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क्या था नेताजी सुभाष बोस की घड़ी और गीता का रहस्य

क्या था नेताजी सुभाष बोस की घड़ी और गीता का रहस्य
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By NPG News

संजय श्रीवास्तव, सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा किताब के लेखक हैं

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की खबर के बाद कर्नल हबीबुर्रहमान ने एक चौकोर घड़ी जवाहर लाल नेहरू को दी. इसके चमड़े की पट्टी जली हुई थी, उन्होंने नेहरू से कहा कि ये बोस की है, जो नेताजी हादसे के दौरान पहने हुए थे. ये घड़ी सुभाष जांच मामले में एक ऐसी रहस्य बनी कि आज का अनसुलझी ही है. साथ ही हमेशा नेताजी के साथ रहने वाली गीता, सिगरेट केस, लाइटर और चश्मे का भी मामला भी.

दरअसल जब आजादी के बाद देश में ये बात जोर पकड़ने लगी कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीवित हैं. किसी सुरक्षित जगह पर हैं. अगर सरकार इस पूरे मामले की जांच कराए तो सच्चाई खुद सामने आ जाएगी. तमाम सियासी दल सरकार से लगातार इसकी मांग कर रहे थे. आखिरकार नेहरू सरकार ने 03 नवंबर 1955 को शाहनवाज खान की अगुवाई में एक जांच आयोग के गठन की घोषणा की.

इस आयोग में तीन सदस्य थे. एक खुद आजाद हिंद फौज के पूर्व मेजर जनरल शाहनवाज खान, दूसरे बंगाल के आईसीएस एस एन.मित्रा और तीसरे सुभाष के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस. बाद में नेताजी के बड़े भाई ने ना केवल इस आयोग की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए बल्कि अपनी एक रिपोर्ट अलग से जारी की. इस रिपोर्ट का आमतौर कम जिक्र होता है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर लेखक संजय श्रीवास्तव की किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा में विस्तार से ये पूरी रिपोर्ट दी गई है.

इस रिपोर्ट में कई बातें कही गईं. एक ऐसा जिक्र इसमें हुआ, जिसने इस हवाई हादसे में सुभाष के निधन पर सवाल खड़ा किया. जो घड़ी, गीता, सिगरेट केस और लाइटर को लेकर था. ये घड़ी नेहरू के पास से आजाद हिंद फौज मामले की पैरवी कर रहे वकील भूलाभाई देसाई के पास पहुंची. वहां से वो नेताजी के सबसे बड़े भाई शरत चंद्र बोस तक.

ये घड़ी सुभाष की नहीं थी

सुरेश चंद्र की असहमति रिपोर्ट के अनुसार, कर्नल हबीबुर्रहमान का कहना था कि उन्हें ये घड़ी मिलिट्री अस्पताल के डॉक्टर योशिमी ने बोस के इलाज के दौरान दी थी. तायहोकु के इसी अस्पताल में उनका निधन बताया गया था. लेकिन डॉक्टर ने आयोग की पूछताछ में इस बात से साफ इनकार कर दिया कि उसने कर्नल रहमान को कोई घड़ी दी थी. जबकि ये बात खासी अहम थी और अगर ऐसा हुआ होता तो ना केवल डॉक्टर योशिमी इसकी पुष्टि करते बल्कि शाहनवाज जांच आयोग को भी बताते.

हबीब नेताजी के भतीजे को कोई जवाब नहीं दे सके

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भतीजे द्विजेंद्र नाथ बोस, जिन्होंने शाहनवाज जांच आयोग के सामने उस घड़ी का फोटोग्राफ पेश किया. उन्होंने कर्नल के उस बयान को चुनौती दी. जब हबीब 23 जनवरी 1947 को कोलकाता के गलगछिया विला में सुभाष जंयती पर आए तो द्विजेंद्र ने उन्हें घड़ी वाले मामले से संबंधित बयान पर चुनौती दी. कर्नल रहमान के पास कोई जवाब नहीं था.

घड़ी में सुबह का समय क्यों, जबकि हादसा दोपहर में

असहमति रिपोर्ट कहती है, किसी भी गवाह ने भी ये बात नहीं कही कि नेताजी ने कभी ये घड़ी पहनी थी. उनका कोई ऐसा फोटोग्राफ ऐसा नहीं है, जिसमें वो ये घड़ी पहने दिखते हैं. नेताजी कभी चौकोर घड़ियां नहीं पहनते थे. ये भी हैरानी है कि इस घड़ी का कोई नुकसान नहीं हुआ. आखिर प्लेन से इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद इसे कोई नुकसान क्यों नहीं हुआ, आखिर इस हादसे में दो लोगों की मौके पर ही मौत बताई गई और फिर अस्पताल में नेताजी का निधन होने की खबर आई. सवाल ये भी उठता है कि इस घड़ी में आठ बजकर एक मिनट का समय क्यों दिखा रहा है, इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. विमान हादसे का समय दोपहर 2.38 बजे बताया गया.

