इस IAS का 10th में आया था थर्ड डिवीजन, रिजल्ट आया तो पापा ने कहा, दोबारा परीक्षा दो….IAS का जवाब था-फेल हो गया तो, मिलिए छत्तीसगढ़ के इस आईएएस से…
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रायपुर 24 जून 2020। …जो 10th की मार्कशीट देख बच्चे की भविष्य बताने का दंभ भरते हों….जो 12वीं की रिजल्ट देख बच्चे की तकदीर का फैसला कर देते हों….जो बच्चे के नंबर देख नकारा और कामयाबी की कुंडली गढ़ने लगते हों… उन्हें कम से कम एक बार IAS अवनीश शरण का ये सर्टिफिकेट जरूर देखना चाहिये। ….अगर स्कूल और कालेज के नंबर बच्चे के भविष्य तय करते तो देश को एक IAS नहीं मिलता… छत्तीसगढ़ को एक कामयाब एडमिस्ट्रेटिव अफसर नहीं मिलता।
10वीं की परीक्षा तृतीय श्रेणी से और ग्रेजुएशन की परीक्षा किसी तरह खींच-खांचकर प्रथम श्रेणी से पास करने वाले अवनीश एक उदाहरण भी हैं…एक सीख भी हैं और एक मोटिवेटर भी। अवनीश ने अपने अकादमिक करियर की जानकारी खुद सोशल मीडिया में शेयर की है। उन्होंने अपने थर्ड डिग्री के 10TH के रिजल्ट का जिक्र करते हुए ट्वीट किया है…
10वीं का रिज़ल्ट आया था.मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि मुझे 44.5% मार्क्स मिले हैं.समझ नहीं आया कि ख़ुश होऊँ या दुःखी.
शाम में पापा घर आये.मैंने खुश होकर बोला कि मैं पास कर गया.जब पापा को पता चला कि 3rd डिविज़न आया है तो बोले ‘फिर से इग्ज़ाम दो’.मैंने बोला कि अगर फेल हो गया तो!😂— Awanish Sharan (@AwanishSharan) June 23, 2020
हाँ, मैं अपने रिज़ल्ट की ही बात कर रहा…और मैंने पापा की बात नहीं मानी. हाँ ये ज़रूर बोला कि “आगे देखिएगा.”😊 https://t.co/bdWRIiUli3
— Awanish Sharan (@AwanishSharan) June 23, 2020
अवनीश ने ये ट्वीट कर बताने की कोशिश की है कि नाकामी से सबक लेकर कामयाबी की राह तैयार की जा सकती है। ये ट्वीट उन बच्चों के लिए भी सुखद नसीहत है कि जो अपने अकादमिक मार्क्स की वजह से तनाव में आ जाते हैं और कुछ भी अनहोनी कर बैठते है।
इससे पहले जब पिछली दफा बोर्ड का रिज्लट जारी हुआ था, तो भी उन्होंने अपनी 10वी की मार्क्ससीट साझा की थी। जो आज के बच्चों के लिए गोल्डन इंस्परेशन से कम नहीं। पहला इंस्परेशन उन बच्चों के लिए जो सिर्फ नंबरों के लिए भागते हैं और फिर उसे हासिल नहीं कर पाने पर मायूस होकर गलत कदम उठा लेते हैं और दूसरे इंस्परेशन उन बच्चों को लिए जो अपने 10वीं की रिजल्ट के आधार IAS बन पाने का सपना छोड़ देते हैं।
ऐसी है अवनीश के कलेक्टर बनने की कहानी
मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर के केवटा गांव के रहने वाले अवनीश बेहद साधारण परिवार से हैं। पिता शिक्षक थे और मां गृहणी थी। पूरी पढ़ाई उनकी गांव और आसपास में हुई। घर पर बिजली नहीं थी, सो लालटेन के सहारे अपनी पढ़ाई पूरी की। स्कूल के दिनों में औसत दर्जे के छात्र रहे अवनीश को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब 10वीं में उनका रिजल्ट थर्ड डिवीजन आया। लेकिन वो दूसरे बच्चों की तरह हार मानने वालों में नहीं थे। आगे बढ़ने की ललक, नाकामी को छोड़ अपनी नयी राह की तलाश में वो आगे बढ़ते रहे फिर 12वीं में उन्होंने 65 फीसदी अंक हासिल किया, लेकिन ग्रेजुएशन में एक बार फिर किसी तरह से फर्स्ट डिवीजन में जगह बना सके। औसत दर्जे के छात्र जिस वक्त में शिक्षक व छोटी-मोटी नौकरी को अपना लक्ष्य मान लेते हों. उस वक्त उन्होंने IAS बनने का सपना देखा। हालांकि तब भी लोग हैरान हुए होंगे, लेकिन हौसले ने पर लगाये, तो फिर कामयाबी की उड़ान पर कैसे रोक लगती। अवनीश 7 साल के कठिन परिश्रम के बाद एक कलेक्टर बनकर लौटे। 2009 बैच के IAS अवनीश ने एक साक्षात्कार में कहा था कि UPSC में पेसेंस जरूरी है। लिहाजा 2002 में ग्रेजुएशन के बाद 7 साल उन्होंने मेहनत की और फिर कामयाबी का झंडा बुलंद किया।