सावन में कई चीजें खाने-पीने को लेकर धार्मिक और आयुर्वेदिक रूप से मनाही भी होती है, आइए जानते हैं उसका कारण.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन मास में भगवान शिव को कच्चा दूध अर्पित किया जाता है, इसलिए इस दौरान दूध और उससे बनी चीज खाने से माना किया गया है.
आयुर्वेद बताता है कि सावन में दही, दूध और कढ़ी जैसी चीजें वात और पित्त को बढ़ाती हैं, जिससे शरीर में अपच, गैस और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
कढ़ी में उपयोग की जाने वाले दही का स्वभाव अम्लीय होता है, जो इस मौसम में धीमी पाचन क्रिया पर नकारात्मक असर डालता है और आंतों में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है.
सावन में बारिश के कारण दूषित घास खाने से मवेशियों के दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जो पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है.
चातुर्मास के दौरान, खासतौर पर सावन और भाद्रपद में दही, छाछ, दूध और मांसाहारी वस्तुओं को खाने से मना किया जाता है, इससे शारीरिक संतुलन बना रहता है.
धार्मिक रूप से कढ़ी, रायता जैसी चीजें तामसिक भोजन की श्रेणी में आती हैं, जो व्रत और तपस्या के दौरान मानसिक एकाग्रता को भंग कर सकती हैं.
चातुर्मास के हर महीने में अलग-अलग चीजों से परहेज़ की परंपरा है, ताकि शरीर मौसम के अनुसार ढल सके और रोगों से बचा रह सके.