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Operation Silkyara Uttarakhand: 41 ज़िन्दगियां- पानी, भोजन, लाइट के साथ ऑक्सीजन का भी संकट

Operation Silkyara Uttarakhand: आज 8 दिन बाद भी विश्व गुरु भारत अपने 41 मजदूरों को नहीं निकाल पाया है जो उत्तरकाशी की silkyara टनल में फंसे हुए हैं. मजदूरों के पास न लाइट है, न पानी है न टिफिन न खाना...

Operation Silkyara Uttarakhand: 41 ज़िन्दगियां- पानी, भोजन, लाइट के साथ ऑक्सीजन का भी संकट
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Operation Silkyara 

By Manish Dubey

Operation Silkyara Uttarakhand: आज 8 दिन बाद भी विश्व गुरु भारत अपने 41 मजदूरों को नहीं निकाल पाया है जो उत्तरकाशी की silkyara टनल में फंसे हुए हैं. मजदूरों के पास न लाइट है, न पानी है न टिफिन व खाना है. उसपर बड़ी मुसीबत की उनतक ऑक्सीजन भी बड़ी मुश्किल में पहुंच रही है. जानिए इन हालातों में कैसे बीत रहा समय?

संकट में ऑक्सीजन की आपूर्ति

उन्होंने कहा, “खदान में ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए 2 रास्ते होते हैं. पंखों के जरिये सामान्य हवा खदान के अंदर भेजी जाती है, जो दूसरे रास्ते से बाहर निकलती है. प्रॉपर वैंटिलेशन होता है इसलिए साँस लेने के लिए कभी ऑक्सीजन की दिक़्क़त महसूस नहीं होती. ऑक्सीजन का लेवल कभी 90 प्रतिशत से कम नहीं होता.”

'हमें सेल्फ रेस्क्यूअर भी दिया जाता है. उसका वजन डेढ़ किलो का होता है तो कई बार मज़दूर उसे लेकर नहीं भी जाते हैं. यह बड़ी लापरवाही है. इसके बावजूद कभी ऑक्सीजन की दिक़्क़त नहीं होती. मैंने अपनी 28 साल की नौकरी में कभी ऑक्सीजन की कमी महसूस नहीं की है.'

कई दफा लोग खदान के अंदर सीढ़ियों से पैदल चलकर जाते हैं. लेकिन, खदान गहरी होने पर मज़दूरों को लिफ्ट (पीट) के जरिये भी ले जाया जाता है. इसे चानक भी कहते हैं. खदान या सुरंग के अंदर काम करने वालों के लिए ये सामान्य बाते हैं जो उनकी दिनचर्या में शामिल है.

धरती की सतह से कई सौ मीटर अंदर और कई मीटर गहरी खदान की सुरंगों में काम करने के अपने खतरे भी हैं. यह प्रकृति के विरूद्ध काम है. लिहाज़ा, इसकी अपनी चुनौतियां और खतरे हैं.

साल 1993 में बिहार के सुगौली (पूर्वी चंपारण) से झारखंड इलाके में आकर मज़दूर के तौर पर नौकरी शुरू करने वाले (अब क्लर्क) चंदेश्वर कुमार सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि किसी भी सुरंग या खदान में जाने का मतलब ही है कि आप बाहरी दुनिया से कट चुके हैं.

'आपके पास कोई फोन नहीं है और न खाने का इंतज़ाम. आप अपनी व्यवस्था सिर्फ़ आठ घंटे की शिफ्ट के मुताबिक़ ही रखते हैं. सबसे बड़ा रिस्क तो यही है.'

उत्तरकाशी सुरंग हादसे में फँसे मज़दूरों का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, 'उन मज़दूरों के पास सिर्फ अपनी शिफ्ट का इंतज़ाम रहा होगा. ऐसे में अगर उन्हें खाना-पानी नहीं पहुँचाया जाता, तो कोई कितने दिन तक सर्वाइव कर सकेगा.'

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