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जागिये, वरना करोना से भी भयावह स्थिति अभी आएगी….मौत की ओर पल-पल बढ़ रही नई पीढ़ी?

जागिये, वरना करोना से भी भयावह स्थिति अभी आएगी….मौत की ओर पल-पल बढ़ रही नई पीढ़ी?
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By NPG News

*नितिन सिंघवी- (लेखक छत्तीसगढ़ के पर्यावरण प्रेमी हैं)

रायपुर, 23 जून 2021। फरवरी 2021 में यूनाइटेड नेशन के सेकेटरी जनरल एन्टोनियों गुटेरस ने संदेश दिया “मानवता ने प्रकृति के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया है, यह मूर्खतापूर्ण और आत्मघाती है। इस दुस्साहस के नतीजे मानवता झेल रही है, आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है और धरती से जीवन का विनाश हो रहा है।” ये संदेश उन्होंने जलवायु और जैवविविधता संकट के कारण दिया है। देखें क्या एन्टोनियों एक कटु सत्य कह रहे है?
वर्ष 1870 में औद्योगिक युग चालू होते समय पृथ्वी का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्शियस था। बाद के 150 वर्षों में मानवीय गतिविधियों: कोयले से बिजली बनाना, पेट्रोल, डीजल, सीमेंट, लोहा निर्माण इत्यादि के कारण उत्सर्जित हुई कार्बन डाईआक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैस के कारण तापमान में बढ़ोत्तरी 1.2 डिग्री तक पंहुच गई है।
चीन, अमेरिका के बाद भारत सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन करने वाला देश है। 2015 के पेरिस ऐग्रीमेंट में निर्णय लिया था वर्ष 2100 तक तापमान बढ़ोत्तरी 2 डिग्री तक स्थिर करनी है। वर्ष 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होना है और प्रयत्न करना है कि तापमान बढ़ोत्तरी 1.5 डिग्री पर रोकी जावे।
पेरिस ऐग्रीमेंट के बावजूद सभी देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ाते रहे। पिछले दशक में भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 3.3 प्रतिशत प्रतिवर्ष औसत बढ़ा। विकास और लालच की अन्धाधुन दौड़ में स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि अब 1.5 डिग्री तापमान बढ़ोत्तरी 2026 तक होने की संभावना है। अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिये अप्रत्याशित कदम नहीं उठायें गये तो वर्ष 2040 तक तापमान बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सैल्शियस हो जायेगी।

*क्या असर हुआ 1 डिग्री बढोतरी पर*

1 डिग्री सेल्शियस बढ़ोत्तरी पर हमारे ग्लेशियर पिघलने लगे है, समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, समुद्र अम्लीकरण बढ़ने से विश्व का मानसून पैटर्न बदल रहा है, समुद्री गतिविधियां बढ़ रही है। भारतीय मानसून अनियमित हो रहा है। कई देशों में अकाल पड़ रहा है, कई देशों के जंगलों में आग लग रही है, इत्यादि । लेन्सेट के अनुसार हीट वेव के कारण 2019 में भारत की जीडीपी के 4 से 6 प्रतिशत का नुकसान हुआ, वायुप्रदूषण के कारण 16.70 लाख मौतें हुई तथा 2.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ।

*क्या असर होगा 1.5 और 2 डिग्री बढोतरी पर*

1 डिग्री तापमान बढ़ोत्तरी से आर्टिक समुद्र की बर्फ, गर्मी में 40 प्रतिशत तक पिघल जाती है। यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 डिग्री तापमान बढ़ोत्तरी पर यह बर्फ 100 वर्ष में एक बार पूरी पिघलेगी, परंतु 2 डिग्री तापमान पर हर तीन वर्ष में एक बार पिघलेगी। सिर्फ 0.5 डिग्री पर इतना जयादा फर्क जलवायु से होने वाली तबाही को समझाने के लिये गौरतलब है। हिमालय पर गंभीर संकट आएगा। पर्माफोस्ट के कम होने से उसमें दबे करोड़ों वायरस सक्रिय हो जायेंगे जो बर्फ के अंदर दफन है, निसंदेह इसमें कोविड-19 सामान कई बिमारिया फैलेंगी।

