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अमिताभ के दीवाने ये IPS शूटिंग देखने स्कूल, ट्यूशन से मार देते थे बंक, गणित में फिसड्डी और पढ़ाई को बोरिंग मानने वाले अब हैं देश के चर्चित SSP

अमिताभ के दीवाने ये IPS शूटिंग देखने स्कूल, ट्यूशन से मार देते थे बंक, गणित में फिसड्डी और पढ़ाई को बोरिंग मानने वाले अब हैं देश के चर्चित SSP
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By NPG News

रायपुर 19 अप्रैल 2020।...अमिताभ की दीवानगी में कभी स्कूल से बंक…..तो कभी ट्यूशन से अफसेंट….और वो भी तब जब हर पल पापा से पिटाई का डर सताता हो…और टीचर की शिकायत सीधे घर पहुंच जाने का खतरा मंडराता हो। …..कुछ ऐसा ही था 90 के दशक के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को लेकर आज के दौर के SSP आरिफ शेख का जुनून। रायपुर SSP आरिफ शेख ने कमाल का फेसबुक पर संस्मरण पोस्ट किया है। जुनून, जज्बात और सच्चाई में पिरोये इस पोस्ट में एक तरफ सुपर स्टार अमिताभ की एक झलक पाने वाला एक जुनूनी बच्चा है…तो दूसरी तरफ उस जुनून में हर कुछ दांव पर लगा देने वाला पुछल्ला छात्र ।….एक IPS बनने के लिए और चाहिये क्या होता है। कामयाबी का जुनून….परिणाम की परवाह किये बगैर फैसले पर अडिग और अपनी सच्चाई की इमानदारी से स्वीकारोक्ति ।

2005 बैच के IPS आरिफ बताते हैं कि स्कूली दिनों में वो बेहद औसत दर्जे के थे। गणित में वो फिसड्डी तो थे ही…. पढ़ाई में दिल बिल्कुल नहीं लगता था। आज बेशक आरिफ कईयों के रॉल मॉडल हो, कई मां-बाप बच्चों को आरिफ जैसे IPS बनाने की तमन्ना रखते हों….लेकिन खुद आरिफ तब उस वक्त अभिताभ के दीवाने थे। दीवानगी भी ऐसी, जिसके लिए स्कूल तो छोड़िये परीक्षा भी छोड़ दिया करते थे। आरिफ बताते हैं कि उनके पिता कड़क पुलिस अफसर थे और अफसर वाला ये उनका रौब घर पर भी बना रहता था। पापा से खुद भी खूब डरते थे, लेकिन अभिताभ को लेकर जुनून कुछ ऐसा चढ़ता था कि फिर उन्हें आगे पीछे अभिताभ के अलावा कुछ और नजर ही नहीं आता था।

साल 1990 में सातवीं कक्षा की एक बानगी उन्होंने शेयर की है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि किस तरह वो अमिताभ के “अकेला” फिल्म की शूटिंग देखने के लिए ट्यूशन को अबसेंट कर दिया…और फिर भी जब अमिताभ को दिल खोलकर देख पाने की उनकी मुराद पूरी नहीं हुई तो स्कूल ही बंक मार दिया। …आरिफ शेख अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखते हैं….

“चल चल री चल मेरी रामपियारी..मैं भी कुँवारा तू भी कुंवारी…रब ने बनाई जोड़ी हमारी….. यह गाना आपको सुना सुना सा लग रहा होगा। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की एक सुपर फ्लॉप फ़िल्म “अकेला” का यह सुदेश भोसले द्वारा गाया कर्कश गाना आप बोहोत लोगो के स्मृतिपटल पर शायद अब तक आ चुका होगा। फ़िल्म में अमिताभ ने एक पुलिस अफसर का किरदार निभाया था जिसकी एक पीली Bentley कार है जिससे वह काफी चाहता है, जो उसके इशारों पर चलती है, उसकी भावनाओं को समझती है 😢 आज मुझे रह रह कर यह ख्याल आया रहा है कही james bond के Casino royale वाली Aston Martin शायद रामपियारी से तो प्रभावित नही हुई थी 😂 खैर… अमिताभ को इस फ़िल्म से बोहोत आस थी लेकिन तूफान, जादूगर जैसी घटिया फिल्मो ने जो उनकी नैय्या में छेद किये थे उसमे और एक बड़ा गड्ढा इस फ़िल्म ने खोद दिया। पिछले डेढ़ दशक से अमिताभ का pheonix rise किसी परिकथा से कम नही। अमिताभ बच्चन का तब भी जलवा था और अकेला के 30 साल बाद आज भी कायम है।

तो बात है 1990 कि जब मैं सातवी कक्षा में पढ़ता था। सही बोलो तो वह समय काफी दुखदर्दी वाला था।गणित का बोहोत बुरा हाल था । Unit test और semester परीक्षा में गणित में मैं साफ fail हो चुका था दूसरे विषयो में भी स्तिथि कुछ खास नही थी। मुझे इसलिए एक ट्यूशन में भेजा जा रहा था जो मेरे घर से 10 km दूर भण्डारवाड़ा में स्थित था। भण्डारवाड़ा मेरे स्कूल के बगल में था लेकिन उस ट्यूशन में मेरा मन कभी नही लगा। सब Intelligent छात्रों के बीच मैं एक “अकेला”ही mediocre था। माजरा तो यह था कि गणित के प्रश्नों के उत्तर भी मैं रट के परीक्षा में जाता था लेकिन प्रश्न ही भूल जाता था। घर आके जब cross check करता तब अहसास होता कि “लग गयी है”।

