। तीन टुकड़ों में बंट गए राजनांदगांव जैसे छोटे जिले में 100 इनोवा और स्कार्पियो किराये की चल रही है...इसे एसपी कांफ्रेंस में सार्वजनिक रूप से बताया गया। असल में, किराये की गाड़ियों के नाम पर बरसों से जिलों में बड़े स्तर पर संगठित भ्रष्टाचार चल रहा है।
वस्तुस्थिति यह है कि गाड़ियां कागजों में चल रही है। क्योंकि, इतनी गाड़ियों की जरूरत नहीं होती। पीएचक्यू में प्रदीप गुप्ता जैसे साफ-सुथरी छबि के एडीजी वित्त और योजना के बैठे होने के बाद भी आश्चर्य है कि उन्होंने इसे संज्ञान कैसे नहीं लिया? अलबत्ता, कड़वी सच्चाई यह भी है कि इनमें से आधी गाड़ियां खुद पुलिस अधिकारियों की है, जो अपने परिजनों और रिश्तेदारों या फिर टैक्सी वालों के जरिये चलवा रहे हैं।
वित्त मंत्री को संज्ञान
वीआईपी के फॉलोगार्ड में चार गाड़ी और तीन जवान...आपको विश्वास नहीं होगा कि ये भला कैसे संभव होगा। तीन जवान चार गाड़ी में कैसे बैठेंगे? डीजीपी की मीटिंग के बाद एक एसपी ने रैंडम जांच की तो पता चला कि हड़बड़ी में बिल बनाने के चक्कर में आरआई ने तीन जवानों को चार गाड़ियों में बिठाने का कारनामा कर डाला। बहरहाल, जीएडी सिकरेट्री मुकेश बंसल ने अक्टूबर में एक आदेश निकाला था कि बिना अनुमति गाड़ियां हायर नहीं की जाएगी। मगर पता नहीं किधर से प्रेशर आया, उन्होंने अपना आदेश खुद ही निरस्त कर दिया।
वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसे संज्ञान लेना चाहिए। पुलिस विभाग भले ही उनका नहीं मगर खजाने का चाबी सरकार ने उन्हें सौंपी है तो साल का 200 करोड़ रुपए पुलिस अधीक्षकों और आरआई लोगों की जेब में क्यों जाए। इस 200 करोड़ से हर साल पुलिस जवानों के लिए सुविधायुक्त आवास बनाए जा सकते हैं...पुलिस को संसाधनों से लैस किया जा सकता है।
सुबोध सिंह और कठिन टास्क
पीएस टू सीएम सुबोध सिंह ने कार्यभार संभालने के बाद प्रशासन में सुधार के काम तेज कर दिए हैं। सीएम के सचिवों को भी अब संभागों का दायित्व सौंप दिया है। याने कलेक्टर, एसपी पावर देखकर मुख्यमंत्री के सचिवों की चापलूसी नहीं करेंगे, उन्हें अपने संभाग के प्रभारी सचिवों से ही बात करनी होगी। यह सुशासन की दिशा में अच्छा कदम है।
मगर सुबोध सिंह के समक्ष चुनौतियां कहीं अधिक है। असल में, छत्तीसगढ़ के लिए सुबोध नए नहीं है, इसलिए सभी की यही उम्मीद है कि सुबोध सिंह कुछ करेंगे। सुबोध सामने सबसे तगड़ा टास्क होगा, प्रशासनिक करप्शन को रोकना। एक तरह से कहें तो प्रशासनिक अराजकता की स्थिति है।
आम आदमी बोल रहे, सरकार बदल गई...मगर अफसर और अफसरों की करतूतें नहीं बदली। हाल यह है कि सरकार के साल भर हो गए मगर किधर से कौन बॉल फेंक रहा...किसी को समझ नहीं आ रहा। खटराल अफसर सरकार और संगठन के कई चौखटों का फायदा उठा रहे, इस पर भी स्वच्छ प्रशासन के लिए अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।
अफसरों को इसका अहसास होना चाहिए कि गड़बड़ करने पर अब कोई भाई साब नहीं बचाएंगे, तभी सूबे में प्रशासनिक शुचिता और कसावट आ पाएगी। वरना, अफसर मासूमियत भरी सफाई देकर एनजीओ को करोड़ों का टेंडर देते रहेंगे।
इसी हफ्ते की घटना है...सीजीएमससी के प्रमुख ने कहा कि उन्हें मालूम नहीं कि अस्पतालों के फायर ऑडिट का काम जिसे दिया गया है, वह एनजीओ है। जबकि, टेंडर के आदेश में उन्होंने ही स्पष्ट तौर पर डायरेक्टर को लिखा...फलां समिति को आप लोग काम दें। अब उन्हें प्रायवेट लिमिटेड और समिति का अंतर नहीं मालूम को क्या कहा जा सकता है। यकीनन...सुबोध सिंह के सामने कठिन टास्क है।
अनलिमिटेड आईजी
कभी एक समय था कि आईजी बनाने के लिए अफसर नहीं होते थे। कई साल तक स्थिति यह रही कि पांच रेंज, पांच आईजी स्तर के आईपीएस रहे। विकल्प न होने पर डॉ. रमन सिंह को कई बार किसी आईपीएस को नहीं चाहते हुए भी आईजी बनाना पड़ा। मगर इस समय छत्तीसगढ़ में पूरे 18 आईजी हो गए हैं। पीएचक्यू में ही आधा दर्जन से ज्यादा होंगे।
संख्या बढ़ने से 2007 बैच के आईपीएस अधिकारियों के आईजी प्रमोशन में लोचा आ गया था। इस बैच में तीन आईपीएस हैं रामगोपाल गर्ग, दीपक झा और अभिषेक शांडिल्य। डीपीसी के बाद सरकार को इनके प्रमोशन के लिए इसे आधार बनाकर रास्ता निकालना पड़ा कि तीन अफसर डेपुटेशन पर है। इस चक्कर में बाकी आईपीएस का प्रमोशन का आदेश रुक गया है।
16 को आचार संहिता?
