नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों को अलग-अलग तरह के भोग चढ़ाए जाते हैं। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा को खीर बहुत पसंद है। इसलिए मां को केसर या साबूदाने की खीर का भोग लगाते हैं। पंचामृत का मिश्रण इन सभी पांच गुणों का प्रतीक है।
मां चंद्रघंटा की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार जब स्वर्ग में राक्षसों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का रूप धारण किया। महिषासुर का देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था।
क्योंकि महिषासुर इंद्र के सिंहासन पर अधिकार करना चाहता था और स्वर्ग पर राज करना चाहता था। जब देवताओं को इस बारे में पता चला, तो वे सभी चिंतित हो गए और भगवान ब्रहमा, भगवान विष्णु और भगवान महेश के पास गए।
त्रिदेवों ने देवताओं की बात सुनी और अपना क्रोध व्यक्त किया। कहा जाता है कि इसी क्रोध के कारण त्रिदेवों के मुख से ऊर्जा निकली और उस ऊर्जा से मां चंद्रघंटा नामक देवी अवतरित हुई।
भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, इंद्र ने घंटा और सूर्य ने यश, तलवार और सिंह दिया। इसके बाद चंद्रघंटा मां ने महिषासुर का वध कर देवताओं की और स्वर्ग लोक की रक्षा की।
मां चंद्रघंटा का भोग:- नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों को अलग-अलग तरह के भोग चढ़ाए जाते हैं। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा को खीर बहुत पसंद है। इसलिए मां को केसर या साबूदाने की खीर का भोग लगा सकते हैं।
पंचामृत का मिश्रण इन सभी पांच गुणों का प्रतीक है। पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण होता है। यह मां चंद्रघंटा को अत्यंत प्रिय है।
माता चंद्रघंटा की पूजा विधि:- नवरात्रि के तीसरे दिन विधि-विधान से मां दुर्गा के तीसरे स्वरुप माता चंद्रघंटा की अराधना करनी चाहिए। मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नमः का जप करके की जाती है।
माता चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। आप मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग भी लगा सकते हैं। माना जाता है कि मंत्रों का जप, घी से दीपक जलाने, आरती, शंख और घंटी बजाने से माता प्रसन्न होती हैं।
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