जब लता दीदी ने कहा मुख्यमंत्री मोदी को प्रधानमंत्री देखना चाहती हूँ तो कांग्रेस के इस नेता ने कहा था - "देश का सर्वोच्च सम्मान सांप्रदायिक ताक़तों की प्रशंसा करने वालों से वापस लेना चाहिए"

Update: 2022-02-06 10:36 GMT

रायपुर,6 फ़रवरी 2022। साल था 2013, देश में एक नई राजनैतिक लहर उठ रही थी। लगातार विपक्ष के निशाने पर और केंद्रीय जाँच एजेंसियों के राडार पर रहने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा के भीतरखाने प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने को लेकर मंथन हो रहा था। भाजपा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के उस अंदाज मिज़ाज को ही ट्रंप कार्ड बनाने की कोशिश से मिलने वाले नफ़ा नुक़सान का जोड़ गुणा कर रही थी, तभी महाराष्ट्र के पुणे में लता दीदी ने एक बात ऐसी कही कि, गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी के पीएम चेहरे बनाए जाने को लेकर भाजपा को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया। पुणे में एक कार्यक्रम में लता दीदी ने अचानक कहा - "मुझे नरेंद्र मोदी में बेहद संभावना दिखती है,मैं चाहूँगी कि वे देश के प्रधानमंत्री बनें.. वे देश की बेहतर सेवा करेंगे"

संकोची और अल्प लेकिन मृदुभाषी लता दीदी को तब तक भारत रत्न दिया जा चुका था। कांग्रेस के लिए तब मोदी की प्रशंसा का मतलब शत्रुता से कम नहीं था। कांग्रेस की ओर से "मौत का सौदागर" समेत कई बेहद तीखे विशेषण लगातार दिए जाते थे। ऐसे में जबकि मोदी को लेकर एक रणनीति तैयार हो रही थी कांग्रेस के लिए यह स्वाभाविक रुप से अप्रिय था जो कि लता दीदी ने कहा था। कांग्रेस के तब मुंबई इकाई प्रमुख जनार्दन चंदुरेकर ने कहा था -

"देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "सांप्रदायिक ताक़तों" की प्रशंसा करने वालों से वापस लिया जाना चाहिए"

इस बयान की बेहद तीखी आलोचना हुई, कांग्रेस ने दिल्ली में इस बयान से पल्ला झाड़ लिया, बाद में चंदुरकर ने कहा

"मैंने किसी का नाम तो लिया ही नही.. एक सामान्य बात कही है"

लेकिन इस सफ़ाई का कोई अर्थ नहीं रह गया था, क्योंकि यह स्पष्ट हो गया था कि बयान लता दीदी को लक्ष्य कर के ही दिया गया। वहीं इस बयान के तत्काल बाद भाजपा बल्कि मुख्यमंत्री मोदी ने चिर परिचित राजनैतिक कौशल दिखाया और "सोच" की आलोचना करते हुए कांग्रेस को प्रश्नांकित कर दिया।

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