आजादी की लड़ाई में जनजातियों का योगदान महत्वपूर्ण, इतिहास के पन्नों से गुम पराक्रमी नायकों के जीवन संघर्ष से देश को अवगत करना हमारा दायित्व-कुलपति प्रो. चक्रवाल
गुरू घासीदास केंद्रीय विवि स्वाधीनता संग्राम के महान जनजातीय योद्धाओें की अनसुने वीर गाथाओं को संजोने का प्रयास करेगा।
बिलासपुर, 22 नवंबर 2021। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 आलोक कुमार चक्रवाल ने कहा है कि आजादी की लड़ाई में जनजातियों का योगदान महत्वपूर्ण था। इस लड़ाई में कुछ ऐसे भी नायक रहे, जिनकी वीर गाथाएं सामने नहीं आ पाई। प्रो0 चक्रवाल ने अष्वस्त किया है कि गुरू घासीदास केंद्रीय विवि स्वाधीनता संग्राम के महान जनजातीय योद्धाओें की अनसुने वीर गाथाओं को संजोने का प्रयास करेगा। उन्होंने कहा, इतिहास के पन्नों से गुम इन पराक्रमी नायकों के जीवन संघर्ष से देशवासियों को अवगत करना हमारा दायित्व है।
विष्वविद्यालय में स्वाधीनता आंदोलन के नायक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जनजातियों के स्वराज आंदोलनों को गौरव एवं सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाये का निर्णय लिया गया है।
विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान एवं जनजातीय विकास विभाग, एनडेनर्ज्ड लैंग्वेज सेल तथा इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती सप्ताह के अंतर्गत आज ऑनलाइन माध्यम से ''स्वतंत्रता संघर्ष के अनसुने जनजातीय नायक'' विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया।
इस मौके पर कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय से आने वाले नायकों ने अपने प्राणों की आहूति दी। भारत की आजादी के अमृत महोत्सव पर हमें सभी अनसुने जननायकों को स्मरण करते हुए इनके महान संघर्ष की गाथा को युवा पीढ़ी के साथ साझा करना होगा। इतिहास के पन्नों से गुम इन पराक्रमी नायकों के जीवन संघर्ष से देशवासियों को अवगत करना हमारा दायित्व है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय स्वाधीनता संग्राम के महान जनजातीय योद्धाओें की अनसुने वीर गाथाओं को संजोने का प्रयास करेगा। सभी विषयों के विशेषज्ञ, जानकार एक दूसरे से तथ्यों, घटनाओं एवं जानकारियों को साझा करेंगे ताकि इसका एक संग्रह किताब के रूप में उपलब्ध कराया जा सके।
कुलपति ने कहा कि भारत पूरी दुनिया के लिए हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। भारत की अस्मिता को अक्षुण्य रखने की ललक ने संपूर्ण देश को एकजुटता के सूत्र में बांध दिया। उन्होंने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव एवं राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस 1857 से 1947 तक परतंत्रता का विरोध करने वाले आजादी के वीर सिपाहियों को याद करने का सुनहरा अवसर है।
वेबिनार के मुख्य वक्ता शशांक शर्मा पूर्व निदेशक छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रंथ अकादमी ने कहा कि संपूर्ण भारतवर्ष के अनसुने जनजातीय नायकों के योगदान पर प्रकाश डालने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के जनजातीय आंदोलनों व स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में जानकारी साझा की। शर्मा ने कहा कि भारत में प्राचीनकाल से ही लोकतांत्रिकता व्यवस्था स्थापित थी लेकिन अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो नीति और सश्सत्र संघर्ष ने इसे नुकसान पहुंचाया। स्वतंत्रता का आंदोलन राजनैतिक आंदोलन नहीं बल्कि सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक आंदोलन था।