गौतम अडानी के भाई विनोद समेत 66 भारतीयों के पास साइप्रस गोल्डन पासपोर्ट का खुलासा
Syprus Golden Passport: व्यवसायी गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी समेत भारत के 66 बिजनेसमैन को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। जिसमें व्यवसायी पंकज ओसवाल और रियल एस्टेट कारोबारी सुरेंद्र हीरानंदानी समेत 66 लोगों के पास साइप्रस गोल्डन पासपोर्ट होने की बात सामने आयी है...
Syprus Golden Passport: व्यवसायी गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी समेत भारत के 66 बिजनेसमैन को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। जिसमें व्यवसायी पंकज ओसवाल और रियल एस्टेट कारोबारी सुरेंद्र हीरानंदानी समेत 66 लोगों के पास साइप्रस गोल्डन पासपोर्ट होने की बात सामने आयी है।
इससे फायदा क्या है?
फ्लोटिंग ऑफशोर कंपनियों के लिए एक डेस्टिनेशन साइप्रस आइलैंड धनी भारतीयों और एनआरआई की भी पसंदीदा जगह है। ये एक आरामदायक जीवन के लिए या अपने देशों में आपराधिक आरोपों और मनी-लॉन्ड्रिंग मामलों से सुरक्षित बचने के लिए लोग इसकी नागरिकता चाहते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि, साल 2007 में शुरू की गई 'गोल्डन पासपोर्ट" योजना' को 'साइप्रस निवेश कार्यक्रम' के नाम से भी जाना जाता था। इसने आर्थिक रूप से प्रतिष्ठित व्यक्तियों को साइप्रस की नागरिकता प्रदान करने की सुविधा प्रदान की, जिससे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। साइप्रस सरकार द्वारा 2022 के ऑडिट से पता चला कि कुल 7,327 व्यक्तियों को साइप्रस पासपोर्ट के लिए मंजूरी दी गई थी, जिनमें से 3,517 निवेशक" थे और बाकी उनके परिवारों के सदस्य थे। यह योजना कई बदलावों से गुज़री। हालांकि 2020 में खत्म कर दिया क्योंकि आपराधिक आरोपों, संदिग्ध चरित्र और पीईपी वाले लोग इसका बेजा इस्तेमाल कर रहे थे।
साइप्रस गोपनीय परियोजना में भागीदार ओसीसीपीआर (Organized Crime And Corruption Reporting Project) ने 'गोल्डन पासपोर्ट' प्राप्त करने वाले हजारों प्रमुख व्यक्तियों के साथ-साथ साइप्रस सरकार द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के पूरे डेटा को हटा दिया है। इनसे पता चलता है कि 2020 के बाद 83 मामलों में पासपोर्ट रद्द करने की सिफारिश की गई। आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 और 2020 के बीच 66 भारतीय साइप्रस पासपोर्ट प्राप्त करने में कामयाब रहे। इस पूरी प्रक्रिया में औसतन तीन महीने से एक साल तक का समय लगा।
इसी तरह तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष हैं, जिन्होंने 2016 में साइप्रस की नागरिकता हासिल कर ली थी। उनके आवेदन को केवल दो महीनों में मंजूरी दे दी गई थी। 2017 में उनके दोनों बच्चों को भी नागरिकता मिल गई थी।
इनके अलावा एमजीएम मारन और उनकी कंपनी एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड भारत में ईडी के निशाने पर हैं। दिसंबर 2022 में उनकी 293 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई है क्योंकि मारन ने भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी के बिना सिंगापुर में दो कंपनियों में एक समान विदेशी निवेश किया था।
ईडी ने एक आधिकारिक बयान में एमजीएम मारन की साइप्रस नागरिकता का भी जिक्र किया था। ईडी ने दावा किया, "भारतीय कानूनों की पहुंच से बचने के लिए एमजीएम मारन ने अपनी भारतीय नागरिकता आत्मसमर्पण कर दी। यह भी पाया गया कि एमजीएम मारन ने दक्षिणी एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की आड़ में अपनी संपत्ति को भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की पहुंच से दूर रखने के लिए भारत से विदेशों में ट्रांसफर करना भी शुरू कर दिया।"
गोल्डन पासपोर्ट हासिल करने वाले लोगों में उत्तर प्रदेश के एक व्यवसायी वीरकरन अवस्थी और उनकी पत्नी रितिका अवस्थी शामिल हैं। उन्होंने भी 2016 में नागरिकता हासिल कर ली थी (डेटा से पता चलता है कि रितिका को 20 दिनों में मंजूरी दे दी गई थी) और लंदन चले गए थे। लेकिन वर्षों बाद पहले उत्तर प्रदेश पुलिस, फिर दिल्ली पुलिस और उसके बाद ईडी ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया।
उन पर आरोप है कि बुश फूड्स ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के रूप में दोनों ने गेहूं और धान खरीद के नाम पर किसानों को धोखा दिया था। उन्हें फरार घोषित कर दिया गया और अक्टूबर 2019 में उन्हें लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया। नवंबर 2020 में ईडी ने मामले में चार्जशीट दायर की, जिसमें 750 करोड़ रुपये की आर्थिक धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया और आखिरकार दिसंबर 2021 में यूके की अदालतों द्वारा उनके प्रत्यर्पण की अनुमति दी गई।