Mahanadi Water Dispute: महानदी जल विवाद? क्या खत्म होगा ओडिशा-छत्तीसगढ़ का जल संघर्ष? CM माझी ने दिया समाधान का फॉर्मूला? पढ़िए पूरी रिपोर्ट
Mahanadi Water Dispute: ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने बुधवार को राज्य सचिवालय में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में साफ़ कहा कि महानदी जल विवाद का समाधान छत्तीसगढ़ के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत से संभव है, जिसमें केंद्र सरकार की भूमिका अहम हो सकती है।

Mahanadi Water Dispute: ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने बुधवार को राज्य सचिवालय में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में साफ़ कहा कि महानदी जल विवाद का समाधान छत्तीसगढ़ के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत से संभव है, जिसमें केंद्र सरकार की भूमिका अहम हो सकती है।
मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार माझी ने कहा कि केंद्रीय जल आयोग के माध्यम से चल रही प्रक्रिया बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रही है, जिससे इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद का समाधान अभी भी अधर में लटका है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि केंद्र सरकार मध्यस्थता करे, तो दोनों राज्यों के बीच डायरेक्ट कम्युनिकेशन के माध्यम से इस जल विवाद को सकारात्मक तरीके से सुलझाया जा सकता है।
सीएम माझी ने बैठक में यह भी कहा कि केंद्रीय जल आयोग तकनीकी सहायता देकर विवाद के समाधान में बड़ी भूमिका निभा सकता है, जिससे ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच दशकों पुरानी खटास को खत्म किया जा सकेगा और दोनों राज्यों के संबंधों में मजबूती आएगी।
गौरतलब है कि यह बयान ऐसे समय में आया है जब फरवरी में आयोजित 'ऑल इंडिया स्टेट वॉटर रिसोर्सेस मिनिस्टर्स कॉन्फ्रेंस' और मार्च में विश्व जल दिवस के अवसर पर भुवनेश्वर में हुई बातचीत में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने इस मुद्दे को उठाया था। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से इस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की मंशा जाहिर की थी।
मुख्यमंत्री की इस बैठक में राज्य के महाधिवक्ता पितांबर आचार्य, मुख्य सचिव मनोज आहूजा और जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। सूत्रों के मुताबिक, दोनों राज्यों के शीर्ष अधिकारियों के बीच पहले से बातचीत की प्रक्रिया जारी है, जिससे यह संकेत मिलते हैं कि अब शायद यह विवाद निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रहा है।
महानदी जल विवाद कानून, 1956 क्या है
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (Inter-State River Water Disputes -ISRWD) कानून, 1956 के प्रावधानों के अनुसार, न्यायाधिकरण में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे, जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से मनोनीत करेंगे। इसके अलावा, जल संसाधन विशेषज्ञ दो आकलनकर्त्ताओं की सेवाएँ न्यायाधिकरण की कार्यवाही में सलाह देने के लिये प्रदान की जाएंगी। इन आकलनकर्त्ताओं को जल संबंधी संवेदनशील मुद्दों को निपटाने का अनुभव होगा। आईएसआरडब्ल्यूडी कानून, 1956 के प्रावधानों के अनुसार. न्यायाधिकरण को अपनी रिपोर्ट और फैसले तीन वर्ष की अवधि के भीतर देने होंगे, जिसे अपरिहार्य कारणों से दो वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है। न्यायाधिकरण द्वारा विवाद के न्यायिक निपटारे के साथ ही महानदी पर ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों के बीच लंबित विवाद का अंतिम निपटारा किये जाने की आशा है।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017
इस विधेयक में अंतर्राज्यीय जल विवाद निपटारों के लिये अल- अलग अधिकरणों की जगह एक स्थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य शामिल होंगे। अध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि को पाँच वर्ष अथवा 70 वर्ष तय किया गया है। अधिकरण के उपाध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल जल विवादों के निर्णय के साथ सह-समाप्ति आधार पर होगा। इसके अतिरिक्त अधिकरण को तकनीकी सहायता देने के लिये आकलनकर्त्ताओं (केंद्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा में सेवारत विशेषज्ञ) की भी नियुक्ति की जाएगी। जल विवादों के निर्णय के लिये कुल समयावधि अधिकतम साढ़े चार वर्ष तय की गई है। अधिकरण की पीठ का निर्णय अंतिम होगा और संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होगा। साथ ही, इसके निर्णयों को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी।
नदी जल विवाद से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 में प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 262 (2) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को इस मामले में न्यायिक पुनर्विलोकन और सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है। विदित हो कि अनुच्छेद 262 संविधान के भाग 11 का हिस्सा है जो केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रकाश डालता है। अनुच्छेद 262 के आलोक में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 को लाया गया। इस अधिनियम के तहत संसद को अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे हेतु अधिकरण बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसका निर्णय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बराबर महत्त्व रखता है।
महानदी की भौगोलिक स्थिति
- यह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। इस नदी को महानन्दा एवं नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है।
- महानदी का प्रवाह दक्षिण दिशा से उत्तर की ओर है।
- महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के रायपुर के समीप अवस्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी (धमतरी ज़िला) से होता है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह पैरी और सोंदुर नदियों से जल ग्रहण कर विशाल रूप धारण कर करती है।
- इसके बाद यह आरंग और सिरपुर से बहती हुई शिवरी नारायण में पहुँचती है, यहाँ यह अपने नाम के अनुरूप महानदी बन जाती है।
- शिवरी नारायण (एक धार्मिक नगर) से यह दक्षिण से उत्तर की ओर बहने की बजाय पूर्व दिशा की ओर बहने लगती है।
- संभलपुर ज़िले में प्रवेश करने के साथ यह ओडिशा में बहने लगती है तथा बलांगीर और कटक होते हुए बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। महानदी के समस्त प्रवाह का सबसे अधिक भाग छत्तीसगढ़ में बहता है।
- महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चंपारण, आरंग और सिरपुर आदि नगर बसे हुए हैं।
- पैरी, सोंदुर के अलावा शिवनाथ, हंसदेव, अरपा, जोंक और तेल आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं।
- इतना ही नहीं इस पर हीराकुण्ड, रुद्री और गंगरेल जैसे महत्त्वपूर्ण प्रमुख बांधों का भी निर्माण हुआ हैं।
