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समरथ को नहीं दोष गोसाई

समरथ को नहीं दोष गोसाई
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By NPG News

संजय के. दीक्षित
तरकश, 11 जुलाई 2021
पिछले महीने एक आईएएस ने बेमेतरा जिले के बेरला में 45 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री कराई। जिस जमीन का सौदा हुआ, वो सिंचित था और मेन रोड के किनारे। इसके कारण रजिस्ट्री खर्च 30 लाख बैठ रहा था। आईएएस चाहते थे, कम में मामला निबट जाए। राशि कम करने का उपाय एक ही था, जैसा कि वीआईपी या भूमाफियाओं के मामलों में होता है…जमीन को असिंचित घोषित कर दिया जाए और रोड से दूर। किन्तु बेरला का पटवारी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं था। आईएएस ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। बेमेतरा के रजिस्ट्री अधिकारियों पर प्रेशर बनाया गया। उपर से पटवारी को फोन हुआ। पटवारी अगर असिंचित और रोड से दूर जमीन लिखकर नहीं देता, तो फिर आईएएस को 30 लाख खर्चा करना पड़ता। बड़ी मुश्किल से अफसर के लिए कागजों में जमीन को असिंचित और रोड से दूर दिखाया गया। तब जाकर रजिस्ट्री हुई। तुलसीदासजी ने ठीक ही लिखा है…समरथ को नहीं, दोष गोसाई।

94 बैच की खुशी

उड़ीसा कैडर के आईएएस रहे आश्विनी वैष्णव केंद्र में मंत्री बन गए है। पहली बार के हिसाब से पोर्टफोलियो भी उन्हें बढ़िया मिला है। रेलवे। उपर से कैबिनेट भी। 94 बैच के आईएएस रहे आश्विनी ने दो-एक जिले की कलेक्टरी करने के बाद आईएएस से त्यागपत्र दे दिया था। उसके बाद कुछ साल प्रायवेट सेक्टर में नौकरी की। फिर अपना कारोबार। इस दौरान राजनीति में उनका झुकाव बढ़ता गया। विजन और इनोवेशन तो उनका था ही, लिहाजा धीरे-धीरे प्रधानमंत्री के सलाहकारों के कोर ग्रुप में वे शामिल होते गए। आश्विनी की प्रतिभा को देखते प्रधानमंत्री ने पहले राज्य सभा में मनोनित कराया और अब अपने मत्रिमंडल का हिस्सा। बहरहाल, आश्विनी के रेलवे मंत्री बनने से 94 बैच के आईएएस बड़े प्रफुल्लित हैं। छत्तीसगढ़ में ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकास शील और मनोज पिंगुआ…94 बैच के आईएएस हैं। इनमें से तीन दिल्ली में ही डेपुटेशन पर हैं। मनोज पिंगुआ छत्तीसगढ़ में हैं। बैचमेट मंत्री बन जाए तो अफसरों की खुशी समझी जा सकती है। चूकि रेल मंत्री के चार-चार बैचमेट्स छत्तीसगढ़ से हैं, इसलिए यहां के लोगों को भी खुश होना चाहिए, कुछ तो इसका लाभ राज्य को मिलेगा। ़

क्लोज अफसर

नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में इस विस्तार के बाद रिटायर नौकरशाहों की संख्या बढ़कर सात हो गई है। इनमें पांच रिटायर आईएएस और दो रिटायर भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी हैं। ये सभी सर्विस के दौरान किसी-न-किसी राजनेता के बेहद करीब रहे। कैबिनेट मंत्री बने आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के साथ काम करने के लिए 2010 में आईएएस की नौकरी से बॉय-बॉय कर दिया था। 84 बैच के आईएएस रहे आरसीपी करीब ढाई दशक से नीतीश कुमार से जुड़े हैं। नीतीश जब अटलबिहारी बाजपेयी सरकार में कृषि और रेल मंत्री रहे तब वे उनके पीएस होते थे। बाद में नीतीश जब बिहार के मुख्यमंत्री बनें तो वे उनके सिकरेट्री बन गए। इसके बाद आईएएस छोड़ दिया। यही राजनीतिक निष्ठा उन्हें कैबिनेट मंत्री के पद तक पहुंचाने में मदद की। कुल मिलाकर नौकरशाहों का भी अब राजनीति में भी संभावनाएं बढ़ रही है। खासकर उनके लिए जो आईएएस का माया-मोह छोड़कर राजनीति में आ गए हो। रिटायरमेंट के बाद राजनीति ज्वाईन करने वालों के लिए नहीं। जैसे, छत्तीसगढ़ में सरजियस मिंज और राजीव श्रावास्तव। सरजियस आईएएस से और राजीव आईपीएस से रिटायर होने के बाद कांग्रेस और भाजपा ज्वाईन किए। पूर्व आईएएस राघवन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इसलिए, गुंजाइश नहीं बन पाई। वहीं, अजीत जोगी को देखिए….वे कलेक्टरी के तुरंत बाद आईएएस छोड़ दिए थे तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।

