संघ में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों...संघ के नजरिए से हिंदू कौन? पढ़िए संघ के गठन से लेकर इसके उद्देश्यों पर NPG की खास स्टोरी
दिव्या सिंह
NPG DESK I 10 से 12 सितंबर के बीच छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी संक्षेप में कहें तो आरएसएस समन्वय समिति की वार्षिक बैठक होने जा रही है। जिसमें सर संघचालक मोहन भागवत समेत संघ से प्रत्यक्ष या अपरोक्ष तौर पर जुड़े 36 संगठनों के प्रमुख शामिल होंगे। छत्तीसगढ़ में यह बैठक पहली बार हो रही है, इस पर पूरे देश की निगाहें भी टिकी हैं। बैठक कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत चार दिन पहले ही रायपुर पहुंच रहे हैं। 10 सितंबर से पहले निर्णय टीम के साथ समन्वय समिति का एजेंडा तय करेंगे।
संघ का ढांचा और काम करने का तरीका कुछ ऐसा है कि विपक्षियों को चौंकाता और अपनी गतिविधियों से हतप्रभ करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम कैसे मिला...इसकी दास्तां भी दिलचस्प है।
दरअसल... राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम पड़ने से पहले बहुत वैचारिक मंथन हुआ। राष्ट्र से संबंधित ही कोई नाम तय किया जाना था। सो 26 सदस्यों की एक समिति बनी। जिसकी जिम्मेदारी थी नाम तय करने की। गहन मंथन के बाद तीन नामों पर ही विचार किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल। इन तीन नामों पर बकायदा वोटिंग हुई। 26 में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम के समर्थन में वोट डाले। यानी करीब 77 फीसदी सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम पर सहमति दी।
हिंदुत्व नहीं... नैतिक मूल्यों के लिए
आज पूरी दुनिया में संघ की पहचान एक हिंदुत्ववादी संगठन के तौर पर है। लेकिन प्रारंभिक काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्शों को बढ़ावा देना और बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को "मजबूत" करने के लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करना था। 27 सितंबर सन 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार ने संघ की स्थापना की तब भी मूल कार्य राष्ट्र निर्माण के साथ नैतिक मूल्यों निर्माण ही था। हेडगेवार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने पर विशेष बल देते थे। यही वजह है कि इसकी शुरूआत ही नागपुर के अखाड़ों से हुई।
11 शक्ति केंद्रों की 57 हजार शाखाएं
संघ का ढांचा बेहद मजबूत और वैज्ञानिक है। सबसे छोटी इकाई शाखा से केंद्र तक, 11 अनुशाषित केंद्र होते है। शाखा, ग्राम, मंडल, खंड, नगर, तालुका या तहसील, जिला, विभाग, प्रांत, क्षेत्र और केंद्र। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वस्तुत: शाखा की सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग 57 हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। 80 से अधिक देशों में यह पहुंच चुका है। और इसखे करीब 60 लाख सदस्य हैं।
दशकों बाद बदली गई ड्रेस
पहले स्वयंसेवकों की ड्रेस में ढीली ढाली खाकी पैंट, खाकी कमीज, खाकी टोपी और बूट शामिल थे। बाद में इसमें बदलाव किया गया। अभी सफेद कमीज, गहरी भूरी पैंट, काली टोपी ओर साधारण लेस वाले काले कैनवस शूज ड्रेस का हिस्सा हैं।
पहले प्रार्थना में हिंदी और मराठी का एक - एक श्लोक हुआ करता था लेकिन देश भर में संघ के फैलाव के बाद इसे मराठी के स्थान पर संस्कृत में बदल दिया गया। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे (सदा वत्सल मातृभूमि, आपके सामने शीश झुकाता हूँ।) संघ की प्रार्थना है। यह संस्कृत में है और इसकी अन्तिम पंक्ति हिन्दी में है।
महिलाओं का प्रवेश वर्जित
आरएसएस में महिलाएँ नही हैं। महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्र सेविका समिति दोनों अलग-अलग दल है लेकिन दोनों के विचार एक है। संघ का मानना है कि शाखा सुबह और शाम को लगती है, दोनों ही समय महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसके अलावा शाम की शाखा में बहुत भीड़ होती है, यहाँ पर बहुत से ऐसे खेल खेले जाते है, जिनमे शारीरिक श्रम ज्यदा होता है, जैसे एक दूसरे को धक्का देना, टांगो के बीच से निकलना, कबडी खेलते समय एक दूसरे पर गिरना और भी इस तरह के बहुत से खेल हैं जो महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
क्या अंतर है संघ के प्रचारक और विस्तारक में
आरएसएस के प्रचारक को संघ के लिए काम करते समय तक अविवाहित रहना होता है। और दूसरे होते है संघ के विस्तारक, जो गृहस्थ जीवन में रहकर ही संघ से किशोरों को जोड़ने का काम करते है। संघ का प्रचारक बनने के लिए किसी भी स्वयंसेवक को 3 साल तक ओटीसी यानि आफिसर ट्रेनिंग कैंप में भाग लेना होता है। और शाखा प्रमुख बनने के लिए 7 से 15 दिन तक आईटीसी यानि इंस्ट्रक्टर ट्रेनिंग कैंप में भाग लेना होता है।
संघ के अनुसार हिंदू कौन कहलाएगा
जो भी व्यक्ति भारतीय मूल्यों को आत्मसात करता है, भारतीय संस्कृति को मानता है और उसका पालन करता है वह हिंदू है। हिन्दू किसी व्यक्ति की धार्मिक पहचान न होकर राष्ट्रीय पहचान है। अत: भारतीय पूर्वजों से जन्मा, भारतीय संस्कृति को मानने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है, भले ही उसकी पूजन विधि जो भी हो, यानी वो हिंदू, बौद्ध, पारसी, मुस्लिम कोई भी हो। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले कई मुसलमान धर्मावलंबी भी आर एस एस से जुड़े हैं।
संबद्ध संगठन
बहुत से संगठन आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित है। संघ के स्वयंसेवकों ने ही राजनैतिक शाखा "भारतीय जनता पार्टी" बनाई। इसके अलावा भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, सरस्वती शिशु मंदिर, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सिख संगत आदि इससे संबद्ध हैं।
साल 2025 की विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सौ बरस का होने जा रहा है। मात्र 25 सदस्यों के साथ शुरू हुआ संघ परिवार अब विराट रूप ले चुका है। यह खुलकर हिंदुत्व की बात करता है और हिंदू धर्म को उसकी संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयासरत है।
वैचारिक तौर पर संघ और कांग्रेस के बीच गहरे मतभेद हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। जाहिर है छत्तीसगढ़ में संघ की अति महत्वपूर्ण बैठक को लेकर सत्ता की नजरें इस पर टिका होना लाजिमी भी है।