18 चीनी सैनिकों की गर्दन तोड़ दी थी बिहार रेजीमेंट के जवानों ने :….कर्नल संतोष बाबू के शहीद होते ही बिहार रेजीमेंट ने दिखाया रौद्र रूप…..उस रात की पूरी कहानी पढ़िये …क्यों, कहां, कैसे हुई हिंसक झड़प
नयी दिल्ली 21 जून 2020। भारत-चीन सीमा पर कयामत की उस रात 16 बिहार रेजीमेंट के जवानों ने बहादुरी की जो कहानी रच दी, वो दुनिया भर में सैन्य अभियानों के लिए मिसाल बन गयी है. प्रत्यक्षदर्शियों की जुबानी बिहार रेजीमेंट के जवानों की जो कहानी सामने आ रही है वो रोंगटे खड़े कर देने वाली है. भारत-चीन सीमा पर उस रात चीनी सैनिकों की तादाद भारतीय सेना की तुलना में पांच गुणा ज्यादा थी. लेकिन उसके बावजूद बिहार रेजीमेंट के जवानों ने दुश्मनों के होश उड़ा दिये.
गुस्साए भारतीय सैनिक तो 18 चीनी सैनिकों की तोड़ दीं गर्दनें
गलवान में 15 जून को चीनी सैनिकों के धोखे से हिंसक हमले में अपने कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी. संतोष बाबू के शहीद होने के बाद बिहार रेजीमेंट के जवानों का वही रौद्र रूप सामने आ गया। द एशियन एज अखबार ने विभिन्न स्रोतों के हवाले से खबर दी है कि अपने सीओ की शहादत से गुस्साए भारतीय सैनिकों ने एक-एक कर 18 चीनी सैनिकों की गर्दनें तोड़ दीं। एक सैन्य अधिकारी ने बताया कि कम-से-कम 18 चीनी सैनिकों के गर्दनों की हड्डियां टूट चुकी थीं और सर झूल रहे थे। अपने कमांडर की वीरगति प्राप्त होने से गुस्साए भारतीय सैनिक इतने आक्रोशित हो गए कि सामने आने वाले हर चीनी सैनिक का वो हाल किया कि उनकी पहचान कर पाना भी संभव नहीं रहा।
जानिए उस रात की पूरी कहानी
अखबार डेक्कन हेराल्ड ने सैन्य सूत्रों के हवाले से बिहार रेजीमेंट की जवानों की शौर्यगाथा की पूरी कहानी छापी है। इस लड़ाई में बिहार रेजीमेंट के जवानों ने प्राचीन युद्ध कला का प्रयोग किया। भारत के जवानों को ऑर्डर मिले थे कि वह गलवान में बनाए गए चीनी सैनिकों द्वारा टेंट को हटाने की पुष्टि करें। इसी को देखते हुए कर्नल बी संतोष बाबू जवानों के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि चीनी सेना ने वहां से टेंट को नहीं हटाया तो उन्होंने इसका विरोध किया। इसी बीच बड़ी तादाद में वहां पर मौजूद चीनी सैनिक ने उनपर हमला कर दिया। जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी मोर्चा संभालते हुए उनको जवाब देना शुरू किया।
दरअसल गलवान घाटी की सीमा पर उस वक्त भारतीय सैनिकों की संख्या काफी कम थी. जब चीनियों ने हमला किया तो बिहार रेजीमेंट के जवानों ने बगल की चौकी से मदद मांगी. भारतीय सेना का “घातक” दस्ता उनकी मदद के लिए वहां पहुंचा. बिहार रेजीमेंट और घातक दस्ते के सैनिकों की कुल तादाद सिर्फ 60 थी. जबकि दूसरी ओर दुश्मनों की तादाद काफी ज्यादा थी.ये लड़ाई लगभग चार घंटे तक चलती रही। चीनियों के पास तलवार और रॉड थे, जिनको छीनकर भारतीय सैनिकों ने उनपर हमला करना शुरू कर दिया। बिहार रेजीमेंट के जवानों का यह रौद्र रूप देखकर सैकड़ों की तादाद में मौजूद चीनी भागने लगे और घाटियों में जा छिपे, जिसके बाद भारतीय जवानों ने उनका पीछा करते हुए उन्हें चुन-चुनकर मारा।
अपने कमांडिंग ऑफिसर की हत्या से बेकाबू हुए बिहार रेजीमेंट के जवानों ने बिना देर किये चीनी सैनिकों पर हमला बोल दिया. फायरिंग करना मना था. लिहाजा प्राचीन युद्ध शैली में पत्थर, डंडा और भाले को हथियार बना लिया गया. बिहार रेजीमेंट के जवानों ने जान की परवाह किये बगैर चीनी सैनिकों पर हमला बोल दिया.
“कम से कम 18 चीनी सैनिकों का गर्दन की हड्डी टूट चुकी थी और सर झूल रहा था. कुछ के चेहरे इतनी बुरी तरह से कुचल दिये गये थे कि उन्हें पहचान पाना संभव नहीं था. चीनी सैनिक भी हमला कर रहे थे लेकिन भारतीय सैनिकों का हमला इतना भयानक था कि चीनी संभल नहीं पाये.”
ये लड़ाई लगभग चार घंटे तक चलती रही. अपने कमांडिंग ऑफिसर की मौत से बौखलाये भारतीय सैनिक लगातार नारे लगाते हुए हमला कर रहे थे. हमले की पहले से तैयारी करके बैठे चीनियों के पास तलवार और रॉड थे. भारतीय सैनिकों ने उनसे वे हथियार छीन लिये और उन पर हमला करना शुरू कर दिया.