एक अन्य गवाह एस एम गोस्वामी ने कहा कि नेताजी ने कभी ऐसी कोई घड़ी नहीं पहनी. वो हमेशा राउंड यानि गोलाई वाली घड़ी हाथों में पहनते थे, जिसे उनके पिता ने गिफ्ट में दिया था. आजाद हिंद फौज के कर्नल एचएल चोपड़ा ने कहा, सुभाष हमेशा गोलाई वाली घड़ी पहनते थे, वो कभी दूसरी घड़ी नहीं पहनते थे.

चश्मा, गीता, सिगरेट केस क्यों नहीं मिला

नेताजी के एक और भतीजे अरविंदो बोस ने कहा, नेताजी केवल अपनी राउंड वॉच ही हमेशा अपने साथ नहीं रखते थे बल्कि चश्मा, पढ़ने वाला चश्मा, सिगरेट केस, सिगरेट लाइटर, हिंदू धार्मिक किताब गीता और दूसरे कई छोटे सामान हमेशा अपने साथ लेकर चला करते थे. वो इनकी जगह कुछ और इस्तेमाल नहीं करते थे. ऐसा क्यों हुआ कि कर्नल रहमान इन चीजों में कोई चीज क्यों नहीं ला सके, जिससे उनके निधन की बात ज्यादा साबित हो पाती.

ये है चौकोर घड़ी की असली कहानी

इसकी जगह कर्नल एक चौकोर घड़ी लेकर आए, जिसे नेताजी ने ही उन्हें गिफ्ट के रूप में दिया था. दरअसल इस चौकोर घड़ी की भी एक कहानी है. ये घड़ी नेताजी को उपहार में मिली कई घड़ियों में एक थी. इसे तत्कालीन फिलिपींस के राष्ट्रपति डॉक्टर जोस लौरेल ने दिया था. ऐसी दो घड़ियां उन्हें गिफ्ट में मिलीं थीं, जिसमें से एक उन्होंने कर्नल हबीब उर रहमान को दी और दूसरी शाहनवाज खान को, जब वो आजाद हिंद फौज में थे. इसके अलावा कुंदन सिंह को नेताजी ने अपना व्यक्तिगत पर्स दिया था, जिसमें उन्होंने तोक्यों से सिंगापुर आने की तारीख 02 जुलाई 1943 से लेकर वहां से आखिरी बार बैंकाक रवाना होने की तारीख 17 अगस्त 1947 तक इस्तेमाल किया था.

रिपोर्ट में कहा गया, नेताजी हमेशा राउंड वाच ही पहनते थे. इसके अलावा उन्होंने कभी कोई दूसरी घड़ी पहनी ही नहीं. नेताजी के पास इसके अलावा जेब में रखने वाली एक राउंड वॉच भी थी, जिसे वो हमेशा केस में लेकर चलते थे. इसे वो सोते समय अपने तकिये के नीचे रखते थे. इसलिए ये पुख्ता सबूत है कि नेताजी ने कभी चौकोर घड़ी नहीं पहनी. इसलिए कर्नल रहमान का इसे सबूत के तौर पर पेश करना उनकी चूक ही माना जाना चाहिए. इससे भी लगता है कि किस तरह नेताजी के निधन की खबर फैलाई गई. इससे ये विश्वास और पुख्ता होता है कि विमान हादसा जैसी कोई चीज नहीं हुई और ना ही उसमें नेताजी का निधन.
इस किताब में तमाम ऐसी बातें हैं जो सुभाष चंद्र बोस को लेकर तमाम नए पहलुओं और दस्तावेजों के बिना पर उन नई जानकारियों को सामने लाती है. इसमें सुभाष को लेकर पिछले 75 सालों में उभरने वाले तमाम सवालों के जवाब भी देने की कोशिश की गई है.

(किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा का अंश)
किताब – सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा
लेखक – संजय श्रीवास्तव
प्रकाशक – संवाद प्रकाशन, मेरठ
पेज – 288 (पेपर बैक)
मूल्य – 300 रुपए (अमेजन पर उपलब्ध)

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