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कलिंगा यूनिवर्सिटी में हिन्दी भाषा और संस्कृति विषय पर संवाद गोष्ठी का आयोजन, सुप्रसिद्ध साहित्यकार रमेश द्विवेदी और प्रभुनारायण वर्मा रहे मौजूद

कलिंगा यूनिवर्सिटी में हिन्दी भाषा और संस्कृति विषय पर संवाद गोष्ठी का आयोजन, सुप्रसिद्ध साहित्यकार रमेश द्विवेदी और प्रभुनारायण वर्मा रहे मौजूद
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By NPG News

रायपुर 14 सितम्बर 2020। कलिंगा विश्वविद्यालय,नया रायपुर(छत्तीसगढ़) में “कला एवं मानविकी संकाय” के अंतर्गत हिन्दी विभाग के द्वारा 14 सितम्बर को ” हिन्दी भाषा और संस्कृति विषय पर संवाद गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार रमेश द्विवेदी और विशिष्ट वक्ता के रुप में देश के सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार प्रभुनारायण वर्मा उपस्थित थें।

कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की वंदना से प्रारंभ हुआ।”संवाद गोष्ठी”कार्यक्रम में मुख्य वक्ता रमेश द्विवेदी ने भाषा और संस्कृति विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि “हिन्दी भाषा की विविध बोलियो” के शब्दों से हिन्दी भाषा पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकीकरण हो सकता है।जो आज हिन्दी भाषा के प्रयोग में स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।

द्विवेदी ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि आज हिन्दी वैश्विक भाषा बन चुकी है। संचार क्रांति‍ ने पहली बार भाषा वि‍शेष के वर्चस्‍व की वि‍दाई की घोषणा कर दी है। संचार क्रांति‍ के पहले भाषा वि‍शेष का वर्चस्‍व हुआ करता था।संचार क्रांति‍ के बाद भाषा वि‍शेष का वर्चस्‍व स्‍थापि‍त करना संभव नहीं है। अब कि‍सी भी भाषा को हाशि‍ए पर बहुत ज्‍यादा समय तक नहीं रखा जा सकता।आज साइबर युग में बीस साल पहले की हिन्दी भाषा की स्थिति और आज की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर दिखलाई पड़ता है।

सुप्रसिद्ध साहित्यिकार प्रभुनारायण वर्मा ने हिन्दी भाषा के स्वरूप और वर्तमान समय में हिन्दी भाषा की स्थिति पर विस्तार से बतलाया।उन्होंने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति और संचार में बाधक नहीं बन सकती और कोई व्यक्ति यदि मातृभाषा में सोचता, समझता और सीखता है तो उसका दूसरी भाषा में अंतरण आराम से कर सकता है और चिरकाल तक वह उसके मनोमष्तिष्क पर छायी रहती है।

उन्होंने कहा कि हिन्दी दिवस अंग्रेजी भाषा के विरोध और विलाप का दिवस नहीं है बल्कि अपनी भाषा के सम्मान का दिन है।उन्होंने कहा कि सभी को अपनी मातृभाषा से और संविधान से मान्यताप्राप्त राजभाषा से प्रेम होता है।अपनी मातृभाषा के मानक स्वरुप को सरल,सहज और शिक्षा,संचार और तकनीकी की भाषा के रुप में विकसित करना हमारी जिम्मेदारी है।इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि चीन,जापान और जर्मनी जैसे देश इसीलिए इतनी प्रगति कर रहे है क्योंकि वे अपनी भाषा का प्रयोग राजकाज से लेकर दिनानुदिन सभी कार्यों में करते हैं।

उक्त कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ.आशा अंबईकर,कला एवं मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ.एम.एस.मिश्रा,हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.अजय शुक्ल, अरुण जायसवाल,डॉ.शिल्पी भट्टाचार्य,डॉ.अनिता सामल,डॉ.नम्रता श्रीवास्तव, ए.के. कौल, स्वरुपा पंडित,खुशबू सिंह, मेरिटा, चंदन सिंह राजपूत, मुकेश रावत, स्मिता प्रेमानंद,शैलेश देशमुख,ए.विजय आनंद आदि प्राध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित थें।कार्यक्रम का संचालन अरुण जायसवाल और आभार प्रदर्शन डॉ.एम.एस.मिश्रा ने किया।

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