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कौन है IPS सिमाला? फिल्मों में भी किया है काम….अब कोरोना संकट में उनकी कविता की हो रही है खूब चर्चा…

कौन है IPS सिमाला? फिल्मों में भी किया है काम….अब कोरोना संकट में उनकी कविता की हो रही है खूब चर्चा…
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By NPG News

भोपाल 24 अप्रैल 2020। कोरोना संकट के बीच पुलिस फ्रंट वारियर बनकर डटी है। इस हालात में खुद को स्वस्थ्य रखना और महकमे के पुलिस अफसरों व जवानों का मनोबल ऊंचा बनाये रखने की पुलिस अफसरों की बड़ी जिम्मेदारी बन गयी है। इन सब के बीच देश की चर्चित IPS शिमाला प्रसाद ने एक कविता लिखी है। इस कविता के जरिये वो कोरोना काल में वो पुलिस की स्थिति को बयां करने की कोशिश की है कि कैसे मुसीबत के बीच पुलिस काम करती है। कोरोना की वजह से मारे गये पुलिसकर्मियों और जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए उन्होंने एक कविता लिखी है, जिसका शीर्षक है मैं खाकी…

कौन हैं IPS सिमाला, बॉलीवुड में भी किया काम, अब एक कविता से चर्चा में

2011 बैच की आईपीएस सिमाला प्रसाद के पिता डॉ भागीरथ प्रसाद पूर्व सांसद व आईपीएस रहे हैं। मां मेहरून्निसा परवेज भी बड़ी साहित्यकार थी। हालांकि शुरू में वो बॉलीवुड में जाना चाहती थी, लेकिन घर के माहौल की वजह से वो IPS बन गयी। सिमाला कई फिल्मों में काम कर चुकी है। वो डायरेक्टर जैगम इमाम की फिल्म नक्काश में टीवी पत्रकार की भूमिका में थी।

कौन हैं IPS सिमाला, बॉलीवुड में भी किया काम, अब एक कविता से चर्चा में

आईपीएस सिमाला प्रसाद ने कहा है कि पुलिसकर्मियों पर हो रहे हमले को भी कविता में उल्लेखित किया गया।

पढ़ें सिमाला की कविता, मैं खाकी..

मैं खाकी…
सदा चुपचाप चली इस कर्म पथ पर
कभी किसी को जताया नहीं
कभी किसी को कहा नहीं
आज अनायास ही लगा कुछ कहूं आपसे
आज एक साथी को खो दिया मैंने
दु:ख है, नहीं रोक पाए उसको
आपको रोकने में जो लगा था वो
सिमटी बैठी है साड़ी में
वो आज अपना सब हार
फिर खड़ी होगी कल
खाकी ने थामा है उसका हाथ
फिर लौटेंगी यह नम आंखें
इस बलिदान की चमक के साथ
मन विचलित है पर हौंसला अड़िग है
फिर कस लिया है बेल्ट अपना
फिर जमा ली है सर पर टोपी अपनी
आंख मिला रखी है इस चुनौती से मैंने अपनी
लोग कहते हैं, ना दवा है ना दुआ है
यह शत्रु कुछ अजब है लेकिन मेरे पास
इससे लड़ने का हथियार भी गजब है
जीतना है, जिताना है, समझाना है, बताना है
जब मैं हूं बाहर सारे खतरे उठाए
तो आपको बाहर क्यों जाना है
इतना तो तय है, छुपना नहीं, छुपाना नहीं
जीतने के लिए हमें बस सच बताना है
थक गए होंगे सब इस रोक-टोक से
इस शत्रु से लड़ने के मेरे तौर-तरीकों से
खड़ी हूं इस तपती धूप में इन वीरान सड़कों पर
भरोसा है जल्द लौटेगी इन सड़कों की चहल-पहल
वो शोरगुल, वो लाल, पीली, हरी बत्ती का खेल
वो सिटी बसों में भागना शहर
वो मोटरसाइकिल पर रेस लगाता शहर
वो खाकी को अपना समझता शहर
एक अच्छी खबर सुनानी थी मुझे
जल्द हारेगा वो यह बताना था मुझे
जल्द खुलेंगे सभी बंद ताले
चाबियां ढूंढ़ने की जिम्मेदारी जो मैंने ले रखी है
है अंधेरा ज्यादा तो क्या, मशाल तो मैंने जला रखी है
मुस्कुराहटें अब ना रुकेंगी, हर आंसू पोंछने की
जिम्मेदारी जो मैंने ले रखी है
कभी-कभी सूखे पत्तों के पंख लगाए
मेरा मन भी उड़ जाता है घर पर
मन करता है घर में कुछ समय बिताऊं
अपनों की कुछ सुनूं , कुछ अपनी सुनाऊं
अपनों के साथ फुरसत के कुछ पल बिताऊं
लेकिन नहीं, मैं खाकी, घर पर नहीं रह सकती हूं
शपथ जो ली है, वह नहीं तोड़ सकती हूं
जानती हूं मेरी चिंता में मां ने दवाई न ली होगी
घर के ठहाकों ने मेरी कमी महसूस की होगी
रसोई नित नए प्रयोगों से सज रही होगी
घर में खेले जा रहे खेलों में
एक खिलाड़ी की कमी होगी
लेकिन खुश हूं यह सोचकर इस कैद में
आजाद हैं सब इस विपदा की बेड़ियों से अब
कहते हैं सच्चा दोस्त वही
जो हर मुश्किल में साथ दे
तलवार की मार हो या पत्थरों की बौंछार हो
हर इम्तिहान तो खामोशी से देती आई हूं
फिर कैसी शंका, क्यों आशंका
पता नहीं कितना कह पायी हूं
कितना एहसास करा पायी हूं
मैं खाकी, सदा आपका साथ देती आई हूं

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