Bhagwan Jagannath Rath Yatra: आज से शुरू भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, जानिए महत्व और इससे जुड़ें अनसुलझे रोचक तथ्य...

Jagannath Puri Temple Rathyatra 20 जून यानि आज पूरी समेत देश भर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। भारत में कोई मंदिर ऐसा नहीं होगा जिसका कोई रहस्य न हो। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के रहस्य के बारे में बताएंगे। जिसके बारे में आप जानकर हैरान रह जाएंगे।
हिंदू धर्म में चार धाम की यात्राका काफी महत्व है। जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri), बद्रीनाथ, रामेश्वरम , द्वारका यह हमारे चारों धाम हैं। इन्ही में से एक धाम जगन्नाथ पुरी है जहां का रहस्य आज भी बरकरार है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर रथयात्रा से जुड़ी बातें:- ओडिशा के किनारे बसे पुरी में मौजूद जगन्नाथ पुरी मंदिर है। ये मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का दर्शन करने हर साल लाखों भक्त आते हैं। जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं के चार पवित्र धामों में से एक है।
ये मंदिर 800 साल से अधिक पुराना है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित है। साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा है जिनकी पूजा की जाती है। पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्माण किया जाता हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी, बहन देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
समुद्र की आवाज मंदिर में नहीं आती:- कहने को तो यह मंदिर समुद्र तट के किनारे बसा है। लेकिन मंदिर के अंदर समुद्र की आवाज सुनाई नहीं देती है। जबकि मंदिर से सटा ही समुद्र है। लेकिन जैसे ही आप मंदिर परिसर के बाहर एक कदम रखेंगे वैसे ही आपको समुद्र के लहरों की आवाजें सुनाई देने लगेंगी।
मंदिर का झंडा हवा के विपरित लहराता है:- अक्सर आपने देखा होगा कि कोई भी झंडा हवा के दिशा में ही लहराता है। लेकिन जगन्नाथ पुरी मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा के विपरित दिशा में ही लहराता है। यह बात तो वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य है कि मंदिर पर झंडा हवा के विपरित कैसे लहराता है।
झंडा रोज बदलना जरूरी:- इस मंदिर का ध्वज हर रोज बदला जाता है। हर रोज पुजारी मंदिर के शिखर पर उलटा चढ़ते हैं और झंडे को बदलते हैं। मंदिर में पुजारी सीधा चढ़ कर ध्वज को नहीं बदल सकते हैं। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।
सुदर्शन च्रक का रहस्य:- जगन्नाथ पुरी मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा हुआ है। जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उस चक्र को आप किसी भी दिशा से देखें लेकिन आपको ऐसा लगेगा कि उसका मुंह आपके ही तरफ है। इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान का असली दिल मौजूद है।
साथ ही ऐसा कहा जाता है कि जब भी पुरानी मूर्ति की जगह नई मूर्ति रखी जाती है तो पुराने मूर्ति से दिल निकालकर नई मूर्ति में लगा दिया जाता है, औऱ जब भी ऐसा किया जाता है तो पुरे शहर की लाइट काट दी जाती है, ताकि उस दिल को कोई देख न सकें। ऐसा माना जाता है कि अगर गलती से कोई देख लें तो उस इंसान की मौत हो जाती है।
मंदिर के गुम्बद की परछाई जमीन पर नहीं पड़ती:- जगन्नाथ पुरी मंदिर के गुम्बद में भी एक राज छुपा हुआ है। मंदिर का गुम्बद इतना विशाल होने के बावजूद भी गुम्बद की परछाई सुबह शाम दोपहर किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती है।
मंदिर में प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता:- इस मंदिर के परिसर में दुनिया का सबसे बड़ा रसोई है। इस रसोई में 500 रसोईया और 300 सहकर्मी मिलकर भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को बनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में हजारों या लाखों भक्त आ जाए प्रसाद कम नहीं पड़ता है। लेकिन रात में मंदिर बंद होते ही प्रसाद अपने आप खत्म हो जाता है।
रथ यात्रा में रथों के नाम:- भगवान के रथ का नाम भी अलग-अलग होता है और रंग भी । बलभद्र के रथ का रंग हरा-लाल और इसे तालध्वज कहते हैं, भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष और देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है। इन रथों की उंचाई भी भगवान जगन्नाथ का 45.6 फीट ऊंचा रथ, बलरामजी का 45 फीट ऊंचा रथ और देवी सुभद्रा का 44.6 फीट ऊंचा रथ होता है। ये सभी रथ नीम की लकड़ियों से बनाए जाते है।
इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथों के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के से शुरू होता है और निर्माण अक्षय तृतीया से होता है। ढोल, नगाड़ों,और शंखध्वनि के बीच श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं। उन्हें परम आनंद की प्राप्ति होती है। जिसे भी रथ को खींचने का अवसर मिलता है, वो किस्मतवाला माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष मिलता है।
मंदिर की पौराणिक मान्यता- आराम के लिए जाते हैं भगवान मौसी बाड़ी:- जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ मौसी बाड़ी (गुंडीचा मंदिर )जाता हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ मौसी के घर में विश्राम करते हैं। इसे आड़प-दर्शन कहा जाता है।कहा जाता है कि ये भगवान की मौसी का घर है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
कहते हैं कि रथयात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को खोजते हुए यहां आती हैं। तब भगवान दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी गुस्सा होकर रथ का पहिया तोड़ देती है। बाद में भगवान देवी लक्ष्मी को मनाते है।यात्रा के 10 वें दिन सभी रथ फिर से मेन मंदिर की ओर जाते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद देवी-देवताओं के लिए मंदिर के दरवाजे एकादशी को खोले जाते हैं, विधिवत स्नान और मंत्रोच्चार के बीच विग्रहों को पुनः स्थापित किया जाता है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है। पुरी यात्रा के दौरान एकता में अनेकता देखने को पूरी तरह से मिलता है।