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विवेकानंद ने जाति, धर्म, संप्रदाय से उठकर राष्ट्र निर्माण के लिए काम किया

विवेकानंद ने जाति, धर्म, संप्रदाय से उठकर राष्ट्र निर्माण के लिए काम किया
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By NPG News

रतन लाल डांगी, DIG

स्वामी विवेकानंद जयंती पर युग पुरूष को सादर नमन । आज पूरे विश्‍व में 12 जनवरी, एक विश्व युवा दिवस के रूप में मानाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया था।
विवेकानंद जी के संदेश केवल मात्र युवाओं के लिए ही नहीं थे बल्कि हर जाति, धर्म,हर आयु वर्ग के लोगों एवम् संपूर्ण विश्व के लिए थे।
लेकिन हर वर्ग ने केवल उन संदेशों को अपने एजेण्डे मे लिया है जो उनके हितों की पूर्ति करते हैं।और उन संदेशों की चर्चा भी नहीं करना चाहते जो उन पर कुछ दायित्व का भार डालते हो। विवेकानंद ने शिकागों मे सवा सदी पहले कहा था कि सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स धर्मान्धता ने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, मानवता रक्तरंजित हो रही है,सभ्यताओं को ध्वस्त करती है पूरे विश्व को निराशा के गर्त में डाल रही है ।मैं आशा करता हूँ कि समस्त धर्मान्धता ,तलवार या लेखनी से होने वाले सभी उत्पीड़नों तथा पारस्परिक कटुताओं का आज ही दफन हो।लेकिन सवा सदी के बाद भी विवेकानंद जी कि यह अपील का अपने देश मे क्या हुआ, दूसरे देशों से क्या उम्मीद करेंगे।
युवाओं को नये राष्ट्र निर्माण का नींव का पत्थर कहा ,युवाओं से बहुत उम्मीदें उन्होंने किया।उनको आत्मविश्वास से लबरेज़ करने वाले संदेश दिए।उनको जाति, धर्म व संप्रदाय से ऊपर उठकर राष्ट्र के निर्माण की उम्मीद की।समाज का वो वर्ग जो सदियों से दमित शोषित किया जा रहा है जिनकी मेहनत के पसीने से एक वर्ग शानों शौकत की जिन्दगी सदियों से जी रहा है,उसको शिक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई।लेकिन उसका क्या हुआ ?
उन्होंने कहा कि आप इस दमित वर्ग का और ज्यादा समय तक शोषण नहीं कर सकते वो समाज स्वयं एक दिन शिक्षित और संगठित होकर उभरेगा। एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य मनुष्य मे कोई भेदभाव न हो
उनके अनुसार भारत के पतन का मूल कारण यहां की जनता की उपेक्षा करना है।
उनका मन्तव्य था कि उच्च वर्ग के लोगों ने सदियों से निम्न वर्ग के लोगों को प्रताड़ित किया है,शोषण किया है।यह स्थिति भारत की एकता के लिए नुकसानदायक है।ऐसी स्थिति में उच्च वर्ग के लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि वे निम्न वर्ग के लोगों की शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करें और सांस्कृतिक रूप से उन्हें संपन्न बनाए।वहीं निम्न वर्ग के लोगों को भी पूर्व समय की प्रताड़नाओं की टीस को भूलकर अपनी प्रगति का प्रयास करना चाहिए।
उनका मत था कि भारतीय धर्म को लेकर लकीर के फकीर की तरह ही व्यवहार करते हैं।
उन्होंने ने एक तरफ लौकिक शिक्षा पर बल दिया जिससे देशवासियों की आर्थिक स्थिति मे सुधार लाया जा सके तथा दूसरी तरफ आध्यात्मिक शिक्षा पर बल दिया जिससे इनमे आत्मविश्वास की भावना सृजित किया जा सके।
उनके अनुसार स्त्रियों की दशा मे सुधार के बिना विश्व का कल्याण नहीं हो सकता ।
उन्होंने तथागत बुद्ध के संदेश “अप्पो दीप्पो भव ‘” पर जोर दिया ।
यह कहना कि तुम कमजोर हो,तुम पापी हो,एक तुच्छ प्राणी हो और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है ।ऐसा कह कहकर भारतीयों ने चाहे अनचाहे अपने स्वाभिमान को निम्न स्तर पर पहुंचा दिया है।
इसको समाप्त करके नयी ऊर्जा व नयी आशा के साथ एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा।
विवेकानंद का दर्शन भी भगवान बुद्ध की तरह मानवतावादी विचारों से युक्त था।साधारण जनता की बदहाली और पीड़ा से दुखी होकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना इसी मानवतावादी राहत कार्य और को प्राथमिकता देना था।मानव सेवा व समाज सेवा को अपना लक्ष्य माना।
वो भारतीय समाज को स्व पर विश्वास करने की बात करते हैं।
विवेकानंद जी का मानना था कि दुनिया के अन्य राष्ट्रो से अलगाव भी हमारे पतन का कारण है।
शेष दुनिया के साथ सम्पर्क ही एकमात्र समाधान है।
वो वैचारिक खुलेपन के समर्थक हैं ।वो मानते हैं कि हम केवल अपने तक ही सीमित रहे तो अपना विकास उतना न हो पाएं।हमको अन्य राष्ट्रों के समाज व वहां के लोगों से अलगाव भावना न रखे।
आज के भौतिकता वादी युग में हमारे युवा वर्ग में भटकाव की स्थिति को दूर करने में विवेकानंद की प्रेरक बातें उपयोगी हो सकती हैं।
25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानंदजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप से पहुंचे। योरप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले।उन्होने आयोजकों से विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देने की इजाजत मांगी, तो आयोजकों ने उनसे हिन्दू धर्म के प्रवक्ता होने का प्रमाण पत्र मांगा। जो उस समय उनके पास उपलब्ध नहीं था।
