आचार्य चाणक्य का मानना था कि धन का उपयोग हमेशा सोच-समझकर और योग्य लोगों के हित में होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि किसी भी ऐसे व्यक्ति को धन न दें, जिसमें कोई गुण नहीं है, क्योंकि यह धन व्यर्थ जाएगा.
योग्य और सद्गुणी व्यक्ति को आर्थिक सहायता देने से समाज और स्वयं दोनों का भला होता है.
चाणक्य के अनुसार, धन उसी को दें जो उसकी कद्र जानता हो और उसका सदुपयोग कर सके.
उन्होंने उदहारण देते हुए कहा कि जैसे बादल समुद्र से जल लेकर मीठी वर्षा करते हैं, वैसे ही धन को भी उपयुक्त जगह खर्च करना चाहिए.
जो व्यक्ति मदद लेकर भी नकारात्मकता फैलाते हैं, उनके ऊपर खर्च किया गया धन हानि का कारण बनता है.
चाणक्य स्पष्ट करते हैं कि भावुकता में आकर धन देना मूर्खता है, विवेक से निर्णय लेना चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि गुणहीन व्यक्ति को दिया गया धन समाज में असंतुलन और अपव्यय का कारण बनता है.