अपमान को नजरअंदाज करना कायरता नहीं, लेकिन बार-बार सहना मूर्खता है.
चाणक्य कहते हैं "जब तक सहना नहीं छोड़ेंगे, तब तक लोग कहना नहीं छोड़ेंगे."
आत्मसम्मान से समझौता नहीं होना चाहिए, चाहे सामने वाला कितना भी बड़ा क्यों न हो.
अपमान का जवाब तुरंत नहीं, सही समय और तरीके से देना ही समझदारी है.
कम इज्जत चल सकती है, लेकिन बार-बार की बेइज्जती आत्मघात से कम नहीं हैं.
हर बार चुप रहना आपके व्यक्तित्व को कमजोर बना सकता है.
सम्मान की रक्षा खुद करनी होती है, दुनिया खुद नहीं देती.
कर्मों का जवाब कर्मों से देना ही चाणक्य की नीति है.
चाणक्य का संदेश है "इज्जत भले ही कम मिले, लेकिन अपमान का बदला सूद समेत लेना चाहिए.