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कलेक्टरों की जिद

कलेक्टरों की जिद
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By NPG News

संजय के दीक्षित
तरकश, 11 अप्रैल 2021
कोविड से सबसे खराब स्थिति राजधानी रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव की है। रायपुर में कोविड से रोज 30 से अधिक मौतें हो रही हैं। ये स्थिति एक दिन में नहीं आई। कोई 15 मार्च से रायपुर में कोरोना का ग्राफ खतरनाक ढंग से उपर आने लगा था। 25 मार्च से केजुअल्टी की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। बहरहाल, रायपुर, दुर्ग समेत नौ जिलों ने लाॅकडाउन का ऐलान कर दिया है। मगर कुछ कलेक्टर केसेज बढ़ने के बाद भी निर्णय नहीं कर पा रहे, तो कुछ अपने जिद पर हैं…लाॅकडाउन न करने से शायद उनका नम्बर बढ़ जाए। आखिर ऐसा क्यों? रायपुर जैसी स्थिति निर्मित होने का इंतजार क्यों? ये ठीक है…लाॅकडाउन से काफी नुकसान होता है। ये समस्या का स्थायी समाधान भी नहीं है। लेकिन, चेन को ब्रेक करने का इससे फास्ट कोई तरीका भी तो नहीं है। आखिर, जान के आगे सब कुछ है। जो लोग अपने प्रिय जनों को खो रहे हैं, उनसे पूछिए….। चेम्बर आफ कामर्स और व्यापारिक संगठनों से राय लेकर प्रशासन नहीं चलता। दुर्भाग्य है कलेक्टर यही कर रहे हैं। उन्हें मध्यप्रदेश को देखना चाहिए। जबलपुर में 300 केस आने पर लाॅकडाउन की घोषणा हो गई है। यहां पांच, छह सौ केस छोटे-छोेटे जिलों में आ रहे हैं।

छोटे जिले, बड़ी मुश्किलें

बड़े और वीआईपी जिलों में कुछ होता है, तो वो जल्दी नोटिस में आ जाता है। लेकिन, छोटे जिले? कोरोना से कोई सबसे अधिक परेशान हैं तो वो हैं छत्तीसगढ़ के छोटे जिले। छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाएं वैसे भी नहीं के बराबर होती है। कस्बाई जिलों में एक तो प्रायवेट अस्पताल कम होते हैं। उसमें भी आक्सीजन और वेंटीलेटर की सुविधाएं नहीं होतीं। बेमेतरा, बालोद, बलौदा बाजार, जशपुर, महासमुंद में रोज तीन सौ, चार सौ केस आएंगे तो स्वाभाविक सा सवाल है कि उन्हें वे रखेंगे कहां। बड़े जिलों पर मीडिया का फोकस रहता है। लेकिन, जशपुर का नाम किसी मीडिया में आप नहीं देख रहे होंगे। जो लोग जशपुर गए होंगे, वे समझ सकते हैं कि प्रति दिन दो सौ, तीन सौ केस को कैसे हैंडिल किया जा रहा होगा। ऐसे में, छोटे जिलों की परेशानी समझी जा सकती है।

श्मशान में लाईन

रायपुर के अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा। लोग एडवांस पैसा धरे दो-दो, तीन-तीन दिन से गिड़गिड़ा रहे हैं। उधर, श्मशान गृहों में लाईन जैसे सिचुएशन बनने लगे हैं। आंबेडकर अस्पताल की मरचुरी की क्या स्थिति है, यहां उसे ना लिखना ही बेहतर होगा। मगर अगर समय रहते युद्धस्तर पर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो स्थिति और बिगड़ेगी। लिहाजा, अब समय आ गया है, सरकार को अपने सारे सिकरेट्री को सड़क पर उतार दें। सिकरेट्री को जिले का प्रभार देकर उनसे दिन में दो टाईम अपडेट लिया जाए।

