Uttarkashi Tunnel Collapse: सातवें दिन भी सुरंग से बाहर नहीं निकाले जा सके 41 श्रमिक, जानिए टनल में फंसे 41 मजदूरों के नाम
Uttarkashi Tunnel Collapse: निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में मलबे को भेदकर श्रमिकों तक पहुंचने का रास्ता बनाने के कार्य में फिर रुकावट आने से पिछले छह दिन से सुरंग में फंसे उन 41 श्रमिकों का इंतजार और बढ़ गया है जो बाहर निकाले जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
Uttarkashi Tunnel Collapse: निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में मलबे को भेदकर श्रमिकों तक पहुंचने का रास्ता बनाने के कार्य में फिर रुकावट आने से पिछले छह दिन से सुरंग में फंसे उन 41 श्रमिकों का इंतजार और बढ़ गया है जो बाहर निकाले जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
उत्तरकाशी जिला आपातकालीन नियंत्रण कक्ष से शनिवार सुबह मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सुरंग में ड्रिलिंग का काम रुका हुआ है। इसके अनुसार, इंदौर से एक और भारी एवं शक्तिशाली ऑगर मशीन के आने का इंतजार किया जा रहा है। यह मशीन देहरादून के जौलीग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंच चुकी है जहां से इसे ट्रक के जरिए सिलक्यारा लाया जा रहा है। इससे पहले, सुरंग में मलबे को भेदने के लिए दिल्ली से एक अमेरिकी ऑगर मशीन लाई गई थी जिसने शुक्रवार दोपहर तक 22 मीटर तक ड्रिलिंग कर चार पाइप डाल दिए थे।
टनल में फंसे 41 मजदूरों के नाम
हालांकि, बाद में ड्रिलिंग का काम रुक गया। 12 नंवबर की सुबह हुए हादसे के बाद से लगातार चलाए जा रहे बचाव अभियान की जानकारी देते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) के निदेशक अंशु मनीष खाल्को ने शुक्रवार शाम कहा था कि मलबे में ड्रिलिंग कर छह मीटर लंबे चार पाइप डाल दिए गए हैं जबकि पांचवें पाइप को डालने की कार्रवाई चल रही है। उन्होंने बताया कि चौथे पाइप का अंतिम दो मीटर हिस्सा बाहर रखा गया है जिससे पाचवें पाइप को ठीक तरह से जोड़कर उसे अंदर डाला जा सके। बताया जा रहा है कि सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है जिसमें ड्रिलिंग की जानी है।
यह पूछे जाने पर कि मशीन प्रति घंटा चार-पांच मीटर मलबे को भेदने की अपनी अपेक्षित गति क्यों नहीं हासिल कर पाई, इस पर उन्होंने कहा कि पाइप को डालने से पहले उनका संरेखण करने तथा जोड़ने में समय लगता है। खाल्को ने यह भी दावा किया कि डीजल से चलने के कारण ड्रिलिंग मशीन की गति धीमी है। उन्होंने कहा कि बीच-बीच में ड्रिलिंग को रोकना भी पड़ता है क्योंकि भारी मशीन को हवा का आवागमन चाहिए और मशीन में कंपन होने से आसपास का संतुलन खराब होने से मलबा गिरने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इंदौर से आ रही मशीन के बारे में उन्होंने कहा कि इस मशीन को 'बैकअप' के तहत लाया जा रहा है जिससे बचाव अभियान निर्बाध रूप से चलता रहे।