Uttarakhand Land Law 2025: उत्तराखंड के इन 11 जिलों में अब बाहरी लोग नहीं खरीद सकेंगे जमीन, जानिए नए भू-कानून की पूरी जानकारी
Uttarakhand Land Law 2025: उत्तराखंड में भूमि खरीद को लेकर ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) ने उत्तराखंड भूमि अधिनियम (संशोधन) 2025 को मंजूरी दे दी है।

Uttarakhand Land Law 2025: उत्तराखंड में बहुप्रतीक्षित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रिटायर्ड) ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही, राज्य में सख्त भू-कानून लागू हो गया है, जो 11 जिलों में बाहरी लोगों को कृषि और उद्यान भूमि खरीदने से रोकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि यह कानून उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान, पर्यावरण संतुलन और स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा।
विधेयक की मंजूरी और लागू होने की तारीख
यह विधेयक फरवरी 2025 में उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पारित हुआ था। 20 फरवरी को विधानसभा में पेश होने के बाद, इसे 21 फरवरी को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया था। राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह कानून 1 मई 2025 से तुरंत प्रभावी हो गया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह कानून नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका और छावनी बोर्ड क्षेत्रों को छोड़कर पूरे उत्तराखंड पर लागू होगा।
नए कानून की मुख्य बातें
- 11 जिलों में कृषि भूमि पर रोक: उत्तराखंड के 13 में से 11 जिलों (देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, नैनीताल, पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा, और बागेश्वर) में बाहरी लोग कृषि और उद्यान भूमि नहीं खरीद सकेंगे। हरिद्वार और उधम सिंह नगर इस प्रतिबंध से मुक्त हैं।
- आवासीय जमीन की सीमा: बाहरी लोग केवल 250 वर्ग मीटर तक की आवासीय जमीन खरीद सकते हैं, और यह सुविधा परिवार के केवल एक सदस्य को एक बार मिलेगी। इसके लिए सब-रजिस्ट्रार के समक्ष हलफनामा देना होगा, जिसमें पुष्टि करनी होगी कि परिवार ने पहले कहीं और 250 वर्ग मीटर से अधिक जमीन नहीं खरीदी है।
- कड़ी मंजूरी प्रक्रिया: आवासीय, शैक्षिक, अस्पताल, होटल, या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जमीन खरीदने के लिए बाहरी लोगों को राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। जिला मजिस्ट्रेट का इस तरह की मंजूरी देने का अधिकार समाप्त कर दिया गया है। हरिद्वार और उधम सिंह नगर में 12.5 एकड़ से अधिक जमीन खरीदने के लिए भी सरकारी मंजूरी जरूरी होगी।
- उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई: अगर कोई खरीदार जमीन का दुरुपयोग करता है, बिना अनुमति बेचता है, या गलत हलफनामा देता है, तो जमीन राज्य सरकार के अधीन कर ली जाएगी। साथ ही, कानूनी कार्रवाई भी होगी।
- ऑनलाइन निगरानी: जमीन खरीद की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया गया है, जहां सभी लेनदेन दर्ज होंगे। जिला मजिस्ट्रेट को नियमित रूप से राजस्व परिषद और राज्य सरकार को रिपोर्ट देनी होगी।
कानून का उद्देश्य और महत्व
- सांस्कृतिक पहचान की रक्षा: यह कानून उत्तराखंड की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को बनाए रखने के लिए बनाया गया है। सीएम धामी ने कहा कि यह कानून पहाड़ी लोगों की परंपराओं, खानपान, और जीवनशैली को संरक्षित करेगा।
- पर्यावरण संरक्षण: अनियंत्रित निर्माण और भूमि खरीद से पहाड़ों, झीलों, और जंगलों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए यह कानून टिकाऊ भूमि उपयोग को बढ़ावा देता है।
- आर्थिक स्थिरता: यह कानून सट्टेबाजी के लिए जमीन खरीद को रोककर स्थानीय किसानों और छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करता है।
- जनसांख्यिकीय बदलाव पर रोक: कानून का एक बड़ा उद्देश्य बाहरी लोगों के बड़े पैमाने पर जमीन खरीदने से होने वाले जनसांख्यिकीय बदलाव को रोकना है।
कानून का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर लंबे समय से मांग उठ रही थी। 2003 में एनडी तिवारी सरकार ने बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर तय की थी, जिसे 2008 में बीसी खंडूरी सरकार ने घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया था। हालांकि, 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने जमीन खरीद की सीमा को हटा दिया था, जिसे स्थानीय लोगों ने अपनी संस्कृति और संसाधनों के लिए खतरा माना। 2021 में सीएम धामी ने भू-कानून की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की थी, जिसके सुझावों के आधार पर यह नया कानून तैयार किया गया।
उल्लंघन के खिलाफ कार्रवाई
सीएम धामी ने बताया कि 2018 से अब तक 1,883 जमीन खरीद की मंजूरी दी गई थी, जिनमें से 599 मामलों में नियमों का उल्लंघन पाया गया। इनमें से 572 मामलों में मुकदमे दर्ज किए गए हैं, और 16 मामलों में कानूनी कार्रवाई पूरी होने के बाद 9.476 हेक्टेयर जमीन राज्य सरकार को वापस मिल गई है।