उनके बचपन के दोस्त दशरथभाई पटेल ने वडनगर की गलियों से जुड़े कई किस्से साझा किए हैं।
उन्होंने बताया कि नरेंद्र मोदी बचपन से ही अलग सोचते थे। साधारण परिवार से आने के बावजूद उनके अंदर एक अनुशासन और विजन था, जो उन्हें बाकी बच्चों से अलग बनाता था।
दशरथभाई पटेल, जो PM के स्कूल-कॉलेज और RSS शाखा के साथी रहे, ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया- '1969 में, मैं और नरेंद्र वडनगर में ताना-रीरी (गुजरात की मशहूर गायिका बहनें) के पुराने, जर्जर स्मारक के पास से गुजर रहे थे।
और क्या? 2001 में CM बनते ही उन्होंने वादा निभाया - ताना-रीरी स्मारक को चमका दिया।
दशरथभाई ने कहा, 'उसने अपने सपने को 32 साल तक जिया, और पूरा किया।' ये है वो डिसिप्लिन, जो PM को सबसे अलग बनाता है।
PM मोदी के संघर्ष की कहानी वडनगर रेलवे स्टेशन से शुरू होती है। दशरथभाई ने मिडिया को बताया, बचपन में नरेंद्र अपने पिता की चाय की दुकान पर हेल्प किया करते थे। स्टेशन पर दिन में सिर्फ दो ट्रेनें आती थीं - सुबह और शाम। हाथ में केतली लिए मोदी डिब्बे-डिब्बे जाकर चाय बेचते।'
दशरथभाई ने मीडिया से एक और रोमांच स्टोरी शेयर किया- उन्होंने बताया बाल नरेंद्र ने एक बार वडनगर की शर्मिष्ठा झील से मगरमच्छ का बच्चा पकड़ लिया और घर ले आए। मां हीराबेन ने पहले तो नहे खूब डांट पिलाई, फिर उस बच्चे को वापस झील में छुड़वा दिया।
नरेंद्र मोदी के बचपन का बड़ा हिस्सा RSS शाखाओं में बीता। दशरथभाई बताते हैं “हमने प्राइमरी स्कूल से लेकर विसनगर कॉलेज तक साथ पढ़ाई की। शाखा में जाते, खेतों में साथ खेलते और कभी-कभी दोस्तों संग गुजराती उंधियू का मजा लेते।
स्कूल के नाटकों में मोदी हमेशा स्टार रहते।” यानी, उस वक्त भी उनके भीतर सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि नेतृत्व और मंच की कला झलकती थी।