लेंसेट की की रिपोर्ट के अनुसार आज जन्म लिया गया बच्चा अपने जीवनकाल में 4 डिग्री से ज्यादा गर्म दुनिया देखेगा अर्थात् 2060 से 2080 तक 4 डिग्री तापमान बढोतरी हो जावेगी। 4 डिग्री पर मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ने लगेगा। बिल गेट्स के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2100 तक तापमान में 4 से 8 डिग्री बढ़ोत्तरी होने की संभावना है। तापमान मापने के एक अन्य तरीके “वेट बल्ब सेल्शियस थर्मामीटर” के माप के अनुसार मानव 27 डिग्री सेल्शियस तापमान पर आरामदेह होता है। वेट बल्ब तापमान 32 डिग्री होने पर मजबूत आदमी भी बाहरी कार्य नहीं कर सकता। वेट बल्ब 35 डिग्री होने पर मानव जिन्दा नहीं रह सकता। पिछले कुछ वर्षों में कतार की राजधानी दोहा में 14 मौकों पर वेटबल्ब का तापमान 32 डिग्री पंहुच गया था। करोना के दौरान मानव ओक्सीजन के कारण मरा परन्तु जलवायु संकट के कारण घर से बहार निकलने से जिन्दा नहीं रह पायेगा।

*जैवविविधता का संकट:*- 1950 तक समुद्र की 90 प्रतिशत मछलियों को मार दिया गया। 1970 तक कुछ ही ब्लू वेल्स बची, अफ्रीका में सिर्फ 300 गुरिल्ला बचे। 2020 तक हमने 3 लाख करोड़ पेड़ काट दिये। हम 1500 करोड़ पेड़ प्रतिवर्ष काटते है। विश्व की आधी उपजाऊ जमीन अब फार्म लेन्ड बन गई है। पिछले 50 वर्षों में 68 प्रतिशत वाइल्ड लाइफ खत्म कर दी गई है। प्रतिदिन 150 जीव-जन्तुओं, पौधों की जाति का अस्तित्व समाप्त हो रहा है, ये कुछ उदाहरण है।

*हम छटवें महाविनाश की तरफ बढ़ चुके है।अगरआने वाली पीढ़ी को अपना अस्तित्व बचाना है तो उसे जलवायु संकट को आपदा बनने से रोकना पडे़गा। जैवविविधिता को पुनः बहाल करना पड़ेगा। दोनों में से सिर्फ एक के लिये काम करने से भी हम मानव अस्तित्व को नहीं बचा सकेंगे।

*यंग जनरेशन से इस विषय पर चर्चा करने पर कहते हैं हमें क्या?* जो करना है सरकारें करेगी। यह आत्मघाती है। अपना उपयोगी जीवनकाल गुजारने वाले अधेड़, बुजुर्ग आपके जीने के लिये 2 डिग्री तापमान निर्धारित करने वाले कौन होते है? 2060 से 2080 तक शायद ही कोई इनमे से जिन्दा रहे। सरकारों को कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन करने वाले अनवान्टेड विकास और गतिविधियां को रोकने के लिए दबाव देने के लिये, सरकारों को जवाबदेह बनाने के लिए, 38 देशों के समान क्लाइमेट इमरजेंसी लागू कर नए कानून बनाकर कार्बन उत्सर्जन का स्तर पेरिस ऐग्रीमेंट के अनुसार कम करने के लिए यंग जनरेशन को ही आगे आना पड़ेगा। बिजली की एक यूनिट 820 ग्राम, एक लीटर पेट्रोल 2.5 किलोग्राम, एक जीन्स बनाने में 33 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है, गूगल पर सब उपलब्ध है। प्रत्येक को अपना उपभोग और महत्वकांक्षाएं अप्रत्याशित रूप से कम करनी पड़ेंगी, जिससे कार्बन फुट प्रिंट कम हो सके। याद रखे हमारी जनरेशन अंतिम जनरेशन है जो जलवायु और जैवविविधिता संकट को बचाने के लिये कार्य कर सकती है, एक एक करके हम नर्क में जाने वाले हाईवे से बाहर निकलने का मौका खो रहे है।

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