इस कठोर जीवन के बीच एक सुखद ठंडी हवा का झोंका तब आया जब हमारे घर के करीब चन्द दूरी पर अकेला की शूटिंग हुई। जिस वजह से कम से कम हफ्ते भर के लिए ही क्यो ना सही मेरे जीवन से नैराश्य चला गया।अब दोपहर में स्कूल से आने के बाद फिर वापस ट्यूशन जाने में अब बिल्कुल ही मन नही लग रहा था(वैसे मन तो पहले ही नही लगता था 😣)। अमिताभ की एक झलक पाने मैं पहले दिन जैसे तैसे क्लास पूरी कर के पोहचा तब तक पैक-अप हो चुका था। दूसरे दिन मैंने यह निश्चय किया कि जो हो जाये शूटिंग तो मैं देख के ही रहूंगा। मैंने दोपहर का ट्यूशन बंक करने की योजना बनाई, लेकिन दिक्कत यह थी कि उस दिन ट्यूशन में Test भी था, लेकिन अमिताभ से बढ़कर थोड़ी था गणित।
घर से दोपहर खाना खाके revison का नाटक करते हुए बाये जाने के बजाय दाहिने मोड़ लेते हुए मैं सीधे पोहचा जोगेश्वरी ओवर ब्रिज के नीचे। वहां पर आसानी से 2-3 हजार लोग जमे हुए थे। ब्रिज के पास खड़ी थी एक मर्सेडीज़ की कारवां और उसमें थे सुपर स्टार अमिताभ। ब्रिज के ऊपर एक पीले कलर की एक डुकर फ़िएट (रामपियारी)खड़ी थी और एक पुलिस वाले को एक अंग्रेज कलाकार (Kieth Stevenson, जिसने बाद में टीपू सुल्तान में लार्ड कॉर्नवॉलिस का किरदार निभाया था) पीट रहा था। उस scene के लगभग 10 टेक हुए लेकिन बच्चन साहब गाड़ी के बाहर निकलने तैयार नही हुए। उस अलौकिक माहौल में भी मेरे अंदर एक मायूसी थी क्यो की 2 घंटे बिट चुके थे और “भगवान” के दर्शन नही हुए थे। अंधेरा होने को था तब अचानक caravan का दरवाजा खुला और काले कपड़ो में अमिताभ नीचे उतरे और फिर एक सीन फिल्माया गया। अमिताभ की एक झलक पा के मेरा हाल वही था जो Slumdog millionaire में जमाल मालिक का था। ना चाहते हुए भी मुझे तुरन्त घर लौटना था , ट्यूशन तो मैं मिस कर ही चुका था और अब शूटिंग भी। लेकिन extraordinary situation calls for extraordinary measures, पता चला अगले दिन शूटिंग खत्म होने वाली है तब मैंने यह निर्णय लिया कि अब तो स्कूल ही बंक कीया जाए क्योंकि अमिताभ तो अमिताभ है।

दूसरे दिन सुबह 7 बजे स्कूल के बजाय सीधे पोहोंच गया ब्रिज के पास और इंतेज़ार करते रहा। शूटिंग वाले स्पॉट बॉयज 9 बजे के आसपास आये। कुछ पुलिस वाले भी आ गए थे, कुछ एक ने पूछा भी स्कूल छोड़ यहां क्या कर रहे हो तब मैंने सच्चाई बता दी । कुछ एक का दिल पसीजा और मुझसे वादा किया मिलवा देंगे बच्चन साहब से। मैं बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा था उनके आने का, 12 बजे कारवां की एंट्री हुई और अपने निर्धारित स्थान पर खड़ी हो गयी। पुलिस वालों ने घेरा बना लिया , बच्चन साहब इस बार कारवां के बाहर एक कुर्सी पर बैठे और एक सुनहरी कंगी से अपने बाल बनाने लगे, मेकअप मैन मेकअप करने लगा। मैं औरो की तरह कोशिश कर रहा था उनके करीब जाने की। उस धक्का मुक्की में एक आरक्षक जिसने मुझसे वादा किया था उसने मुझे पहचाना और मुझे अंदर घुसा दिया। मैं अब सदी के महानायक के बिल्कुल पास खड़ा था, उन्होंने मुझे देख पूछा स्कूल नही गए…मैं अब तक होश हवाज़ खो चुका था। ख़ुद को संभालते हुए मैंने मेरी गणित की नोटबुक उनको दी जिसे मुझे ऑटोग्राफ मिल गया। मैं सातवे आसमान में था उस वक्त पहली बार जो चाहिए वो हासिल किया था , ये बात और है कि unit test 2 में भी मैं गणित में fail हो गया लेकिन fail होने वाला मैं ” अकेला ” थोड़ी ही था”

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