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सोनेसिल्ली का अजीब किस्सा: सियासत का चना ज़ोर गरम.. प्रशासन कहता है अतिक्रमण है जिसे ग्राम सभा ने हटा दिया और प्रभावित कहते हैं ज़मीन पर हमारा हक़ है

सोनेसिल्ली का अजीब किस्सा: सियासत का चना ज़ोर गरम.. प्रशासन कहता है अतिक्रमण है जिसे ग्राम सभा ने हटा दिया और प्रभावित कहते हैं ज़मीन पर हमारा हक़ है
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By NPG News

रायपुर,5 अगस्त 2021। राजधानी से तैंतीस किलोमीटर दूर बसे एक गाँव का अजीब क़िस्सा है। गाँव है सोनेसिल्ली, इस गाँव के 58 परिवारों का 115 एकड़ ज़मीन पर क़ब्ज़ा है, ये परिवार दावा करते हैं कि इन्हें इनकी ज़मीन से सियासती कारणों से हटाया जा रहा है, प्रशासन का दावा इसके बिल्कुल उलट है। प्रशासन के के अनुसार जिस ज़मीन को ये ग्रामीण अपनी बता रहे हैं वह ज़मीन इनकी कभी थी ही नही, यह एक समिति के नाम थी और 1995 से यह ज़मीन राजस्व रिकॉर्ड में शासकीय भुमि कॉलम में समाहित है।

1972 में एकीकृत मध्यप्रदेश के समय में कृषि सहकारी समितियाँ बनाई गई थीं, इसमें कृषि के लिए ज़मीनें दी गई थी, 1991 में तत्कालीन सरकार ने इसे भंग कर के ज़मीनों को राजस्व विभाग में निहित कर दिया जिसके बाद कई जगहों पर मसले कोर्ट कचहरी की चौखट पर गए लेकिन कहीं से भी ऐसा दृष्टांत पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं मिला है जिसमें कि इस आदेश पर रोक लगा कर कृषि सहकारी समिति को या कि इन समितियों के तहत आबंटित ज़मीन पर क़ाबिज़ कृषकों को स्वामित्व दे दिया गया हो।प्रशासन यथावत काग़ज़ों पर रफ़्ता रफ्ता चलता रहा, और कृषक अलग अलग दरवाज़ों पर हारते गए।

यही मसला है सोनेसिल्ली गाँव का.. तंत्र अपने तरीक़े से चलता है और सियासत वक्त देख रंग और भुमिका तय कर लेती है। सोनेसिल्ली के 58 परिवार जिनका ये दावा है कि ज़मीन उनकी है, और उन्हें बलपूर्वक बेदख़ल किया जा रहा है, जिसमें सरपंच पति की भुमिका है, उस मामले में सरकारी रिकॉर्ड को देखें तो पता चलता है कि,तमाम कोर्ट कचहरी कलेक्ट्रेट तहसील कोर्ट से लगायत हाइकोर्ट होते हुए मामला वापस तहसील कोर्ट पहुँचा और 2020 में फायनल ऑर्डर आया कि, ज़मीन शासन की है, अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही हो।

