छत्तीसगढ़ में ऐसा रेल सुरंग है जो आज भी एक रहस्य बनी हुई है. इस रेल सुरंग का नाम भनवारटंक रेल सुरंग है जो छत्तीसगढ़ के पेंड्रा में स्थित है.
ब्रिटिशकाल में बनाई गई ये सुरंग 117 साल से ज्यादा पुरानी है. भनवारटंक रेल सुरंग को ब्रिटिश शासनकाल में 1907 में बनाई गई थी. जो 331 मीटर लंबी है.
अंग्रेजों ने इस सुरंग का निर्माण कटनी से छत्तीसगढ़ रेल मार्ग को जोड़ने के लिए पहाड़ को काटकर किया था.
भनवारटंक रेल सुरंग अपने रहस्य के कारण जानी जाती है. इस टनल में आकर ट्रेन की रफ्तार धीमी हो जाती है.
यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार टनल के पास आते ही 10 किमी प्रति/घंटे की हो जाती है. जबकि इसके पास बनी सुरंग में ट्रेन 45 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है.
इसके पीछे स्थानीय लोग कई किस्से बताते हैं. कहा जाता है साल 1981 में इस टनल से निकलते ही आमानाला के ब्रिज पर नर्मदा एक्सप्रेस को पीछे से एक मालगाड़ी ने टक्कर मार दी थी.
इस हादसे में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई. घटनास्थल पर खाई होने के कारण शवों को भनवारटंक में एक नीम के पेड़ के नीचे रखा गया था.
हादसे के बाद से कुछ पैरानॉर्मल एक्टीविट्ज होने लगी जिसके बाद मरही माई के मंदिर में पूजा अर्चना होने लगी. तभी से सुरंग के पास ट्रेन की रफ्तार धीमी कर दी जाती है.
माना ये भी जाता है कि सुरंग अब दरकने लगी है. ईंटों से बनी सुरंग की दीवारों में दरारें पड़ रही हैं. इसलिए ट्रेन की गति कम जाती है. यह सुरंग अभी भी एक रहस्य है.