स्वामीजी की पीड़ा देख कर वहां शिकागो में मौजूद श्रीलंका से आए “बौद्ध धर्म” के प्रवक्ता अनागरिक धम्मपाल बौद्ध जी ने स्वामीजी को अपनी ओर से एक सहमति पत्र दिया कि स्वामी विवेकानन्द विद्वान है, एवं ओजस्वी वक्ता है। इन्हें धर्म ससंद मॆं अपनी बातें कहने का मौका दिया जाये। इस तरह स्वामी जी को हिन्दू धर्म पर बोलने का मौका दिया।
विवेकानंद को बोलने के लिए धम्मपाल के भाषण के समय में से सिर्फ पांच मिनट दिये गये। उस पाच मिनट में स्वामिजी ने अपनी बात रखी और इन्ही पांच मिनट की वजह से उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।फिर तो अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। वहां इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे।
यह देश का दुर्भाग्य है कि संत, महात्मा, विचारक और भगवानों को भी अब जातिगत और पार्टिगत आधार पर बांटा जाने लगा है। यह देखकर और सोचकर दुख होता है कि स्वामी विवेकानंद, बाबा आंबेडकर और महात्मा गांधी को देश की जनता के बीच बांट दिया गया है। भारत में ही भारत को बांटे जाने का कुचक्र तो अंग्रेज काल से ही चला आ रहा है, लेकिन खुद भारतीय ही प्रांतवादी, जातिवाद और धर्म के नाम पर लोगों को बांटने लगे हैं।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं में चेतना भरने के लिए कहा था कि आज के युवकों को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति करने की जरूरत है। आज के युवाओं को अलग-अलग दिशा में भटकने की बजाय एक ही दिशा में ध्यान केंद्रित करना चाहिए। और अंत तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। युवाओं को अपने प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद जी ने सभी युवाओं की तरफ देखते हुए कहा कि, “तुम लोग संस्कृत और अंग्रेजी दोनो पढो। संस्कृत इसलिए कि अपने देश, अपने धर्म , अपने प्राचीन ज्ञान को जान सको और अंग्रेजी इसलिए कि पश्चिम से आए आधुनिक ज्ञान से परिचित हो सको।”
स्वामी जी बोले ” अपने स्वभाव को पहचानों और अपने स्वधर्म को जानो। हम लोग एक भूल करते हैं कि, अपने वंश या व्यवसाय के अनुसार अपना स्वभाव बनाने का प्रयत्न करते हैं। जबकि होना चाहिये कि हम अपने स्वभाव के अनुसार अपना व्यवसाय चुनें। अपना वंश चुनना हमारे हाँथ में नही है।”
हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की सफलता हमारे आज के युवाओं के हाथों में हैं। आज के दिन से अच्‍छा क्‍या हो सकता है कि हम अपने युवाओं को स्‍वामी विवेकानंद के विचारों पर चलने के लिये प्रोत्‍साहित कर सकें।हर युवा को पता होना चाहिये कि स्‍वामी जी को युवाओं से बड़ी उम्‍मीदें थीं। उन्‍होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहारों में शुद्ध‍ता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्ष करने का संदेश दिया।किसी बात से मत डरो। तुम अद्भुत कार्य करोगे। जिस क्षण तुम डर जाओगे, उसी क्षण मुम बिल्‍कुल शक्‍तिहीन हो जाओगे।शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है।
दूसरों से अलग सोचोगे तो उपहास उडेगा पर डरो नहीं हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति।
जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते हैं। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।
अकेले रहो जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है।
उठो जागो, रुको नहीं… उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है अपने स्‍वभाव अपने आप के प्रति सच्‍चे रहना, अपने आप पे विश्‍वास रखो हमेशा।
स्वामी जी भारत की पिछड़ी दशा को देख कर चिंतित थे। दुर्बल की सहायता पहले करो। इन पददलित मनुष्यों को उनका वास्तविक स्वरूप समझाना होगा। दुर्बलता के भेदभाव को छोड़कर प्रत्येक बालक-बालिका को सुना दो तथा सिखा दो कि सबल-निर्बल सभी के दिल में अनंत आत्मा विद्यमान है। अत: सभी महान बन सकते हैं। सभी योगी हो सकते हैं।’ स्वामी जी के इस उद्बोधन से स्पष्ट होता है कि वे मानव के स्वाभाविक विकास में विश्वास रखते थे।
सुभाषचंद्र बोस का कहना था- ‘स्वामी विवेकानंदजी आधुनिक भारत के निर्माता हैं।’नोबेल पुरस्कार सम्मानित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था- ‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।’
स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस पर हम सब उनके सपनो को साकार करने का प्रण करें और उनके द्वारा बताई गई युवाओं की विशेषता को अंगीकार करें क्योंकि विवेकानंद जी के अनुसार, युवा वो है जो अनिति से लङता है, दुर्गुणों से दूर रहता है, काल की चाल को अपने सामर्थ से बदल सकता है। राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था लिये एक प्रेरक इतिहास रचता है। जोश के साथ होश लिये सभी समस्याओं का समाधान निकाल सकता है। वो सिर्फ बातों का बादशाह नही है; बल्कि उत्तम कर्मों द्वारा उसे साकार करने में सक्षम है।
आज उनके जन्मदिन पर नमन करते हैं।

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