Mukhtar Ansari: कहानी पूर्वांचल के सबसे बड़े डॉन मुख्तार अंसारी की... दादा स्वतन्त्रता सेनानी, चाचा उपराष्ट्रपति, एक समय था जब बोलती थी तूती....
Mukhtar Ansari:मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे। 47 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई।
Mukhtar Ansari लखनऊ। कहते हैं समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता, किसी भी पल कुछ भी हो सकता है। एक समय था जब यूपी के पूर्वांचल में गाजीपुर जिले के यूसुफपुर निवासी मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी। मगर अब हालात मुख्तार के साथ कुछ और ही है। गाजीपुर की मऊ विधानसभा सीट से लगातार 5 बार यूपी विधानसभा का सफर तय कर चुके मुख्तार अंसारी जेल से ही चुनाव जीतते रहे है। फिलहाल अभी वह जेल में ही बंद हैं। आज हम उनके जुर्म से लेकर सियासी सफर की बात करने वाले हैं, उनके इस सियासी सफर की डगर कठिन और विवादित रही है। विरासत में सियासत तो मिली, लेकिन उन्हें यहां पहुंचाने के लिए अपराध की दुनिया में कदम रखना पड़ा।
जानिए मुख़्तार कैसे अपराध की सीढ़ियां चढ़ता रहा
6 फुट 2 इंच की हाइट वाले मुख्तार का कद अपराध की दुनिया में काफी ऊंचा है। मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को हुआ था। उसके पिता का नाम सुबहानउल्लाह अंसारी और मां का नाम बेगम राबिया था। मुख्तार अंसारी मखनू सिंह गिरोह का सदस्य था, जो 1980 के दशक में काफी सक्रिय था। अंसारी का यह गिरोह कोयला खनन, रेलवे निर्माण, स्क्रैप निपटान, सार्वजनिक कार्यों और शराब व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में लगा हुआ था। अपहरण, हत्या व लूट सहित अन्य आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता था। जबरन वसूली का गिरोह चलाता था।मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में सक्रियता ज्यादा थी। 20 से भी कम की उम्र में मखनू सिंह गिरोह में शामिल होकर मुख्तार अपराध की सीढ़ियां चढ़ता रहा।
बताया जाता है कि बाहुबली माफिया पर 8 राज्यों में 50 से अधिक मुकदमें है। मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया में पहली बार नाम वर्ष 1988 में हरिहरपुर के सच्चिदानंद राय हत्याकांड से सामने आया था। कुछ ही वर्षों में ही पूर्वांचल की तमाम हत्याओं और ठेकेदारी में मुख्तार का नाम खुलेआम लिया जाने लगा। सत्ता और प्रशासन का संरक्षण मिलने से मुहम्मदाबाद से निकलकर मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया में बड़ा नाम हो गया। करीब 30 साल पहले राजनीति में कदम रखने वाला मुख्तार देखते ही देखते प्रभावशाली नेता बन गया।
पहले चुनाव में मिली हार
1991 में मुख्तार अंसारी ने पहला चुनाव गाजीपुर की सदर सीट से निर्दलीय लड़ा था और हार गया था, उसके बाद मुख्तार ने अपने भाई की सीट मोहम्मदाबाद से सटी मऊ जिले की सदर सीट से किस्मत आजमाई और 1995 में पहली बार विधायक बना। और इसके बाद मऊ सदर सीट से पांच बार विधायक रहा। इस दौरान मुख्तार सपा, बसपा, अपना दल जैसे अलग-अलग दलों का चक्कर लगाने के बाद अपनी पार्टी का गठन किया। मुख्तार के बारे में लोग बताते हैं ठेके, पट्टे, विवादित जमीन-जायदादों पर कब्जा के साथ रॉबिनहुड (अमीरों से पैसे लूटकर गरीबों में बांटने वाले की तुलना रॉबिनहुड से करते हैं) की छवि बनाने में मुख्तार कामयाब रहा। राजनीति में प्रवेश के बाद मुख्तार ने रसूख के साथ दौलत भी खूब कमाई।
कृष्णानंद राय हत्या और ब्रजेश सिंह से दुश्मनी
विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के पीछे मुख्तार अंसारी का हाथ होने की वजहों को लेकर कई अटकलें लगती रही हैं। कहा जाता है कि यूपी की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट पर मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल अंसारी का प्रभाव था। 1985 से लगातार ये सीट अंसारी परिवार के कब्जे में रही, लेकिन 2002 में बीजेपी उम्मीदवार कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हरा कर यह सीट हथिया ली। यह सीट अंसारी परिवार के पास 1985 से ही थी। वहीं कृष्णानंद राय की चुनाव में मुख्तार के दुश्मन ब्रजेश सिंह ने काफी मदद की थी। पारिवारिक सीट पर हार और दुश्मन के उम्मीदवार की जीत से मुख्तार आग बबूला था। कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। बताया जाता है कि 2005 में उनके काफिले पर मुख्तार के गुगों ने 500 राउंड से अधिक गोलियां चलाई। विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोग जो उस गाड़ी में सवार थे मौके पर ही मारे गए।
दंगा भड़काने के आरोप
2005 में एक महीने तक चले मऊ दंगों में मुख्तार पर दंगा भड़काने के आरोप लगा। ओपन जीप में बैठकर दंगे के दौरान मुख्तार की तस्वीरें और वीडियो मीडिया में सामने आई। इसी दौरान तब के गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ मऊ दौरे पर गए। योगी के काफिले पर हमला हुआ, गोलियां चलीं। योगी इस हमले में बाल-बाल बच गए।
कृष्णानंद राय हत्या मामले में सजा
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्या मामले में अप्रैल 2023 यूपी के बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी और उनके बड़े भाई और गाज़ीपुर से बसपा सांसद अफ़जाल अंसारी को उत्तर प्रदेश की एक कोर्ट ने सज़ा सुनाई। मुख़्तार अंसारी को 10 साल की सज़ा सुनाई। साथ ही पांच लाख रुपये ज़ुर्माना भी लगाया गया। तब से अबतक मुख़्तार जेल में ही बंद है।
गौरवशाली है इतिहास
अंसारी परिवार में आज भले ही मुख्तार अंसारी सबसे चर्चित चेहरा है लेकिन वह जिस खानदान का चश्मो चिराग है उसने हिंदुस्तान का एक नामी परिवार था। जंग में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाकर शहीद होने वाले महावीर चक्र विजेता शहीद ब्रिगेडियर उस्मान अंसारी मुख्तार के नाना थे। मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे। 47 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई। खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे। वहीं मुख्तार के दादा डॉ. एम ए अंसारी, आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के साथी थे, जो कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। देश के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के चचा लगते हैं।