विटामिन डी के लिए डॉक्टर धूप सेकने की सलाह देते हैं। हमारी त्वचा सूर्य से आने वाली यूवी किरणों को अवशोषित करके उन्हें विटामिन डी में बदल देती है। इसके अलावा, विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे मछली, अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड दूध और अनाज में भी भरपूर मात्रा में विटामिन डी पाये जाते हैं।
उम्र के अनुसार एक निश्चित मात्रा में विटामिन डी लेना आवश्यक होता है। इंटरनेशनल यूनिट (आईयू) के अनुसार जन्म से 12 महीने तक- 400 आईयू, 1 से 13 वर्ष तक 600 आईयू,
14 से 18 वर्ष तक- 600 आईयू, 19 से 70 वर्ष तक 600 आईयू, 71 वर्ष और उससे अधिक उम्र वालों के लिए 800 IU और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए 600 IU विटामिन डी होनी चाहिए।
विटामिन डी कैल्शियम के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर मौजूद आहार से कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। कैल्शियम हड्डियों के निर्माण और उन्हें मजबूत बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
विटामिन डी की कमी से हड्डियों में दर्द, हड्डी टूटने, मांसपेशियों में दर्द और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा बढ़ जाता है।
विटामिन डी हड्डियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हड्डियों के घनत्व को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
विटामिन डी हड्डियों के साथ-साथ मांसपेशियों को भी मजबूत बनाने के लिए आवश्यक है। मजबूत मांसपेशियां हड्डियों की रक्षा करती हैं। जिससे बढ़ते उम्र के साथ-साथ फ्रैक्चर का खतरा कम हो जाता है।
हड्डियों में कैल्शियम और फास्फोरस के जमाव में विटामिन डी की अहम भूमिका होती है। इस प्रक्रिया को अस्थि खनिजीकरण के रूप में जाना जाता है, जो हड्डियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। विटामिन डी की कमी से हड्डियां नरम हो सकती हैं। जिससे युवाओं में ऑस्टियोमलेशिया और बच्चों में रिकेट्स जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसमे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। इसका मुख्य कारण विटामिन डी की कमी है। विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण और अस्थि खनिजीकरण के माध्यम से हड्डियों के घनत्व और मजबूती को बनाए रखने में मदद करता है।
जिससे ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़े फ्रैक्चर और आर्थोपेडिक के जोखिम को कम किया जा सकता है।