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Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी टनल हादसा में अमेरिकन ऑगर्स मशीन से रेस्क्यू शुरू, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने लिया जायजा

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल में 104 घंटे यानी 5 दिन से 40 मजदूर फंसे हैं। इन्हें निकालने की हर कोशिश अब तक नाकामयाब रही है। गुरुवार सुबह नए सिरे से अमेरिकन ऑगर्स मशीन को इंस्टाल कर रेस्क्यू शुरू किया गया।

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी टनल हादसा में अमेरिकन ऑगर्स मशीन से रेस्क्यू शुरू, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने लिया जायजा
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By Npg

Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल में 104 घंटे यानी 5 दिन से 40 मजदूर फंसे हैं। इन्हें निकालने की हर कोशिश अब तक नाकामयाब रही है। गुरुवार सुबह नए सिरे से अमेरिकन ऑगर्स मशीन को इंस्टाल कर रेस्क्यू शुरू किया गया। हैवी ऑगर मशीन को सेना के हरक्यूलिस विमान से दिल्ली से उत्तराखंड लाया गया है।

एनएचआईडीसीएल के डायरेक्टर अंशू मनीष खलखो ने बताया कि 25 टन की हैवी ऑगर मशीन प्रति घंटे पांच से छह मीटर तक ड्रिल करती है। अगर ये काम करती है तो अगले 10 से 15 घंटे में इन्हें रेस्क्यू किया जा सकता है। हालांकि, यह अंदर की परिस्थितियों पर भी डिपेंड करेगा। दिल्ली से भेजी गई जैक एंड पुश अर्थ ऑगर मशीन को इंस्टॉल कर लिए जाने के बाद मशीन ने ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग भी शुरू कर दी है। फिलहाल, पूरी प्रक्रिया संतोषजनक ढंग से चल रही है। कोई अड़चन न आने की स्थिति में देर रात अथवा शुक्रवार तक टनल में मलबे के दूसरी ओर फंसे मजदूरों तक पहुंच बन जाने की उम्मीद की जा रही है।

इसी बीच केंद्रीय मंत्री वीके सिंह गुरुवार को टनल के अंदर जायजा लेने पहुंचे। उन्होंने अधिकारियों से वार्ता कर वहां टनल में हुए हादसे की वजहों को जानने की कोशिश की। साथ ही वहां फंसे लोगों को बचाने के लिए संचालित ऑपरेशन की अब तक की प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि मजदूर टनल के अंदर 2 किलोमीटर की खाली जगह में फंसे हुए हैं। इस गैप में रोशनी है और हम खाना-पानी भेज रहे हैं। एक नई मशीन काम कर रही है, जिसकी पावर और स्पीड पुरानी मशीन से बेहतर है। हमारी कोशिश इस रेस्क्यू ऑपरेशन को 2-3 दिन में पूरा करने की है।

टनल दुर्घटना के पांचवें दिन प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार भी स्पॉट पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया। बाद में मीडिया को डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि केंद्र और प्रदेश की सभी एजेंसियां, जो भी बेस्ट पॉसिबल एफर्ट्स हो सकता है, वह कर रही हैं। इस समय सबसे जयादा जरूरी यह है कि संयम और विश्वास रखा जाए। समय लग सकता है। हो सकता है, दो दिन में सफलता मिल जाए। हो सकता है, फिर अड़चन आ जाए, लेकिन जो बेस्ट पॉसिबल एफर्ट्स हैं, वह किए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि टनल में फंसे सभी लोग शत-प्रतिशत सुरक्षित हैं और उनका मनोबल भी ऊंचा है। हम सबको सकारात्मक भूमिका निभाते हुए, उनके मनोबल को बनाए रखना है। रेस्क्यू ऑपरेशन में अब सेना और वायुसेना को भी इन्वॉल्व किया जा चुका है।

मंगलवार रात जब प्रदेश सरकार के स्तर से किए जा रहे प्रयास सफल नहीं हो पाए, तो घटना पर निरंतर निगरानी बनाए रख रहा पीएमओ भी एक्टिव हुआ। इसके बाद केंद्र ने वायुसेना के मालवाहक विमान हरक्यूलिस से 25 टन वजनी जैक एंड पुश अर्थ ऑगर मशीन को दो पार्ट में उत्तरकाशी भेजा। दोनों विमान मशीन को लेकर चिन्यालीसौड़ एयरस्ट्रिप पर उतरे और वहां से प्रशासन ने मशीनों के पार्ट्स को त्वरित गति से पहुंचाने के लिए चिन्यालीसौड़ से सिलक्यारा तक हाईवे पर 'ग्रीन कॉरिडोर' बनाया।

टनल में फंसे श्रमिकों को सुरक्षित निकालने के लिए थाईलैंड और नॉर्वे की एक्सपर्ट एजेंसियों से भी परामर्श लिया गया है। थाईलैंड की उस एजेंसी से मदद मांगी गई, जिसने विगत वर्ष अपने यहां टनल में फंसे बच्चों को सुरक्षित निकाला था। फिलहाल, राहत एवं बचाव कार्य में कर्नल दीपक पाटिल की अगुआई में सेना की टीम भी शामिल है। इनके अलावा 200 लोगों की टीम 24 घंटे काम कर रही है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, स्थानीय पुलिस, फायर सर्विस, आईटीबीपी, बीआरओ, रेल विकास निगम समेत तमाम स्टेट एजेंसियों के जवान व कार्मिक भी ऑपरेशन में लगाए गए हैं।

एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा स्थानीय प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों के साथ खुद पांचवें दिन भी मौके पर हैं। इंजीनियर और ड्रिलिंग एक्सपर्ट आदेश जैन ने बुधवार देर रात बताया कि 14 नवंबर तक 6 बार मलबा धंस चुका है और इसका दायरा 70 मीटर तक बढ़ चुका है। पहले जो ड्रिलिंग मशीन लगी थी। केवल 45 मीटर तक ही काम कर सकती है। इसलिए बड़ी मशीन लाई गई है। टनल में फंसे सभी लोग 101 प्रतिशत सुरक्षित हैं। गुरुवार शाम या रात तक सभी को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा।

एनडीआरएफ के असिस्टेंट कमांडर करमवीर सिंह के मुताबिक, साढ़े 4 किलोमीटर लंबी और 14 मीटर चौड़ी इस टनल के स्टार्टिंग पॉइंट से 200 मीटर तक प्लास्टर किया गया था। उससे आगे कोई प्लास्टर नहीं था। जिसकी वजह से ये हादसा हुआ।

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