धर्मांतरण पर दो फ़ैसलों ने खींचा ध्यान : सुकमा में कप्तान ने थानेदारों को किया सतर्क..तो रायगढ में सरपंच ने धर्मांतरण के बाद ग़लत तथ्य के साथ जाति प्रमाण पत्र जारी करने से किया मना

सुकमा/रायगढ,15 जुलाई 2021। धर्मांतरण को लेकर तनाव और धर्मांतरित होकर आदिवासी का प्रमाण पत्र बनाने के लिए दिए आवेदन में ग़लत जानकारी भरे जाने को लेकर दो मसले सूबे में चर्चा में है। सुकमा में कप्तान ने थानेदारों को परवाना जारी कर सतर्क किया है कि स्थानीय आदिवासियों को फुसला कर धर्मांतरित करने की कोशिश से स्थानीय आदिवासी और धर्मांतरित आदिवासियों में विवाद की स्थिति हो सकती है।ज़िले में निवासरत ईसाई मिशनरी और धर्मांतरित आदिवासियों की अवांछित गतिविधि परिलक्षित होने पर विधि संगत कार्यवाही करें।वहीं सूबे के उत्तरी छोर पर मौजुद रायगढ़ में धर्मांतरण के बाद ग़लत जानकारी प्रपत्र में भरकर जाति प्रमाण पत्र लेने पर सरपंच ने यह कहकर रोक दिया है कि आवेदन में सही जानकारी भरें।
सुकमा समेत बस्तर के कई ईलाकों में मिशन के सक्रिय होने की खबरें आती रही हैं।जशपुर सरगुजा रायगढ़ जैसे ईलाके में तो मिशन और धर्मांतरण सियासत का मुद्दा है, इस ईलाके में जूदेव का ‘घर वापसी अभियान’ इसी धर्मांतरण के जवाब के रुप में सियासी इतिहास में दर्ज है। वहीं कई मौक़े ऐसे आए हैं जबकि टकराव हुआ है और तनाव चरम पर रहा है। पर यह पहली बार है जबकि धर्मांतरण के मसले पर सूबे में किसी कप्तान ने परवाना जारी कर अलर्ट किया हो।
कप्तान सुकमा सुनील शर्मा ने जारी परवाने में लिखा है –
“अंदरूनी इलाक़ों में स्थानीय आदिवासीयों को फुसलाकर और ईसाई समुदाय में होने वाले लाभ का लालच देकर आदिवासियों को धर्मांतरित हेतु प्रेरित किया जा रहा है, जिससे स्थानीय आदिवासियों और धर्म परिवर्तित आदिवासी समाज के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता,ज़िले में निवासरत ईसाई मिशनरियों और धर्मांतरित आदिवासियों की गतिविधियों पर नज़र रखते हुए इनके द्वारा किसी प्रकार की अवांछनीय गतिविधि परिलक्षित होने पर त्वरित विधि सम्मत कार्रवाई करते हुए तत्काल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी/पुलिस कंट्रोल रुम को अवगत कराना सुनिश्चित करें”
इधर रायगढ़ ज़िले के जामबहार ग्राम पंचायत के सरपंच सत्यनारायण भगत ने धर्मांतरण कर चुके एक परिवार के जाति प्रमाण पत्र के आवेदन को सही प्रारुप में भरने की बात कहकर वापस कर दिया। जाति प्रमाण पत्र के मामले पर यह मसला रहा है कि, धर्मांतरण के बाद आदिवासी अपने पुराने परंपरागत तरीक़े पर नहीं होते, उनके देव और पूजा के तरीक़े बदलते हैं, लेकिन फ़ॉर्म में उनसे यह तथ्य नहीं लिखवाया जाता, बल्कि वे कॉलम में आदिवासी समाज की परंपराओं के अनुरूप ही भरते हैं।जिससे धर्मांतरण करने के बाद भी उन्हें आदिवासी होने का लाभ मिलता है।
रायगढ़ के जामबाहर के धर्मांतरित आदिवासी परिवार ने ऐसा ही फ़ॉर्म भरकर दिया तो सरपंच सत्यनारायण भगत ने फ़ॉर्म में सही तथ्य भरने की बात कहते हुए फ़ॉर्म वापस कर दिया।
सत्यनारायण भगत ने बताया
“जाति प्रमाण पत्र के आवेदन के प्रारुप में एक कॉलम में उन्होंने देवता के रुप में शिव पार्वती लिखा था, जबकि वे धर्मांतरित है और ईसाई है,उन्होंने खुद स्वीकारा कि अब ईसा की पूजा करते हैं तो मैंने उन्हें सही लिखकर फार्म फिर से जमा करने कहा है..फिर उन्हें जाति प्रमाण पत्र मिले ना मिले ये मैं नहीं जानता.. मेरा आग्रह बस फ़ॉर्म सही भरने को लेकर है जिसे वह परिवार मान गया है”
अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि फ़ॉर्म पर सही तथ्य लिखने की सामान्य प्रक्रिया मसला क्यों बन गया तो इस क्यों का जवाब इस बात में मिलेगा कि सही तथ्य लिखने के आग्रह ने तूफ़ान मचा दिया है। इस तूफ़ान में मिशन और धर्मांतरण विरोधी दोनों ख़ेमे शामिल हैं, मिशन सरपंच के आवेदन को सही तथ्य के साथ भरने को ग़लत प्रचारित कर रहा है तो धर्मांतरण विरोधी इसे विधिसम्मत बता रहे हैं। मिशन की चिंता स्वाभाविक है यदि जाति के कॉलम में सच दर्ज कर दिया जाएगा तो धर्मांतरित हो चुके लोगों को आदिवासी होने का लाभ मिलने में ही संकट हो जाएगा।