कलेक्टर (collector) का ऑफिस कलेक्टोरेट (collectorate) से कलेक्ट्रेट कैसे हो गया...कलेक्टर का पद कब बना, पढ़िये NPG.NEWS की खास खबर

कलेक्टर आफिस को आमतौर पर कलेक्ट्रेट कहा जाता है। मगर आज भी देश के अधिकांश कलेक्टर कार्यालयों की बिल्डिंगों पर कलेक्टोरेट कार्यालय लिखा होता है।

Update: 2023-01-24 08:37 GMT

Collector News: रायपुर। कलेक्टर जिले का मुखिया होता है। जिले में वह सरकार का प्रतिनिधि होता है, जिसका काम है जिले में बेहतर ढंग से राजस्व प्रबंधन और सरकार की योजनाओं को मानिटरिंग करके क्रियान्वित कराना। सरकार की योजनाओं को क्रियान्वित करने की दृष्टि से ही जिले में सरकार के सारे विभाग उसके अधीन आते हैं। उनके कार्यालय भी कलेक्टर आफिस के आसपास होता है। जिले स्तर के कुछ प्रमुख विभाग, जिसका कलेक्टर से रोज पाला पड़ना है, कलेक्टर आफिस में ही होते हैं। कलेक्टर जहां बैठते हैं, उसे कलेक्ट्रेट कहा जाता है। इस कलेक्ट्रेट में कई विभाग होते हैं।

कलेक्टर आफिस को आमतौर पर कलेक्ट्रेट कहा जाता है। मगर आज भी देश के अधिकांश कलेक्टर कार्यालयों की बिल्डिंगों पर कलेक्टोरेट कार्यालय लिखा होता है। मध्यप्रदेश के राजभवन में लंबे समय तक कार्य किए और कई जिलों के कलेक्टर और राज्य निर्वाचन आयुक्त रहे डॉ. सुशील त्रिवेदी ने एनपीजी न्यूज को बताया कि कलेक्टर के आफिस को कलेक्टोरेट ही कहा जाता है। मगर बोलते-बोलते कलेक्टोरेट का अपभ्रंश होकर कलेक्ट्रेट हो गया। कलेक्ट्रेट बोलने में भी जरा सहज है। मगर छत्तीसगढ़ समेत देश के अधिकांश कलेक्टर कार्यालय के भवनों पर आज भी कलेक्टोरेट लिखा ही मिल जाएगा।


कलेक्टर पद कब बना?

अंग्रेजों से पहले देश में मुगल शासन काल रहा। साथ ही जमींदारी प्रथा। उसमें गांव से लगान वसूला जाता था। मोहम्मद बिन कासिम ने जजिया कर लगाया था। जिसे बाद में अकबर ने समाप्त किया। इसके बाद अंग्रेज आए तो उन्होंने देखा कि भारत में टैक्स वसूली का कोई आरगेनाइज सिस्टम नही है। सो, अंग्रेजों के शासन काल के दौरान 1772 में लोर्ड वारेन हेस्टिंग्स द्वारा 'भू राजस्व की वसूली' के लिए कलेक्टर का पद बनाया गया था। इसका मूल कार्य था राजस्व प्रबंधन और राजस्व की वसूली। नाम भी इसीलिए कलेक्टर रखा गया। माने राजस्व कलेक्ट करने वाला। बाद में इसमें नागरिक प्रशासन भी जोड़ दिया गया। उसे डीएम याने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का पावर भी मिल गया।

डीएम बड़ा या कलेक्टर

चूकि नागरिक प्रशासन और राजस्व वसूली का कलेक्टर जिले का मुखिया होता है। लिहाजा, उसे और अधिकारी संपन्न बनाने के लिए डीएम का पावर भी दे दिया गया। डीएम मतलब शांति भंग होने की स्थिति में डीएम को अधिकार है कि वह 24 घंटे के लिए बिना किसी सुनवाई के किसी को भी जेल भेज सकता है। कलेक्टर और डीएम एक ही होते हैं इसलिए किसी को बड़ा या छोटा नहीं कहा जा सकता। मगर ये जरूर है कि पावर की बात करें तो डीएम कलेक्टर से ज्यादा पावरफुल होता है। कानून-व्यवस्था की स्थिति निर्मित होने पर 144 धारा लागू करने का आदेश बतौर डीएम ही दिया जाता है। भीड़ को नियंत्रित करने लाठी चार्ज और गोली चलाने का आदेश देने का अधिकार भारतीय संविधान में सिर्फ डीएम को दिया गया है। चुनावों के समय जब आचार संहिता प्रभावशील हो जाता है तो निर्वाचन आयोग की सारी शक्तियों डीएम को मिल जाती है। तब वह किसी भी तरह के फैसले करने के लिए स्वतंत्र होता है।

आईएएस ही बनते हैं कलेक्टर

जिले का पुलिस अधीक्षक याने एसपी नॉन आईपीएस आजकल बनने लगे हैं। मगर कलेक्टर आईएएस ही बनता है। वह या तो यूपीएससी से सलेक्ट रेगुलर रिक्रुट्ड आईएएस हो या फिर राज्य प्रशासनिक सेवाओं से प्रमोट होकर आईएएस बना अफसर...कलेक्टर बनेगा तो आईएएस ही। आईएएस में सलेक्ट होने के बाद पहले लगभग दसेक साल की सर्विस के बाद कलेक्टर बनाया जाता था। मगर आजकल इसमें अनुभव का मामला शिथिल किया गया है। इन दिनों छह साल, सात साल में आईएएस कलेक्टर बन जा रहे हैं।

सीएम से सीधे कनेक्ट

कलेक्टर का पद कितना महत्वपूर्ण होता है कि वह सीधे मुख्यमंत्री से बात कर सकता है। हालांकि, राज्य के प्रशासनिक मुखिया चीफ सिकरेट्री होते हैं। मगर लॉ एंड आर्डर जैसी स्थिति में देर न हो, इसलिए प्रोटोकॉल में ऐसा प्रावधान किया गया है कि कलेक्टर सीधे सीएम को फोन लगाकर उन्हें वस्तुस्थिति की रिपोर्ट देकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। 

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