ओपी का भविष्य

छत्तीसगढ़ में नौकरशाहों में शैलेष पाठक, अमन सिंह और ओपी चौधरी ने नौकरी छोड़ी थी। इनमें से ओपी रायपुर कलेक्टर से सीधे राजनीति मे ंआ गए। शैलेश को विदेश में कोई बड़ा आफर मिला था और अमन सिंह का डेपुटेशन भारत सरकार बढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ। मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के साथ काम करने के लिए मजबूरन उन्हें आईआरएस की नौकरी त्याजना पड़ा। रमन सिंह ने तुरंत उन्हें अपना सिकरेट्री अपाइंट कर लिया था। शैलेष हालांकि, बाद में फिर नौकरी ज्वाईन करने की कोशिश की थी। भारत सरकार के अफसर इसके लिए तैयार हो गए थे। लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके लिए अनुमोदन नहीं दिया। बहरहाल, शीर्षक है…ओपी का भविष्य…अफसरी के बीच में नौकरी छोड़कर राजनीति में कूदने वालों की उड़ान को देखते लगता है ओपी का आने वाला टाईम ठीक-ठाक ही रहेगा। वैसे भी, सूबे में जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग चल रही, उसमें ओपी एकदम फीट बैठते हैं।

कप्तानों को टाइट

28 में से 21 एसपी बदलने के बाद डीजीपी डीएम अवस्थी वीडियोकांफें्रसिंग के जरिये पुलिस अधीक्षकों की बैठक ली। उसमें एसपी को लताड़ते हुए एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो को जिसने भी देखा, सुना वो हैरान हुआ। जुआ, सट्टा समेत बढ़ते क्राइम पर उन्होंने कप्तानों ने क्या नहीं बोला। जैसे एसपी, आईजी थानेदारों से बात करते हैं कुछ उसी अंदाज में। डीएम ने दो टूक कहा, एसपी मुझे मुर्ख न समझें….तंबुओं में जुआ चल रहा है, टीआईओ की बदमाशियों को अनदेखा मत कीजिए। खबर है, सरकार के ढाई बरस गुजरने के बाद डीजीपी को कहीं से प्वाइंट मिला था…कप्तानों को जरा टाईट करो। और उन्होंने कर दिया।

अफसर नहीं, पावर बड़ा

अफसर तेज-तर्रार हो सकता है, पर यह जरूरी नहीं कि वो पावरफुल भी हो। पावरफुल तभी होगा, जब चीफ मिनिस्टर से उसे सीधे पावर मिले। दरअसल, सरकार जिसके कंधे पर हाथ रख दें वह ताकतवर हो जाता है। विश्वरंजन छत्तीसगढ़ के सबसे पावरफुल डीजीपी इसलिए रहे क्योंकि उन्हें सरकार से फ्री हैंड मिला। विश्वरंजन का जलजला लोगों ने देखा है….वे कभी सीएम सचिवालय आते थे तो अमन सिंह जैसे शक्तिमान अफसर उन्हें लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे। लेकिन, सरकार ने जब पावर खींच लिया, तो उन्हें जमीन पर आते देर नहीं लगी। उन्हें जब डीजीपी से हटाया गया तो वे अहमदाबाद एयरपोर्ट पर थे। चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन ने उन्हें फोन कर बताया कि सरकार ने आपको हटा कर अनिल नवानी को नया डीजीपी बनाया है। राज्य बनने से डेढ़ साल पहले दिग्विजय सिंह ने शैलेंद्र सिंह को बिलासपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा था। बिलासपुर इलाके से तब चार से पांच सीनियर मंत्री होते थे। समझ सकते हैं, वहा काम करना कितना कठिन होता होगा। मगर शैलेंद्र सिंह ने ऐसा कसा कि लोग आज भी याद करते हैं। कलेक्टर सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष को जेल भेज दें, ऐसा कोई सोच सकता है। लेकिन, शैलेंद्र सिंह ने बिलासपुर के युवा कांग्रेस अध्यक्ष समेत पूरी टीम को जेल भिजवा दिया था। शराब ठेकेदार भी कलेक्टर से मिलने के लिए लाईन में खड़े होते थे। ये इसलिए संभव हुआ कि सरकार ने उन्हें पावर देकर भेजा था।

चार आईएएस

छत्तीसगढ़़ बनने के बाद सस्पेंड होने वाले जीपी सिंह तीसरे आईपीएस अफसर हैं। आईएएस में इससे एक अधिक अफसर सस्पेंड हुए हैं। याने चार। सबसे पहले अजय पाल सिंह। 2004 में। फिर पी राघवन, राधाकृष्णन और बीएल अग्रवाल। अजय पाल तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के साथ पंगा करके निलंबित हुए थे। तथा राघवन और राधाकृष्णन करप्शन के केस में। बीएल का भी कुछ ऐसा ही था। चारों आईएएस भाजपा सरकार में सस्पेंड हुए थे तो आईपीएस कांग्रेस राज में। हालांकि, आईपीएस में राजकुमार देवांगन भी निलंबित हुए थे, लेकिन अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. बिलासपुर में ऐसा क्यों कहा जा रहा, पहले साहूजी का राज था और अब शाहजी का?
2. सारी चीजें तय हो जाने के बाद भी लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट कहां और कैसे अटक गई है?

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