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VIDEO: संतान की खातिर पेट के बल लेटती हैं महिलाएं, ऊपर से गुजरते हैं बैगा... दूर दूर से आते हैं श्रद्धालु... जाने मान्यता...

VIDEO: संतान की खातिर पेट के बल लेटती हैं महिलाएं, ऊपर से गुजरते हैं बैगा... दूर दूर से आते हैं श्रद्धालु... जाने मान्यता...
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By NPG News

धमतरी 13 नवम्बर 2021. छत्तीसगढ़ में दीपावली के बाद मड़ई मेले का भी अपना एक महत्व है. इस साल छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित माँ अंगारमोती मंदिर 12 नवंबर से मड़ई मेले का आयोजन शुरू हुए हुआ है. इस मेले के साथ यहां के लोग आस्था के नाम पर एक प्रथा निभाते हैं. जहां संतान प्रप्ति के लिए महिलाएं पेट के बल लेटती हैं और बैगा(जनजाति) उनके ऊपर से होकर गुजरते हैं. हर साल दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को इसी मन्नत के साथ दूरदराज से बड़ी संख्या में महिलाएं गंगरेल आती हैं. यही वजह है कि दूर-दूर से महिलाएं यहां आती हैं.

शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित गंगरेल बांध के किनारे मां अंगारमोती विराजित हैं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. मान्यता के अनुसार दिवाली के बाद आने वाले पहले शुक्रवार को यहां मड़ई मेले का आयोजन होता है. शुक्रवार को दिवाली के बाद मड़ई देखने शहर सहित ग्रामीण इलाकों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. वनदेवी अंगारमोती का दर्शन कर उन्होंने अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की.

इलाके में पूरे साल में मड़ई का दिन सबसे खास होता है. इस दिन यहां सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. आदिवासी परंपराओं के साथ पूजा और रीतियां निभाई जाती है. इस दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने पहुंचती हैं. महिलाएं मंदिर के सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, नींबू लिए कतार में खड़ी होती हैं...यहां के लोगों का कहना है कि यहां वे तमाम बैगा भी आते हैं, जिन पर देवी सवार होती है और झूमते-झूपते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं. चारों तरफ ढोल-नगाड़ों की गूंज रहती है. बैगाओं को आता देख कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती हैं और सारे बैगा उनके ऊपर से गुजरते हैं. मान्यता है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है, उसे संतान के रूप में माता अंगारमोती का आशीर्वाद मिलता है. बहरहाल मौजूदा दौर में जहां संतान के लिए लोग आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक का सहारा लेते हैं, तो वहीं ऐसे समय में यह मान्यता हैरान करने वाली है.

बता दें कि साल 1973 में गंगरेल बांध बनने के पहले इस क्षेत्र में 52 गांव का वजूद था. महानदी, डोड़की नदी तथा सूखी नदी के संगम पर ही तीन गांव चंवर, बटरेल तथा कोरलम स्थित थे. पूर्व में इन गांवों के टापू पर स्थित मां अंगारमोती की मूर्ति को बांध बनने के बाद बांध किनारे ही स्थापित कर दिया गया. अभी भी 52 गांव के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मां अंगारमोती के दरबार पहुंचते हैं। क्वार और चैत्र नवरात्र में हजारों श्रद्धालु यहां मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित करते हैं.

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