Begum Khaleda Zia Biography Hindi: कौन थीं बेगम खालिदा जिया? पढ़ें भारत में जन्म से लेकर बांग्लादेश की महिला PM बनने तक का सफर!
Begum Khaleda Zia Life Story: भारत में जन्मी पुतुल से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनने तक का पूरा राजनीतिक सफर, पढ़ें संघर्ष और सत्ता की कहानी।
Begum Khaleda Zia Biography Hindi: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख Begum Khaleda Zia का मंगलवार, 30 दिसंबर को निधन हो गया। वह 80 वर्ष की थीं और लंबे समय से बीमार चल रही थीं। ढाका के एवरकेयर अस्पताल में सुबह करीब छह बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति के एक लंबे और असरदार दौर का अंत हो गया है।
भारत में जन्म, नाम था ‘पुतुल’
खालिदा जिया का जन्म 1945 में अविभाजित बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के दिनाजपुर क्षेत्र में हुआ था जो उस समय भारत का हिस्सा था। उनका असली नाम खालिदा खानम ‘पुतुल’ था। पिता इस्कंदर अली मजूमदार चाय के कारोबारी थे और परिवार की जड़ें फेनी इलाके से जुड़ी थीं। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान के हिस्से में आए दिनाजपुर में बस गया जहां खालिदा का बचपन और शुरुआती शिक्षा पूरी हुई।
जियाउर रहमान से शादी और राजनीति से दूरी
1960 में खालिदा की शादी पाकिस्तानी सेना के अधिकारी जियाउर रहमान से हुई जिनके साथ उनका नाम बदलकर खालिदा जिया रहमान हो गया। शुरुआती सालों में उनका जीवन पूरी तरह परिवार और बच्चों तक सीमित रहा। उनके दो बेटे हुए तारिक रहमान और अराफात रहमान कोको। 1965 में वह अपने पति के साथ पश्चिम पाकिस्तान गईं और लंबे समय तक कराची में रहीं फिर 1969 में वापस पूर्वी पाकिस्तान लौटीं और ढाका में बस गईं।
स्वतंत्रता संग्राम और नजरबंदी
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान जब जियाउर रहमान पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति बाहिनी के प्रमुख चेहरों में शामिल थे तब पाकिस्तानी सेना ने खालिदा जिया को ढाका छावनी में नजरबंद कर दिया। 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश की आजादी के बाद उन्हें रिहा किया गया। इसके बाद भी वह लंबे समय तक राजनीति से दूर रहीं और परिवार पर ही ध्यान देती रहीं।
राष्ट्रपति की पत्नी, लेकिन राजनीति से दूरी
1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल शुरू हुई। सैन्य तख्तापलट के जरिए जियाउर रहमान सत्ता में आए और 1977 में राष्ट्रपति बने। खालिदा जिया उस दौर में देश की प्रथम महिला बनीं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुद को राजनीति से अलग ही रखा और सार्वजनिक मंचों से दूरी बनाए रखी।
पति की हत्या के बाद राजनीति में प्रवेश
1981 में जियाउर रहमान की हत्या के बाद खालिदा जिया का जीवन पूरी तरह बदल गया। इसी दौर में Bangladesh Nationalist Party कमजोर पड़ने लगी थी। पार्टी को संभालने और पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए खालिदा जिया धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में उतरीं। यही वह मोड़ था जहां से उनके सियासी सफर की असली शुरुआत हुई।
सैन्य शासन के खिलाफ संघर्ष और सत्ता तक पहुंच
1980 के दशक में उन्होंने सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद के खिलाफ लंबे आंदोलनों का नेतृत्व किया। कई साल चले विरोध और दबाव के बाद इरशाद को सत्ता छोड़नी पड़ी। इसी संघर्ष ने खालिदा जिया को देश की सबसे बड़ी विपक्षी नेता बना दिया। 1991 के चुनावों में बीएनपी की जीत के बाद वह पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं और किसी मुस्लिम देश की दूसरी महिला प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास दर्ज किया।
प्रधानमंत्री के दो कार्यकाल
खालिदा जिया ने दो बार प्रधानमंत्री पद संभाला 1991 से 1996 और फिर 2001 से 2006 तक। उनके शासनकाल में एक ओर निजीकरण और उदार आर्थिक नीतियों को बढ़ावा मिला तो दूसरी ओर भारत से रिश्ते ठंडे रहे। इस दौर में बांग्लादेश की राजनीति में बीएनपी और Sheikh Hasina की अवामी लीग के बीच तीखा मुकाबला लगातार बना रहा।
सत्ता से बाहर और विपक्ष का लंबा दौर
1996 में सत्ता छोड़ने के बाद खालिदा जिया लंबे समय तक विपक्ष में रहीं। 2001 में वह एक बार फिर सत्ता में लौटीं, लेकिन 2006 के बाद हालात बदल गए। राजनीतिक संकट, आंदोलनों और बाद में 2008 के चुनावों में करारी हार के बाद बीएनपी दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी। इसके बाद से खालिदा जिया का अधिकांश समय विपक्ष और कानूनी लड़ाइयों में बीता।
भ्रष्टाचार के मामले और खराब होता स्वास्थ्य
2018 में खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराया गया और जेल की सजा सुनाई गई। उनके समर्थकों ने इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया। जेल में रहते हुए उनका स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ता चला गया। 2020 में स्वास्थ्य कारणों से उन्हें रिहाई मिली लेकिन वह सक्रिय राजनीति में लौट नहीं सकीं।
आखिरी साल और निधन
2024 में राजनीतिक हालात बदलने के बाद उनकी सजा माफ की गई। इलाज के लिए वह लंदन भी गईं और लौटने के बाद ढाका में ही रहीं। नवंबर में तबीयत फिर बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां मंगलवार सुबह उनका निधन हो गया।
खालिदा जिया का जीवन बांग्लादेश की राजनीति की पूरी कहानी अपने भीतर समेटे हुए था भारत में जन्म, गृहिणी से प्रधानमंत्री तक का सफर, सत्ता, संघर्ष, जेल और अंत में बीमारी। उनके जाने से बांग्लादेश की सियासत का एक बड़ा अध्याय बंद हो गया है।