मंत्रियों का दायित्व

महामारी के समय ये तो नहीं होना चाहिए कि मंत्री अपने घरों में बैठ जाएं। खासकर जिन जिलों में लाॅकडाउन नहीं लगा है, वहां तो वे सड़क पर उतर कर लोगों को, अपने कार्यकर्ताओं को कोविड के लिए अवेयर कर सकते थे। लेकिन, दुर्भाग्य से पिछले साल भी, और इस बार भी, किसी भी मंत्री में ऐसा नहीं दिखा। आखिर कोविड के प्रति उनका भी कुछ दायित्व बनता है। रायपुर, कोरबा, रायगढ़ जैसे कई जिलों में प्रशासनिक अफसर सड़क पर उतरे। इस तरह अगर नेता, मंत्री भी लोगों के बीच जाते तो निश्चित तौर पर उनकी अपील से फर्क पड़ता। यही हाल बीजेपी नेताओं का है। भाजपा नेता अपने घरों में बैठे-बैठे सरकार के खिलाफ बयान जारी कर विपक्षी नेता का धर्म निभा दे रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की हालत तो बिगड़नी ही थी।

ट्रांसफर पर ब्रेक

कोविड ने कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों के बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर पर ब्रेक मार दिया है। हालांकि, पिछले साल कोरोना के बावजूद सरकार ने 27 मई को 22 जिलों के कलेक्टरों समेत 29 आईएएस को इधर-से-उधर कर दिया था। लेकिन, इस बार चूकि कोरोना दूसरी तरह का है। पिछली बार पिक टाईम में 3800 केस आ रहे थे। इस समय 14 हजार से अधिक है। केजुअल्टी की तो कोई तुलना ही नहीं है। ऐसे में, नहीं लगता कि सरकार संकट की इस घड़ी में अफसरों को अभी बदलेगी। जिले में जाने के लिए सूटकेस तैयार कर बैठे आईएएस, आईपीएस अफसरों को लगता है, और वेट करना होगा।

कलेक्टरों पर प्रेशर

लाॅकडाउन में कलेक्टरों पर सबसे अधिक प्रेशर है। सरकार ने सिचुएशन को देखते उन्हें फ्री हैंड दे दिया है। लेकिन, जितना बीजेपी के समय व्यापारी वर्ग कलेक्टरों पर प्रेशर नहीं बना पाता था, उससे अधिक अभी हाॅवी हो गया है। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग, सूबे के तीन बड़े शहर और व्यवसायिक केंद्र हैं। और, तीनों कलेक्टरों पर व्यवसायिक संगठनों का भारी दबाव है कि कंप्लीट लाॅकडाउन न हो। रायपुर में तो कल शाम से लाॅकडाउन प्रभावशील हुआ और दूसरे दिन भाजपा से जुड़े चेम्बर के नेता कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने चले गए। रायपुर में लाॅकडाउन की घोषणा होते समय भी चेम्बर ने काफी विरोध किया। चेम्बर के लोग अड़ गए थे कि पहले तीन दिन का लाॅकडाउन किया जाए। भारतीदासन सीनियर कलेक्टर हैं, इसलिए वे 10 दिन का लाॅकडाउन लगा दिए। वरना, जूनियर कोई अफसर होता तो तीन दिन पर मुहर लगा दिया होता। वैसे इस 10 दिन मेें पांच दिन सरकारी छुट्टी है। दो शनिवार, दो रविवार और एक आंबेडकर जयंती। इसलिए, व्यापारी मन मसोसकर मान गए। चेम्बर का अब जोर है कि लाॅकडाउन 19 अप्रैल से आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के किस नेता को इन दिनों राज्य सरकार का चैदहवां मंत्री कहा जा रहा है?
2. पांच राज्यों के चुनाव के बाद बीजेपी के एक नेता को राज्यपाल बनाए जाने की खबर में कितनी सच्चाई है? ?

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