नगरीय और पंचायत चुनाव में आगे-पीछे होने की एक वजह यह भी रही कि सिस्टम दो महीने से काफी व्यस्त रहा। दिवाली, राज्योत्सव, सरकार का एक साल, अमित शाह का 15 दिन में दो बार दौरा, विधानसभा का शीतकालीन सत्र। ऐसे में, महापौर, अध्यक्ष और पार्षद प्रत्याशियों के लेवल पर कोई काम ही नहीं हुआ। राज्य निर्वाचन आयोग ने जब चुनाव ऐलान करने की तैयारी तेज की तो लगा कि कुछ गड़बड़ हो रहा है। फिर आरक्षण आगे बढ़ाया गया। बहरहाल, 15 जनवरी को मतदाता पुनरीक्षण का काम कंप्पलीट हो जाएगा। इसके अगले दिन 16 जनवरी को चुनाव का ऐलान हो जाएगा।
बीजेपी के नए अध्यक्ष OBC से?
बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश की मौजूदगी में 3 जनवरी को रायपुर में पार्टी की एक अहम बैठक हुई। पार्टी कार्यालय के बाद सभी छत्रप सीएम हाउस गए। वहां क्या हुआ, ये तो नहीं पता मगर ये जरूर है कि बैठक छत्तीसगढ़ के नए अध्यक्ष के लिए मंथन हुआ। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव को मंत्रिमंडल में शामिल करने पार्टी गंभीर है। रही बात नए प्रदेश अध्यक्ष की तो इसके लिए पार्टी किसी ओबीसी नेता पर दांव लगाने विचार कर रही है। इसमें नारायण चंदेल के लिए जबर्दस्त लॉबिंग चल रही है। हालांकि, ओबीसी से इस समय छह मंत्री हैं। गजेंद्र यादव को कहीं मौका मिल गया तो फिर सात हो जाएंगे। आदिवासी वर्ग से सीएम हैं तो इसमें अब कोई स्कोप नहीं। सामान्य से अमर अग्रवाल, किरण सिंहदेव और ओबीसी से गजेंद्र यादव...मंत्री के लिए ये तीन नाम इस समय सबसे अधिक चर्चाओं में है। अब देखना है पार्टी किस पर मुहर लगाती है।
उल्टी गंगा
छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी इस कदर कभी बैकफुट पर नजर नहीं आई। हालत यह है कि बीएड धारी 2855 सहायक शिक्षकों की बर्खास्तगी पर विपक्ष हमलावर है और बिना किसी चूक के बीजेपी बगले झांक रही है। न मंत्री दमदारी से कुछ बोल रहे और न उसके प्रवक्ता। ऐसा ही कुछ पत्रकार मुकेश चंद्राकार हत्याकांड में भी हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रीय पदाधिकारी ने दिल्ली से सरकार को आड़े हाथ लेकर ट्वीट कर दिया और आरोपी का कांग्रेस कनेक्शन की फोटुएं सोशल मीडिया पर भरी होने के बाद भी बीजेपी के न मीडिया सेल से कुछ ट्वीट हुआ और न पार्टी के किसी पदाधिकारी ने बयान दिया। कांग्रेस के ट्वीट के बाद बीजेपी हरकत में आई...फिर उसकी काट के तौर पर आधी रात के बाद ट्वीट हुआ। सरकार बने अब साल भर हो गए हैं...बीजेपी नेताओं को आत्ममुग्धता से बाहर आना होगा। वरना, अगले महीने नगरीय और पंचायत चुनाव में परेशानी आ सकती है। सत्ताधारी पार्टी को कम-से-कम सरकार के पक्ष को दमदारी से रखनी चाहिए। इसके लिए मोदीजी, अमित शाह या मनसुख मांडविया थोड़े आएंगे।
आईएएस की वैकेंसी
छत्तीसगढ़ में एलायड सर्विस कोटे से आईएएस का दो पद खाली हो गया है। पहला अनुराग पाण्डेय के रिटायर होने के बाद अगस्त में खाली हुआ और दूसरा शारदा वर्मा की 31 दिसंबर को विदाई के बाद। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक इस कोटे से चार अफसरों को आईएएस अवार्ड हुआ है। जनसंपर्क, इंडस्ट्री, जीएसटी और ट्राईबल से एक-एक। मगर काम से अपनी पहचान बनाने वालों में आज भी एमपी के समय आईएएस बने आरएस विश्वकर्मा और डॉ0 सुशील त्रिवेदी ही याद आते हैं। सरकार को इस बार ठोक बजाकर काबिल अफसरों को ही मौका देना चाहिए। तभी आईएएस पदनाम के साथ न्याय हो पाएगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. भाजपा ने मंत्री पद के दावेदारों की धड़कनें क्यों बढ़ाकर रखा है?
2. हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी बस्तर के आदिवासियों की सूरत नहीं बदली मगर वहां के नेता, ठेकेदार, सप्लायर, अफसर और माओवादी कैसे मालामाल हो गए?