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बेड 300 तो कोरोना के लिए 75 क्यों? अपोलो अस्पताल आखिर जिला प्रशासन का क्यों नहीं सुन रहा, कलेक्टर के बोलने पर सिर्फ 25 बेड बढ़ा

बेड 300 तो कोरोना के लिए 75 क्यों? अपोलो अस्पताल आखिर जिला प्रशासन का क्यों नहीं सुन रहा, कलेक्टर के बोलने पर सिर्फ 25 बेड बढ़ा
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By NPG News

NPG. NEWS
बिलासपुर, 26 अप्रैल 2021। बिलासपुर के लिंगियाडीह में स्थित प्रतिष्ठित अपोलो अस्पताल बिलासपुर ही नहीं बल्कि बिलासपुर संभाग के साथ, मध्यप्रदेश के सीमाई जिलों के भरोसे का प्रतीक है। एमपी के अमलाई, शहडोल तक के मरीज यहाँ इलाज कराने आते हैं। इमरजेंसी केसों के लिए तो अपोलो वाकई, लोगों का बहुत बड़ा आशा का केंद्र है।
मगर कोरोना के इस विपदा की घड़ी में अपोलो अस्पताल की जो भूमिका होनी चाहिए…दिख नहीं रही…वो किंचित हैरान करती है।
जाहिर सी बात है, बड़ा ग्रुप होने की वजह से अपोलो में इलाज का एक प्रोटोकॉल है। इसलिये, संकट की घड़ी में बिलासपुर के हर पीड़ित व्यक्ति की कोशिश है, अपोलो में अदद एक बेड मिल जाये तो जान बच जाए! ये बात अपोलो के प्रति भरोसे पर मुहर लगाती है।
लेकिन, ऐसी गंभीर परिस्थिति होने के बाद भी अपोलो बेड बढ़ाने को लेकर गंभीर क्यों नहीं है, ये सवाल सोचने पर विवश कर रहा। अपोलो 300 बेड का अस्पताल है। इसमें से 50 बेड कोविड के लिए रिजर्व किया गया है। बाद में कलेक्टर के आग्रह पर अपोलो प्रबंधन सिर्फ 25 बेड बढ़ाने के लिए तैयार हुआ। अपोलो अगर 300 में से 200 बेड भी कोविड के लिए आरक्षित कर दिया होता तो बिलासपुर में मौतें बेकाबू नहीं होती। कांग्रेस नेता बसंत शर्मा जैसे कई लोगों की सांसे समय पर बेड नहीं मिलने पर उखड़ गई… निश्चित तौर पर वो बच जाते। बसंत शर्मा को तीन दिन लगे अपोलो पहुंचने में। वह भी विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत के अपोलो को फोन करने के दूसरे रोज दोपहर बसंत को अपोलो में बेड मुहैया हो पाया। जाहिर है, अपोलो में अगर बेड बढ़ गया होता तो बिलासपुर के अनेक लोगों की जानें बच गई होती।
वैसे भी, कोरोना के इस समय अस्पतालों में कोविड के अलावे दीगर मरीजों की संख्या नगण्य है। अपोलो चाहे तो 300 में से 250 बेड कोविड के लिए सुरक्षित कर सकता है।
आश्चर्य है, कलेक्टर डॉ सारांश मित्तर के बोलने के बाद भी अपोलो ने मात्र 25 बेड बढ़ाया। सारांश कलेक्टर के साथ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी हैं। आपदा के समय प्रदत संवैधानिक अधिकारों से स्वाभाविक रूप से DM बेहद ताकतवर हो गए हैं। फिर भी 25 बेड। तो ताज्जुब तो होगा ही।
जिला प्रशासन को अब भी कोशिश करनी चाहिए, अपोलो में कम-से-कम 100 बेडो की वृद्धि हो जाए।
अपोलो में अभी तक प्रमुख का पद खाली भी था। हो सकता है…इसीलिए अनिर्णय की स्थिति हो। अब वहां बतौर यूनिट हेड डॉ प्रमोद नागपाल ने दो दिन पहले कार्य भार संभाल लिया है। बहुत सम्भवना है, स्थिति को समझते हुए वे बेड बढ़ाने सहमत हो जाएं। कलेक्टर साहब, एक बार प्रयास कीजिए।

अस्पताल में बिचौलिए हॉवी?

अपोलो के बारे में गंभीर शिकायतें मिल रही कि वहाँ बेड देने में जमकर गड़बड़झाला किया जा रहा। जरूरमंद मरीजों को बेड मिल नहीं मिल रहा और जुगाड़ में मिनटों में बेड सुलभ हो जा रहस्य। पावर ग्रिड के सहायक प्रबंधक संतोष पाण्डेय तड़पते हुए एम्बुलेंस में दम तोड़ दिए। लेकिन, उन्हें बेड नहीं मिल पाया। बताते हैं, अस्पताल में कोई प्रमुख नहीं होने की वजह से नीचे का स्टाफ निरंकुश होकर व्यापक रूप से बेडों का गोलमाल कर रहा है। मसल पावर और रसूखदार लोगों को एक फ़ोन में बेड दे दिया जा रहा, बाकि अपने हिसाब से बंदरबांट। इतने प्रतिष्ठित अस्पताल में ऐसा नहीं होना चाहिए। ठीक है, शासन, प्रशासन के लोगों के लिए कुछ फीसदी बेड रिजर्व कर दें, लेकिन बाकी बेड तो जरूरतमंद लोगों को मिल जाये। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा। नए यूनिट हेड डॉ नागपाल को इस पर गौर करना चाहिए। ताकि, लोगों का भरोसा बरकरार रहे।

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