प्रभावितों का आरोप है कि ग्रामसभा ने बलप्रयोग कर खदेड़ दिया, जबकि इस मसले पर प्रशासन का तर्क है कि, ग्रामसभा को ही पूर्ण अधिकार है और उसने अधिकारों का प्रयोग किया है।
सोनेसिल्ली के मामले में एक और विसंगति साफ़ दिखती है और समझ आता है कि ”तारीख़ पे तारीख” लेकर कैसे ज़मीनों के मामले बरसों बरस बस सरकते जाते हैं। ज़ाहिर है यह सियासती चना ज़ोर गरम के बग़ैर संभव नहीं है, और यह भी उतना ही सच है कि किसान को ज़मीन दे दी गई और उसमें उसका हल चल गया तो फिर उससे जुदा करना अगर कठिन नहीं है तो इतना आसान भी नहीं है।इस मामले में क़ानून और क़ानून के क्रियान्वयन के भीतर की पेंचीदगी इतनी है कि,समझना मुश्किल है बेबस कौन है, और लाभ कौन उठा रहा है।
इस मसले में क्या यह लिखा जाए कि सरकार सर्वशक्तिमान होती है और तीस बरस से सरकार को अपनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा नहीं मिल रहा है, या यह लिखें कि किसान को ज़मीन मिली और यह बता कर मिली कि अब ये सरकारी ज़मीन तुम्हारी, खेती करो और वह खेती करने लगा।1972 से 1991 याने क़रीब उन्नीस बरस किसान खेती करता रहा और फिर एक दिन सरकारी फ़रमान आया कि अब ज़मीन सरकारी, किसान हट जाएँ, और उसके बाद अपील.. आदेश.. पुनर्विलोकन.. फिर अपील करते हुए 29 बरस और मामला चला तब तहसीलदार की कोर्ट ने फायनल ऑर्डर दिया –
”भुमि शासन की है अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही हो”
अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही का नियम है कि नोटिस जारी होगा और अतिक्रमण हटा दिया जाएगा, गाँव में यह अधिकार ग्राम पंचायत की ग्राम सभा को है, और ग्राम सभा ने इस आदेश का क्रियान्वयन करा दिया। इस क्रियान्वयन को ग़लत करार देते हुए 58 परिवार एसडीएम कोर्ट पहुँच गए। एसडीएम कार्यालय से पहले स्टे मिला और फिर उसे हटा दिया गया।

ये मामला अभी कैसे सामने आया तो इसका जवाब यह है कि, यह 58 परिवार राज्य सरकार
की रिहाईश इलाक़े याने मंत्रियों के बंगले की वजह से पहचाने जाने वाले शंकर नगर पहुँच गए और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के बंगले के सामने बैठ गए। इनकी माँग थी कि मंत्री चौबे आएँ और बात सुनें, पर पुलिस आई और इन्हें बूढ़ा तालाब वाले धरना स्थल पहुँचा गई।

सियासत तब और तेज हो गई जबकि मामले में किसान मोर्चा ने दखल दिया। किसान मोर्चा प्रदेश उपाध्यक्ष गौरीशंकर श्रीवास और वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर साहू धरना स्थल पर किसानों के साथ बैठ गए। पटाक्षेप हुआ जबकि प्रदेश उपाध्यक्ष गौरीशंकर श्रीवास ने दावा किया कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रशासन से चर्चा की है और आश्वासन मिला है कि फ़िलहाल जब तक बरसात का मौसम है तब तक कोई हटाने की कार्यवाही या फसल को नुक़सान नहीं पहुँचाया जाएगा।
लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है तो इसका जवाब कलेक्टर रायपुर सौरभ कुमार ने कुछ यूँ दिया
”ऐया कोई आश्वासन नहीं दिया गया है.. यह जरुर है कि संवाद कराने की बात मैंने कही है, यह जरुर है कि, उनमें तीन परिवार ऐसे हैं जो भुमिहीन है उनके लिए ज़मीन की व्यवस्था नियमों के तहत किए जाने के निर्देश मैंने दिए हैं”

खबरें यह भी है कि सोनेसिल्ली गाँव दो ख़ेमों में बंट गया है, एक तरफ़ ये 58 परिवार हैं तो दूसरी ओर शेष गाँव। एसडीएम अभनपुर निर्भय साहू ने इस मसले को लेकर जानकारी दी
”ग्रामीणों को गाँव में गौठान बनाना है तो ज़मीन नहीं है,चारागाह के लिए ज़मीन नहीं है, आंगनबाड़ी नहीं बन पा रही है क्योंकि ज़मीन नहीं है। इस वजह से तनाव तो है”
बहरहाल मामला बस थमा है.. मगर कब तक यह बता पाना मुश्किल है.. और तनाव भरी शांति का अंत क़िस रुप में होगा यह भी भविष्य
के गर्भ में है।

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