इस प्रकार सन् 1935 के पश्चात किलाघाट, फतेहगढ़ में गंगा के किनारे बाबा ने वास किया। वहाँ गायें भी पाली। किलाघाट से बाबा का सम्पर्क नागरिकों से बढ़ता ही गया। इसके बाद वे एक स्थान पर बहुत दिनों तक नहीं रहे। चौथे दशक में नैनीताल आने से पूर्व वे कहाँ-कहाँ गये,क्या-क्या लीला की इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जाता पर यह अवश्य देखने व सुनने में आया कि धीरे-धीरे उनकी मान्यता बरेली, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, नैनीताल, लखनऊ, कानपुर, वृन्दावन, इलाहाबाद, दिल्ली, शिमला और सुदूर दक्षिण में मद्रास आदि बड़े शहरों में हो गयी।