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रायपुर IIIT कुलपति नियुक्ति का विवाद गहराया…..कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय ने मोर्चा खोला….राज्यपाल को पत्र भेजकर, गठित चयन समिति को निरस्त करने की मांग

रायपुर IIIT कुलपति नियुक्ति का विवाद गहराया…..कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय ने मोर्चा खोला….राज्यपाल को पत्र भेजकर, गठित चयन समिति को निरस्त करने की मांग
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By NPG News

रायपुर 23 जून 2021। रायपुर ट्रिपल आईटी के कुलपति चयन का विवाद गहरा गया है। अब इस मामले में कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय ने भी मोर्चा थाम लिया है। संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने कहा है कि ट्रिपल आई टी के कुलपति चयन में नियमों को ताक में रखकर प्रक्रिया की जा रही है। चयन पक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए उन्होंने राज्यपाल को पत्र भेजा है। विकास उपाध्याय ने अपने शिकायती पत्र में पूरी चयन प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए हैं और कहा है, जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ट्रिपल आई टी की स्थापना की गई थी वह किसी भी दृष्टि से फलीभूत नहीं हो रही है। राजभवन को अंधेरे में रखकर इस संस्था में कुलपति बनने की होड़ लगी है, जिसे स्वीकार्य नहीं किया जाएगा।

संसदीय सचिव विकास उपाध्याय आरंभिक दिनों से शैक्षणिक संस्थानों में बरती जा रही अनियमितताओं को लेकर संघर्षरत् रहे हैं, चाहे विश्वविद्यालय का मामला हो या फिर राज्य लोक सेवा आयोग का। ऐसे में उनके सरकार रहते नियमों की अनदेखी कर कोई कार्य हो रहा हो तो कैसे चूप हो सकते हैं। उन्होंने ऐसा ही प्रकरण ट्रिपल आई टी के कुलपति चयन को लेकर राज्यपाल एवं कुलाधिपति को आज पत्र प्रेषित कर पूरे मामले की संज्ञान लेने की बात कही है।

ट्रिपल आई टी की स्थापना एनटीपीसी के सीएसआर फण्ड से हुई

विकास उपाध्याय ने बताया इसकी स्थापना छ.ग. विधानसभा के ऐक्ट के माध्यम से किसी प्रदेश की विश्वविद्यालय के रूप में ट्रिपल आई टी नया रायपुर ऐक्ट 2013 के अनुसार किया गया था। एनटीपीसी के सीएसआर फण्ड के माध्यम से इसकी शुरूआत हुई, जहाँ विद्यार्थियों की अध्यापन करने की रूचि सबसे ज्यादा देखी गई है। परन्तु वर्तमान कुलपति डाॅ. सिन्हा की कार्य प्रणाली को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। यहाँ तक कि संस्था के विद्यार्थियों ने कुलपति का रात भर घेराव तक कर अपना विरोध दर्ज कर चुके हैं।

कुलपति चयन की प्रक्रिया

उन्होंने बताया, राज्यपाल कुलाधिपति के हैसियत से चयन समिति के लिए एक नाम इसी तरह ट्रिपल आई टी कार्य परिषद् द्वारा एक नाम एवं एनटीपीसी चूंकि उसी के सीएसआर फण्ड से इसकी स्थापना हुई है, तो इसके द्वारा एक नाम नामित की जाती है। जिसमें से कुलाधिपति चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त करता है एवं इन तीन सदस्यों द्वारा कुलपति के लिए संभावित तीन या इससे अधिक नाम कुलाधिपति को सौंपा जाता है, जिसमें कुलाधिपति द्वारा किसी एक नाम पर सहमति देकर कुलपति का चयन होता है। इस प्रकरण में प्रो. गौतम बरुआ इसके अध्यक्ष हैं एवं प्रो. यू बी देसाई एवं श्री संजय मदान सदस्य के रूप में सम्मिलित हैं। परन्तु ट्रिपल आई टी के ऐक्ट में सेक्शन-20 के कण्डिका (5) में प्रावधान है कि चयन समिति का कोई भी व्यक्ति किसी भी रूप में ट्रिपल आई टी नया रायपुर से जुड़ा न हो। बावजूद वर्तमान कुलपति डाॅ. सिन्हा जो कि कार्य परिषद् के अध्यक्ष भी होते हैं, यह जानते हुए भी उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति का नाम चयन समिति के लिए भेजा जो ट्रिपल आई टी से जुड़ा है। इसी तरह ट्रिपल आई टी द्वारा एनटीपीसी को ऐक्ट के नियमों की जानकारी दिए बगैर ऐसा नाम भेजने, नाम सुझाया गया, वह व्यक्ति भी इस संस्था से जुड़ा हुआ था। इस तरह ट्रिपल आई टी के लिए गठित चयन समिति के दोनों सदस्यों का नाम ही ऐक्ट के विरूद्ध है।

डाॅ. प्रदीप कुमार सिन्हा वर्तमान में नियम विरूद्ध पद पर बने हुए हैं:-

विकास उपाध्याय ने कहा, ट्रिपल आई टी में कुलपति का कार्यकाल कुल 05 वर्ष का होता है। इसके पश्चात् नये कुलपति का नियुक्ति ऐक्ट 2013 के अनुसार आवश्यक है। डाॅ. सिन्हा का 10 दिसम्बर 2020 को कार्यकाल पूर्ण हो चुका है, इसके पश्चात् आज छः माह बीत जाने के बावजूद नियम विरूद्ध कुलपति के पद पर कार्य कर रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे पिछले छः माह से लगातार क्रय, निर्माण, नियुक्ति के प्रकरण सहित तमाम नीतिगत् निर्णय ले रहे हैं जो कि नियम विरूद्ध है। इसके बाद भी राजभवन द्वारा किसी तरह का कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। इतना ही नहीं बल्कि डाॅ. सिन्हा नियम विरूद्ध 15 प्रतिशत अतिरिक्त वेतन का लाभ भी बगैर किसी सक्षम स्वीकृति के लगातार ले रहे हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है।

डाॅ. सिन्हा की इस पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं, फिर भी 2015 में नियुक्ति दी गई

विकास उपाध्याय ने बताया, डाॅ. सिन्हा कुलपति के लिए सबसे आवश्यक अर्हता शैक्षणिक अनुभव नहीं रखते। जबकि 10 साल का शैक्षणिक अनुभव आवश्यक है। डाॅ. सिन्हा कभी भी किसी महाविद्यालय, विश्वविद्यालय या आईआईटी में कार्य नहीं किए। न ही इनके पास विश्वविद्यालय अथवा किसी शैक्षणिक स्थान में किसी भी तरह का कार्य करने का अनुभव है। जो नियम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूरे देश व प्रदेश में लागू होते हैं, इस संस्था में डाॅ. सिन्हा के लिए नजर अंदाज कर दिया गया।

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